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15 Feb 2024
सामान्य अध्ययन पेपर 3
अर्थव्यवस्था
दिवस 76
Q2. भारत में गरीबी रेखा का आकलन करने हेतु उपयोग की जाने वाली पद्धति पर चर्चा कीजिये। देश में विकसित हो रहे सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य के आलोक में गरीबी रेखा के पुनर्निर्धारण की आवश्यकता का मूल्यांकन कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- गरीबी रेखा का आकलन करने के लिये उपयोग की जाने वाली पद्धति का परिचय देते हुए उत्तर प्रारंभ कीजिये।
- देश में विकसित हो रहे सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य के आलोक में गरीबी रेखा को पुन: व्यवस्थित करने की आवश्यकता बताइये।
- तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
भारत में गरीबी रेखा का अनुमान वर्ष 2014 में रंगराजन समिति द्वारा अनुशंसित पद्धति का उपयोग करके लगाया जाता है, जिसने 2009 में तेंदुलकर समिति द्वारा अपनाई गई कार्यप्रणाली को अद्यतन किया। रंगराजन समिति ने गरीबी की बहुआयामी प्रकृति को ध्यान में रखते हुए ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों के लिये एक समान कार्यप्रणाली का उपयोग करने का सुझाव दिया।
मुख्य भाग:
भारत में गरीबी रेखा की आकलन पद्धति:
- आय आधारित पद्धति:
- गरीबी रेखा मुख्यतः राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) द्वारा एकत्र किये गए उपभोग व्यय डेटा पर आधारित है।
- तेंदुलकर समिति ने प्रारंभ में गरीबी का अनुमान लगाने के लिये कैलोरी सेवन पद्धति का उपयोग किया था, लेकिन बाद में यह उपभोग व्यय-आधारित दृष्टिकोण में स्थानांतरित हो गया, जो अधिक व्यापक है।
- रंगराजन समिति ने उपभोग व्यय दृष्टिकोण को जारी रखा लेकिन बदलते उपभोग पैटर्न को प्रतिबिंबित करने के लिये उपभोग टोकरी का अद्यतन किया।
- उपभोग टोकरी और कीमतें:
- उपभोग टोकरी में भोजन, शिक्षा, स्वास्थ्य और वस्त्र जैसी वस्तुएंँ शामिल हैं, घरेलू बजट में उनके महत्त्व के आधार पर प्रत्येक श्रेणी को यह भार प्रदान किया गया है।
- उपभोग टोकरी में वस्तुओं की कीमतें सरकारी एजेंसियों और बाज़ार सर्वेक्षणों सहित विभिन्न स्रोतों के आधार पर निर्धारित की जाती हैं।
- मुद्रास्फीति और मूल्य भिन्नता के लिये समायोजन:
- शहरी क्षेत्रों में औद्योगिक श्रमिकों के लिये उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI-IW) और ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि श्रमिकों के लिये उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI-AL) का उपयोग करके गरीबी रेखा को मुद्रास्फीति के लिये समायोजित किया जाता है।
- गरीबी रेखा का आकलन करते समय राज्यों और क्षेत्रों में मूल्य भिन्नता पर भी विचार किया जाता है।
- बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI):
- आय-आधारित गरीबी रेखा के अलावा भारत गरीबी को मापने के लिये MPI का भी उपयोग करता है, जो शिक्षा, स्वास्थ्य और जीवन स्तर जैसे कारकों पर विचार करता है।
- MPI गरीबी का अधिक समग्र दृष्टिकोण प्रदान करता है और हस्तक्षेप को अधिक प्रभावी ढंग से लक्षित करने में सहायता करता है।
गरीबी रेखा को पुनः व्यवस्थित करने की आवश्यकता:
- बदलता सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य:
- भारत का सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य आय स्तर, उपभोग पैटर्न और जीवन स्तर में बदलाव के साथ निरंतर विकसित हो रहा है।
- आलोचकों का तर्क है कि ग्रामीण क्षेत्रों में ₹27.2 प्रतिदिन और शहरी क्षेत्रों में ₹33.3 प्रतिदिन के लिये तेंदुलकर समिति द्वारा सुझाए गए गरीबी रेखा पर आधारित वर्तमान आधिकारिक उपाय बहुत कम हैं।
- नीतिगत हस्तक्षेप का प्रभाव:
- कल्याणकारी योजनाओं और आर्थिक सुधारों के कार्यान्वयन जैसे नीतिगत हस्तक्षेप गरीबी के स्तर पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डाल सकते हैं।
- गरीबी रेखा को पुन: व्यवस्थित करने से मनरेगा, PMAY आदि जैसे हस्तक्षेपों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करने और आवश्यक समायोजन करने में सहायता मिलती है।
- क्षेत्रीय असमानताएँ:
- भारत में आय स्तर और जीवन स्तर में महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय असमानताएँ हैं।
- गरीबी रेखा को पुनः व्यवस्थित करने से विशेष श्रेणी की स्थिति आदि के माध्यम से इन क्षेत्रीय विविधताओं को ध्यान में रखते हुए निर्धनता अनुमानों को अनुकूलित करने की अनुमति मिलती है।
- वैश्विक तुलना:
- अन्य देशों के साथ गरीबी के स्तर की तुलना करने और अंतर्राष्ट्रीय मानकों को पूरा करने के लिये गरीबी रेखा को पुन: व्यवस्थित करना आवश्यक है।
- यह सतत् विकास लक्ष्य (SDG) 1, 2 और 3 जैसे वैश्विक विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में भारत की प्रगति का आकलन करने में मदद करता है।
- डेटा की सटीकता और विश्वसनीयता:
- गरीबी रेखा का नियमित पुन: अंशांकन (recalibration) यह सुनिश्चित करता है कि वे संयुक्त राष्ट्र राष्ट्रीय लेखा प्रणाली के अनुसार नवीनतम और सबसे विश्वसनीय डेटा पर आधारित हैं।
- यह निर्धनता अनुमानों की विश्वसनीयता बनाए रखने में मदद करता है और पुराने आँकड़ों के कारण होने वाली विसंगतियों से बचाता है।
निष्कर्ष:
भारत में गरीबी रेखा का आकलन करने के लिये उपयोग की जाने वाली पद्धति व्यापक है, जिसमें उपभोग पैटर्न, मुद्रास्फीति और क्षेत्रीय विविधताओं जैसे विभिन्न कारकों को ध्यान में रखा जाता है। यह सुनिश्चित करने के लिये गरीबी रेखाओं को पुन: व्यवस्थित करना आवश्यक है कि वे उभरते सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य को प्रतिबिंबित करें और नीति निर्माण एवं मूल्यांकन हेतु प्रासंगिक रहें।