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15 Feb 2024
सामान्य अध्ययन पेपर 3
अर्थव्यवस्था
दिवस 76
Q1. भारत में LPG (उदारीकरण, निजीकरण, वैश्वीकरण) सुधारों को गति देने वाले कारकों का परीक्षण कीजिये। भारतीय अर्थव्यवस्था पर उनके प्रभावों की चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- उत्तर की शुरुआत परिचय के साथ कीजिये, जो प्रश्न के लिये एक संदर्भ निर्धारित करता है।
- उन कारकों पर चर्चा कीजिये, जिन्होंने भारत में LPG सुधारों को प्रेरित किया।
- भारतीय अर्थव्यवस्था पर उनके प्रभावों की रूपरेखा प्रस्तुत कीजिये।
- तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
भारत में LPG (उदारीकरण, निजीकरण, वैश्वीकरण) सुधार वर्ष 1991 में प्रारंभ हुए थे, जो उस समय भारत के सामने आए गंभीर आर्थिक संकट की प्रतिक्रिया थी, जिसमें भुगतान संतुलन संकट, न्यूनतम GDP वृद्धि, उच्च मुद्रास्फीति और बढ़ता राजकोषीय घाटे का संकट शामिल था।
मुख्य भाग:
LPG सुधारों को गति देने वाले कारक:
- भुगतान संतुलन संकट:
- वर्ष 1990-91 में भारत विदेशी ऋण के उच्च स्तर और घटते विदेशी मुद्रा भंडार के कारण भुगतान संतुलन के गंभीर संकट का सामना कर रहा था।
- इससे निर्यात को बढ़ावा देने और विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिये तात्कालिक उपाय आवश्यक हो गए थे।
- आर्थिक स्थिरता:
- वर्ष 1980 के दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था न्यूनतम GDP वृद्धि का अनुभव कर रही थी, औसतन लगभग 3.5%।
- मुद्रास्फीति 6.7% से बढ़कर 16.7% हो गई, जिससे आर्थिक स्थिति बदतर हो गई।
- यह मुख्य रूप से सार्वजनिक क्षेत्र की अक्षमता का परिणाम था, जो प्रमुख उद्योगों पर हावी था, जिससे न्यूनतम उत्पादकता और खराब गुणवत्ता वाले उत्पाद सामने आए।
- राजकोषीय असंतुलन:
- सरकार का राजकोषीय घाटा अस्थिर था, जिसका मुख्य कारण अत्यधिक सरकारी व्यय और अकुशल सब्सिडी थी।
- सार्वजनिक ऋण और ब्याज कुल सरकारी व्यय का 36.4% था।
- इससे मुद्रास्फीति का दबाव बढ़ा और निजी निवेश का बाह्य प्रवाह देखा गया।
- बाह्य कारक:
- भारत के प्रमुख व्यापारिक साझेदार सोवियत संघ के पतन और खाड़ी युद्ध का भारत की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।
- इन घटनाओं ने भारत को वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ एकीकृत होने और अपने व्यापार भागीदारों में विविधता लाने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।
भारतीय अर्थव्यवस्था पर LPG सुधारों का प्रभाव:
- आर्थिक विकास:
- LPG सुधारों ने उच्च आर्थिक विकास के दौर की शुरुआत की, सुधारों के बाद के वर्षों में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि औसतन लगभग 7% प्रतिवर्ष रही।
- यह बढ़े हुए निवेश, उत्पादकता लाभ और अधिक प्रतिस्पर्द्धी व्यापारिक माहौल से प्रेरित था।
- प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI):
- उदारीकरण ने अर्थव्यवस्था के कई क्षेत्रों को एफडीआई के लिये खोल दिया, जिससे प्रवाह में वृद्धि हुई, उदाहरण के लिये वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान 71 बिलियन अमेरिकी डॉलर का एफडीआई प्रवाह देखा गया।
- एफडीआई ने पूंजी, प्रौद्योगिकी और प्रबंधकीय विशेषज्ञता प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, मूलतः दूरसंचार, ऑटोमोबाइल एवं फार्मास्यूटिकल्स जैसे क्षेत्रों में।
- निर्यात वृद्धि:
- निर्यात प्रोत्साहन क्षेत्र और व्यापार उदारीकरण सहित निर्यात-उन्मुख नीतियों के कारण निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
- वैश्विक व्यापार में भारत की भागीदारी वर्ष 1991 के 0.5% से बढ़कर वर्ष 2020 में लगभग 2% हो गई।
- औद्योगिक विकास:
- निजीकरण और उदारीकरण के कारण दूरसंचार, विमानन तथा बैंकिंग जैसे उद्योगों में प्रतिस्पर्द्धा तथा दक्षता बढ़ी।
- इसके परिणामस्वरूप उच्च उत्पादकता, बेहतर गुणवत्ता वाले उत्पाद और बेहतर सेवाएँ प्राप्त हुईं।
- रोज़गार सृजन:
- सुधारों से नए उद्योगों और क्षेत्रों का विकास हुआ, जिससे रोज़गार के अवसर उत्पन्न हुए।
- हालाँकि ऑक्सफैम इंडिया रिपोर्ट के अनुसार, लाभ समान रूप से वितरित नहीं किये गए, जिससे आय असमानता के बारे में चिंताएँ उत्पन्न हुईं।
- राजकोषीय समेकन:
- सुधारों का उद्देश्य व्यय युक्तिकरण और कर सुधार जैसे उपायों के माध्यम से राजकोषीय घाटे को कम करना है।
- हालाँकि विकास हुआ है, लेकिन भारत का राजकोषीय घाटा चिंता का विषय बना हुआ है, उदाहरण के लिये वर्ष 1990-91 में यह सकल घरेलू उत्पाद का 12.7% था, जबकि वर्ष 2019 में यह घटकर 3.8% हो गया।
- सामाजिक प्रभाव:
- LPG सुधारों का मिश्रित प्रभाव सामाज पर पड़ा है। इससे एक मध्यम वर्ग का उदय हुआ और कई लोगों के जीवन स्तर में सुधार हुआ है।
- हालाँकि MoHUA के ईज़ ऑफ लिविंग इंडेक्स के अनुसार, इसके परिणामस्वरूप पारंपरिक आजीविका का विस्थापन हुआ और शहरी-ग्रामीण असमानताओं में वृद्धि हुई।
निष्कर्ष:
LPG सुधारों ने भारतीय अर्थव्यवस्था में परिवर्तन ला दिया है, जिससे यह अधिक खुली, प्रतिस्पर्द्धी और लचीली बन गई है। हालाँकि इन सुधारों से उच्च विकास एवं वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ एकीकरण सहित महत्त्वपूर्ण लाभ भी प्राप्त हुए हैं, लेकिन आय असमानता तथा पर्यावरणीय गिरावट जैसी चुनौतियाँ भी बढ़ी हैं, जिनका समाधान खोजने की आवश्यकता है।