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28 Nov 2023
सामान्य अध्ययन पेपर 2
राजव्यवस्था
दिवस 8
प्रश्न.1 विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के बीच कुशल समन्वय एवं निर्णयन को बढ़ावा देने में मंत्रिमंडलीय समितियों के मूलाधार का परीक्षण कीजिये। इसके बाद, इन समितियों के समक्ष आने वाली चुनौतियों एवं सीमाओं का विश्लेषण कीजिये तथा उनके प्रदर्शन व जवाबदेही में सुधार हेतु उपाय बताइये। (250 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- मंत्रिमंडलीय समितियों के संक्षिप्त परिचय और उनके गठन के पीछे का तर्क देते हुए उत्तर लिखिये।
- मंत्रिमंडलीय समितियों के लाभों, उनके समक्ष आने वाली चुनौतियों और उनके प्रदर्शन तथा जवाबदेही में सुधार के लिये उठाए जा सकने वाले उपायों पर चर्चा कीजिये।
- दूरदर्शी दृष्टिकोण के साथ निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
मंत्रिमंडलीय समितियाँ मंत्रिमंडल के उप-समूह हैं जो उन विशिष्ट मामलों से निपटने के लिये बनाई जाती हैं जिन पर निरंतर ध्यान और विचार-विमर्श की आवश्यकता होती है। इनका गठन प्रधानमंत्री द्वारा किया जाता है तथा इसमें वरिष्ठ मंत्री भी शामिल होते हैं जिन्हें अलग-अलग विभाग सौंपे जाते हैं। मंत्रिमंडलीय समितियों के पीछे का तर्क विभिन्न मंत्रालयों एवं विभागों के बीच कुशल समन्वय व निर्णय लेने को बढ़ावा देना है।
मुख्य भाग:
मंत्रिमंडलीय समितियों के कुछ लाभ हैं:
- वे उन मामलों को अपने अधिकार में लेकर मंत्रिमंडल के कार्यभार को कम करने में मदद करते हैं जिन पर मंत्रिमंडल को ध्यान देने की आवश्यकता नहीं होती है या जिन्हें निचले स्तर पर हल किया जा सकता है।
- वे विषय-वस्तु में विशेषज्ञता, रुचि या हिस्सेदारी रखने वाले मंत्रियों को एक साथ लाकर सामूहिक और सहभागी निर्णय लेने की सुविधा प्रदान करते हैं।
- वे मंत्रिमंडल की तुलना में अधिक बार और नियमित रूप से बैठक करके तथा छोटी एवं अधिक केंद्रित सदस्यता के द्वारा त्वरित व समय पर निर्णय लेने में सक्षम होते हैं।
- वे विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के विचारों में सामंजस्य स्थापित करके तथा उनके बीच किसी भी टकराव को हल करके नीतिगत सुसंगतता व स्थिरता सुनिश्चित करते हैं।
- वे मंत्रिमंडलीय समितियों के निर्णयों को सार्वजनिक करके सरकार की जवाबदेही और पारदर्शिता को बढ़ाते हैं।
हालाँकि मंत्रिमंडलीय समितियों को अपने कामकाज में कुछ चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है, जैसे:
- उनके पास सभी संबंधित मंत्रालयों और विभागों का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं हो सकता है, जिससे कुछ हितधारकों का बहिष्कार या हाशिये पर जाना हो सकता है।
- उनके पास बाध्यकारी निर्णय लेने हेतु पर्याप्त अधिकार या स्वायत्तता नहीं हो सकती है, खासकर उन मामलों पर जिनमें वित्तीय निहितार्थ या संवैधानिक प्रावधान शामिल हैं, जिनके लिये मंत्रिमंडल या संसद की मंज़ूरी की आवश्यकता हो सकती है।
- उनके पास अन्य मंत्रिमंडलीय समितियों, मंत्रिमंडल या प्रधानमंत्री के साथ प्रभावी समन्वय या संचार नहीं हो सकता है, जिसके परिणामस्वरूप नीतियों का दोहराव, ओवरलैप या विरोधाभास हो सकता है।
- उनके पास अपने निर्णयों के प्रभाव या परिणाम का आकलन करने के लिये पर्याप्त निगरानी या मूल्यांकन तंत्र नहीं हो सकता है।
- उनके पास पर्याप्त सार्वजनिक जाँच या निरीक्षण नहीं हो सकता है, जो उनकी जवाबदेही या पारदर्शिता से समझौता कर सकता है।
मंत्रिमंडलीय समितियों के प्रदर्शन और जवाबदेही में सुधार के लिये कुछ उपाय किये जा सकते हैं:
- उनके पास एक स्पष्ट और अच्छी तरह से परिभाषित जनादेश, दायरा एवं उद्देश्य होना चाहिये, जिसे सरकार व प्रधानमंत्री की प्राथमिकताओं तथा दृष्टिकोण के साथ जोड़ा जाना चाहिये।
- उनके पास एक संतुलित और समावेशी सदस्यता होनी चाहिये, जो मुद्दों तथा इसमें शामिल हितधारकों की विविधता एवं जटिलता को प्रतिबिंबित करे।
- उनके पास एक नियमित और व्यवस्थित रिपोर्टिंग तथा समीक्षा प्रणाली होनी चाहिये, जो यह सुनिश्चित करे कि उनके निर्णयों का समय पर एवं प्रभावी तरीके से संप्रेषण, कार्यान्वयन व मूल्यांकन किया जाए।
- उनके पास एक पारदर्शी और जवाबदेह प्रक्रिया होनी चाहिये, जिसमें जनता तथा नागरिक समाज की भागीदारी व प्रतिक्रिया शामिल होनी चाहिये तथा जो संसद एवं न्यायपालिका की जाँच व निगरानी के अधीन हो।
निष्कर्ष:
इन चुनौतियों का समाधान करके और इन उपायों को लागू करके, सरकारें मंत्रिमंडलीय समितियों के कामकाज को अनुकूलित कर सकती हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि वे कुशल समन्वय एवं निर्णय लेने के लिये प्रभावी उपकरण के रूप में काम करती हैं।