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Sambhav-2024

  • 20 Feb 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    दिवस 80

    प्रश्न 2. भारत में बढ़ते लोक ऋण के कारण और निहितार्थ का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • उत्तर की शुरुआत लोक ऋण के परिचय के साथ कीजिये।
    • भारत में बढ़ते लोक ऋण के कारणों का वर्णन कीजिये।
    • भारत में बढ़ते लोक ऋण के निहितार्थों का उल्लेख कीजिये।
    • तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    लोक ऋण से तात्पर्य राजस्व कम होने पर अपने खर्चों की पूर्ति हेतु सरकारी ऋण से है। मार्च, 2023 के अंत में केंद्र सरकार का कर्ज़ 155.6 ट्रिलियन रुपए या सकल घरेलू उत्पाद का 57.1% था, राज्य सरकारों ने कुल ऋण बोझ में सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 28% योगदान दिया।

    मुख्य भाग:

    भारत में बढ़ते लोक ऋण के कारण:

    • राजकोषीय घाटा: बढ़ते लोक ऋण का एक प्राथमिक कारण निरंतर राजकोषीय घाटा है। सरकार अपनी आय से अधिक खर्च करती है, जिससे घाटे को पूरा करने के लिये ऋण लेना पड़ता है।
    • राजस्व में कमी: अपर्याप्त राजस्व सृजन, विशेष रूप से व्यय प्रतिबद्धताओं के संबंध में अंतर को पाटने के लिये ऋण लेना पड़ता है।
    • व्यय का दबाव: सब्सिडी, ब्याज भुगतान और प्रशासनिक लागत पर बढ़ता व्यय अधिक ऋण लेने की आवश्यकता में योगदान देता है।
    • आर्थिक मंदी: आर्थिक मंदी या मंदी की अवधि सरकारी राजस्व को कम कर सकती है, जिससे खर्च के स्तर को बनाए रखने के लिये अधिक उधार लेना पड़ सकता है।
    • बुनियादी ढाँचा विकास: बड़े पैमाने पर बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के लिये महत्त्वपूर्ण धन की आवश्यकता होती है, जिससे अक्सर उधारी बढ़ जाती है।
    • ब्याज भुगतान: भारत में ब्याज भुगतान, सकल घरेलू उत्पाद का 5% से अधिक और राजस्व प्राप्तियों का औसतन 25%, शिक्षा एवं स्वास्थ्य देखभाल जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों पर सरकारी खर्च से अधिक है।
    • बाह्य कारक: वैश्विक आर्थिक स्थितियाँ, जैसे ब्याज दरों या विनिमय दरों में बदलाव, ऋण लेने की लागत और समग्र ऋण स्तर को प्रभावित कर सकती हैं।

    बढ़ते लोक ऋण के निहितार्थ:

    • उच्च ब्याज भुगतान: जैसे-जैसे ऋण बढ़ता है, सरकारी राजस्व का एक बड़ा हिस्सा ऋण चुकाने के लिये आवंटित किया जाता है, जिससे अन्य आवश्यक व्ययों के लिये उपलब्ध धनराशि सीमित हो जाती है।
    • क्राउडिंग आउट प्रभाव: लोक ऋण के उच्च स्तर से क्राउडिंग आउट प्रभाव हो सकता है, जहाँ सरकारी ऋण लेने से निजी निवेश के ऋण की उपलब्धता कम हो जाती है, जिससे संभावित रूप से आर्थिक विकास में बाधा आती है।
    • क्रेडिट रेटिंग प्रभाव: अत्यधिक लोक ऋण से देश की क्रेडिट रेटिंग में गिरावट हो सकती है, जिससे भविष्य में ऋण लेना अधिक महँगा हो जाएगा।
    • मुद्रास्फीति का दबाव: ऋण के वित्तपोषण के लिये सरकारें अधिक पैसा छापने का सहारा ले सकती हैं, जिससे मुद्रास्फीति बढ़ सकती है।
    • कम राजकोषीय स्थान: उच्च ऋण स्तर सरकार की आर्थिक आघातों का जवाब देने या आवश्यक सुधार करने की क्षमता को बाधित करता है।
    • इंटर-जनरेशनल इक्विटी: अत्यधिक ऋण लेने से ऋण चुकाने का बोझ भावी पीढ़ियों पर पड़ सकता है, जिससे उनकी आर्थिक संभावनाओं से समझौता हो सकता है।
    • आर्थिक अस्थिरता: उच्च लोक ऋण स्तर अर्थव्यवस्था के बाहरी आघातों और वित्तीय संकटों के प्रति संवेदनशीलता को बढ़ा सकता है तथा नीति निर्माण को प्रभावित कर सकता है।

    शमन उपाय:

    • सामाजिक योजनाओं में PPP मॉडल: सरकार दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना (DDU-GKY) जैसी सामाजिक योजनाओं में लोक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल के बारे में सोच सकती है। इससे लोक ऋण को कम करने में मदद मिल सकती है।
    • हरित ऋण स्वैप की जानकारी: हरित ऋण स्वैप में एक देनदार राष्ट्र और उसके लेनदार मौजूदा ऋण के आदान-प्रदान या पुनर्गठन के लिये इस प्रकार संवाद करते हैं जो पर्यावरण के अनुकूल एवं सतत् परियोजनाओं के साथ संरेखित हो।
    • व्यय युक्तिकरण: फिजूलखर्ची को कम करने के लिये खर्च को प्राथमिकता देना और स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा एवं बुनियादी ढाँचे जैसे आवश्यक क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना।
    • कर संग्रहण और अनुपालन बढ़ाना: सरकारी राजस्व बढ़ाने के लिये कर प्रशासन और अनुपालन में सुधार करना। GST एवं आयकर रिटर्न के क्रॉस-मैचिंग के लिये प्रौद्योगिकी का उपयोग, कर संग्रह दक्षता को बढ़ा सकता है तथा कर चोरी पर अंकुश लगा सकता है।
    • सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन प्रणाली (PFMS) का लाभ उठाना: PFMS का संपूर्ण क्षमता से लाभ उठाना प्रभावी राजकोषीय घाटे के प्रबंधन का अभिन्न अंग है, जिससे सरकारी व्यय में अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित होती है।

    निष्कर्ष:

    भारत में बढ़ते लोक ऋण के कारणों और निहितार्थों को संबोधित करने के लिये एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें राजकोषीय अनुशासन, राजस्व वृद्धि एवं विवेकपूर्ण ऋण प्रबंधन शामिल है। लोक ऋण को प्रभावी ढंग से प्रबंधन विफलता से अर्थव्यवस्था पर गंभीर परिणाम हो सकते हैं, जिससे विकास, स्थिरता और इंटर-जनरेशनल इक्विटी प्रभावित हो सकती है।

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