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Sambhav-2024

  • 19 Feb 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    दिवस 79

    Q1. भारत में प्रयुक्त मौद्रिक नीति के विभिन्न उपकरणों पर चर्चा कीजिये। इन उपकरणों की प्रभावशीलता का आकलन करते हुए इसमें सुधार हेतु संभावित उपाय बताइये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • मौद्रिक नीति का संक्षिप्त परिचय लिखिये।
    • भारत में प्रयुक्त मौद्रिक नीति के विभिन्न साधनों का वर्णन कीजिये।
    • उनकी प्रभावशीलता का आकलन कीजिये और उनकी प्रभावकारिता में सुधार हेतु संभावित उपाय बताइये।
    • तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    मौद्रिक नीति वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा किसी देश का मौद्रिक प्राधिकरण अर्थव्यवस्था में धन के निर्माण और आपूर्ति को नियंत्रित करता है। भारत में मौद्रिक नीति भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा तैयार और क्रियान्वित की जाती है, जिसका प्राथमिक उद्देश्य आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के साथ-साथ मूल्य स्थिरता बनाए रखना है।

    मुख्य भाग:

    भारत में प्रयुक्त मौद्रिक नीति के कुछ प्रमुख साधन:

    • पॉलिसी दरें:
      • पॉलिसी दरें, जैसे रेपो दर, रिवर्स रेपो दर और सीमांत स्थायी सुविधा (MSF) दर, मौद्रिक नीति कार्यान्वयन के लिये महत्त्वपूर्ण साधन हैं।
      • रेपो दर वह दर है, जिस पर RBI वाणिज्यिक बैंकों को पैसा उधार देता है, जबकि रिवर्स रेपो दर वह दर है, जिस पर वह उनसे उधार लेता है।
      • MSF दर वह दर है, जिस पर बैंक अनुमोदित सरकारी प्रतिभूतियों के बदले RBI से रातों रात धन उधार ले सकते हैं।
      • उदाहरण: जब RBI आर्थिक गतिविधि को प्रोत्साहित करना चाहता है, तो वह रेपो दर को कम कर सकता है, जिससे बैंकों के लिये उधार लेना सस्ता हो जाएगा, जिससे पूरी अर्थव्यवस्था में ब्याज दरें कम हो जाएंगी और इस प्रकार निवेश एवं खपत को बढ़ावा मिलेगा।
    • आरक्षित आवश्यकताएँ:
      • भारत में नकद आरक्षित अनुपात (CRR) और वैधानिक तरलता अनुपात (SLR) दो प्रमुख आरक्षित आवश्यकताएँ हैं।
      • जबकि CRR शुद्ध मांग और समय देनदारियों का प्रतिशत निर्धारित करता है, जिसे बैंकों को RBI के पास नकदी में रखना चाहिये, SLR सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश किये जाने वाले उनके जमा के अनुपात को अनिवार्य करता है।
      • इन अनुपातों को समायोजित करके, RBI बैंकिंग प्रणाली में तरलता को नियंत्रित कर सकता है, जिससे ऋण देने और व्यय पर असर पड़ेगा।
        • उदाहरण: उच्च मुद्रास्फीति के काल में RBI सिस्टम में अतिरिक्त तरलता को कम करने, मुद्रास्फीति के दबाव को रोकने के लिये CRR बढ़ा सकता है।
    • खुली बाज़ार कार्रवाई (OMO):
      • OMO में केंद्रीय बैंक द्वारा खुले बाज़ार में सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद और बिक्री शामिल है। प्रतिभूतियों को खरीदकर, RBI सिस्टम में तरलता लाता है, जबकि प्रतिभूतियों को बेचने से तरलता समाप्त हो जाती है।
      • OMO अल्पकालिक तरलता स्थितियों के प्रबंधन और ब्याज दरों को प्रभावित करने के लिये एक लचीला साधन हैं।
        • उदाहरण: तरलता की कमी से निपटने के लिये RBI बाज़ार से सरकारी बॉण्ड खरीदकर OMO का संचालन कर सकता है, जिससे तरलता आएगी और ब्याज दरें कम होंगी।
    • बाज़ार स्थिरीकरण योजना:
      • मुद्रास्फीति के संकट को कम करने के लिये, केंद्रीय बैंक अक्सर पूंजी प्रवाह के "स्थिरीकरण" के रूप में जाने जाने वाले प्रयास करते हैं।
      • एक सफल स्थिरीकरण कार्रवाई में पूंजी के प्रवाह को कम करने के लिये कम-से-कम अस्थायी रूप से, मौद्रिक आधार/धन आपूर्ति के घरेलू घटक को कम कर दिया जाता है।
        • इसे विदेशों में निजी निवेश को प्रोत्साहित करके या विदेशियों को स्थानीय बाज़ार से ऋण लेने की अनुमति देकर हासिल किया जा सकता है।

    भारत में मौद्रिक नीति की प्रभावशीलता:

    • सफलता:
      • मौद्रिक स्थिरता: भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने बैंक नोटों को जारी करने और मुद्रा एवं ऋण प्रणालियों का प्रबंधन करके मौद्रिक स्थिरता को सफलतापूर्वक बनाए रखा है।
      • मुद्रास्फीति नियंत्रण: मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण के प्रति RBI की प्रतिबद्धता से मूल्य स्तरों पर बेहतर नियंत्रण हुआ है। लचीले मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण ढाँचे को अपनाने से मुद्रास्फीति की उम्मीदों को नियंत्रित करने में मदद मिली है।
      • बदलती आर्थिक परिस्थितियों के अनुरूप विकास: विगत कुछ वर्षों में भारत की मौद्रिक नीति बदलती आर्थिक परिस्थितियों के अनुकूल विकसित हुई है। कई संकेतकों और आर्थिक चरों पर विचार करते हुए, RBI ने धन आपूर्ति पर एक संकीर्ण फोकस से अधिक व्यापक दृष्टिकोण की ओर हस्तांतरित कर दिया है।
    • चुनौतियाँ:
      • मौद्रिक संचरण: RBI द्वारा पॉलिसी दर में बदलाव के बावजूद, वाणिज्यिक बैंकों द्वारा उधार दरों में इन परिवर्तनों का पूर्ण प्रसारण एक चुनौती बनी हुई है।
      • तरलता प्रबंधन: बैंकिंग प्रणाली में तरलता को संतुलित करना महत्त्वपूर्ण है। अत्यधिक तरलता से मुद्रास्फीति बढ़ सकती है, जबकि अपर्याप्त तरलता आर्थिक विकास में बाधा बन सकती है। RBI को तरलता का प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने की चुनौती का सामना करना पड़ता है।
      • बाह्य कारक: भारत की मौद्रिक नीति वैश्विक आर्थिक स्थितियों से प्रभावित होती है, जिसमें विनिमय दरें, पूंजी प्रवाह और वस्तुओं की कीमतें शामिल हैं। ये बाह्य कारक नीतिगत निर्णयों को जटिल बना सकते हैं।
      • संरचनात्मक बाधाएँ: भारत की वित्तीय प्रणाली में संरचनात्मक बाधाएँ हैं, जैसे बैंकों में गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ (NPA) और वित्तीय समावेशन चुनौतियाँ।
    • सुधार के लिये प्रस्तावित उपाय:
      • संचरण तंत्र में वृद्धि करना: बैंकों के बीच अधिक प्रतिस्पर्द्धा सुनिश्चित करने, पारदर्शिता को बढ़ावा देने और नियामक बाधाओं को कम करके ऋण एवं जमा दरों में नीति दर परिवर्तनों के प्रसारण में सुधार प्राप्त किया जा सकता है।
      • ब्याज दर नीति:
        • ब्याज दर निर्णयों के लिये दूरदर्शी दृष्टिकोण अपनाना।
        • एक स्पष्ट मुद्रास्फीति लक्ष्य सीमा निर्धारित करना और इसे प्रभावी ढंग से संप्रेषित करना।
        • स्थिरता बनाए रखने के लिये विनिमय दर हस्तक्षेपों का विवेकपूर्ण ढंग से उपयोग करना।
      • संरचनात्मक मुद्दों को संबोधित करना: NPA को संबोधित करने और बैंकों के पुनर्पूंजीकरण के उपाय अर्थव्यवस्था के उत्पादक क्षेत्रों में ऋण का सुचारु प्रवाह सुनिश्चित कर मौद्रिक नीति की प्रभावशीलता में सुधार कर सकते हैं।
      • राजकोषीय नीति के साथ समन्वय: समग्र आर्थिक स्थिरता प्राप्त करने के लिये मौद्रिक नीति को राजकोषीय नीति के साथ समन्वयित करना। भारत में उधार दरों को सार्थक और निरंतर तरीके से कम करने के लिये राजकोषीय घाटे को कम करने पर ध्यान केंद्रित करना कहीं बेहतर होगा।
      • संचार और आगे का मार्गदर्शन: नीतिगत इरादों का स्पष्ट संचार और RBI द्वारा आगे का मार्गदर्शन बाज़ार की अपेक्षाओं को प्रबंधित करने तथा मौद्रिक नीति कार्यों की प्रभावशीलता को बढ़ाने में मदद कर सकता है।

    निष्कर्ष:

    भारत में मौद्रिक नीति के साधन आर्थिक गतिविधियों को प्रभावित करने और स्थिरता बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हालाँकि ये साधन कुछ हद तक प्रभावी रहे हैं, लेकिन उभरती चुनौतियों का समाधान करने तथा नीतिगत उद्देश्यों को प्राप्त करने में उनकी प्रभावकारिता बढ़ाने के लिये निरंतर मूल्यांकन और परिशोधन आवश्यक है।

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