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Sambhav-2024

  • 13 Feb 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल

    दिवस 74

    Q2. भारत में नीली क्रांति की अवधारणा को समझाइये। इससे संबंधित चुनौतियों पर चर्चा करते हुए देश में मत्स्य पालन क्षेत्रक के विकास को बढ़ावा देने हेतु प्रभावी उपाय बताइये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भारत में नीली क्रांति की अवधारणा को समझाइये।
    • देश में मत्स्य पालन क्षेत्र से जुड़ी चुनौतियों का वर्णन कीजिये।
    • देश में मत्स्य पालन क्षेत्र के विकास को बढ़ावा देने के लिये उपाय सुझाइये।
    • तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    भारत में नीली क्रांति देश के मत्स्य पालन और जलीय कृषि क्षेत्र को परिवर्तित करने के उद्देश्य से की गई पहलों की एक शृंखला को संदर्भित करती है। इसे भारत में 7वीं पंचवर्षीय योजना (FYP) के दौरान लॉन्च किया गया था जो वर्ष 1985 से 1990 तक चली थी।

    मुख्य भाग:

    भारत में नीली क्रांति के प्रमुख परिणाम:

    • मत्स्य किसान विकास एजेंसी (FFDA) ने मत्स्य प्रजनन, पालन, विपणन और निर्यात की नई तकनीकों को अपनाकर जलीय कृषि में सुधार लाया।
    • 8वीं FYP के दौरान वर्ष 1992-97 तक, गहन समुद्री मत्स्य पालन कार्यक्रम शुरू किया गया था जिसमें बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ सहयोग को प्रोत्साहित किया गया था।
    • समय के साथ तूतीकोरिन, पोरबंदर, विशाखापत्तनम, कोच्चि और पोर्ट ब्लेयर में मत्स्याग्रह हेतु बंदरगाह स्थापित किये गए।
    • भारत ने विगत दशक में मछली और मत्स्य उत्पादों के उत्पादन में 14.8% की औसत वार्षिक वृद्धि दर्ज की, जबकि इसी अवधि में वैश्विक औसत 7.5% थी।
    • मत्स्याग्रह भारत में कई समुदायों के लिये आजीविका का प्राथमिक स्रोत बन गया है और देश 47,000 करोड़ रुपए से अधिक के निर्यात के साथ विश्व का दूसरा सबसे बड़ा मत्स्य उत्पादक है।
    • मत्स्य पालन और जलीय कृषि उत्पादन भारत की GDP में लगभग 1% तथा कृषि GDP में 5% से अधिक का योगदान देता है।

    भारत में मत्स्य पालन क्षेत्र में चुनौतियाँ:

    • अत्यधिक मत्स्याग्रह और समाप्त होते मत्स्य भंडार: मत्स्याग्रह के अत्यधिक दबाव और विनाशकारी मत्स्याग्रह प्रथाओं के कारण मत्स्य भंडार के अत्यधिक दोहन के कारण, विशेष रूप से तटीय क्षेत्रों में मत्स्य आबादी में गिरावट आई है।
    • अवैध, असूचित और अनियमित (IUU) मत्स्याग्रह: IUU मत्स्याग्रह की प्रथाओं में अनधिकृत मत्स्याग्रह वाले जहाज़, निषिद्ध क्षेत्रों में मत्स्याग्रह शामिल है, मत्स्य भंडार के प्रबंधन और संरक्षण के प्रयासों को कमज़ोर करती हैं।
    • प्रभावी प्रवर्तन तंत्र और एजेंसियों के बीच समन्वय की कमी समस्या को बढ़ा देती है।
    • पर्यावरणीय क्षरण: प्रदूषण, आवास विनाश और तटीय विकास के कारण मूँगा चट्टानों, मैंग्रोव एवं मुहाना सहित समुद्री तथा तटीय आवासों का क्षरण, समुद्री पारिस्थितिक तंत्र के स्वास्थ्य व लचीलेपन को संकट में डालता है।
    • जलवायु परिवर्तन के प्रभाव: समुद्र का बढ़ता तापमान, समुद्र का अम्लीकरण, बदलती धाराएँ और जलवायु परिवर्तन से जुड़ी चरम मौसमी घटनाएँ मत्स्य पालन प्रबंधन एवं अनुकूलन के लिये महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ उत्पन्न करती हैं।
    • बुनियादी ढाँचे और कटाई के बाद की सुविधाओं की कमी: कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं, बर्फ संयंत्रों, परिवहन नेटवर्क और प्रसंस्करण इकाइयों सहित अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे, मत्स्य उत्पादों की कुशल हैंडलिंग, संरक्षण एवं विपणन में बाधा डालते हैं।
    • वित्त और ऋण तक पहुंच: औपचारिक ऋण और वित्तीय सेवाओं तक सीमित पहुँच मत्स्य पालन के बुनियादी ढाँचे, प्रौद्योगिकी अपनाने तथा मूल्य-संवर्द्धन गतिविधियों में निवेश को बाधित करती है।
    • अपर्याप्त अनुसंधान और विस्तार सेवाएँ: मत्स्य पालन अनुसंधान, डेटा संग्रह और विस्तार सेवाओं में अपर्याप्त निवेश मछुआरों एवं जलीय कृषि विशेषज्ञों के लिये वैज्ञानिक जानकारी तथा तकनीकी सहायता की उपलब्धता को सीमित करता है।
    • सीमित बाज़ार पहुँच: सीमित बाज़ार पहुँच और मूल्य अस्थिरता मछुआरों, विशेष रूप से छोटे पैमाने के मछुआरों एवं मत्स्य पालन पर निर्भर ग्रामीण समुदायों की लाभप्रदता तथा आजीविका को प्रभावित करती है।

    मत्स्य पालन क्षेत्र में विकास को बढ़ावा देने के उपाय:

    • बुनियादी ढाँचे का विकास: मत्स्य उत्पादों की कटाई के बाद की हैंडलिंग और विपणन में सुधार के लिये कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं, परिवहन बुनियादी ढाँचे एवं प्रसंस्करण इकाइयों के विकास में निवेश करना।
    • प्रौद्योगिकी हस्तांतरण: प्रशिक्षण कार्यक्रमों और अनुसंधान साझेदारियों के माध्यम से रीसर्क्युलेटिंग एक्वाकल्चर सिस्टम (RAS) तथा आनुवंशिक रूप से बेहतर मत्स्य नस्लों सहित आधुनिक जलीय कृषि प्रौद्योगिकियों को अपनाने को बढ़ावा देना।
    • सतत् प्रथाएँ: मत्स्य संसाधनों की दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये मत्स्यग्रह गतिविधियों को विनियमित करने, महत्त्वपूर्ण आवासों की रक्षा करने और प्रदूषण को कम करने के उपायों को लागू करना।
    • बाज़ार संपर्क: मछुआरा उत्पादक संगठन (FPO), खुदरा विक्रेताओं और निर्यातकों के साथ बाज़ार संपर्क एवं उच्च गुणवत्ता वाले मत्स्य उत्पादों की ब्रांडिंग जैसी पहलों के माध्यम से बाज़ार पहुँच को सुविधाजनक बनाना तथा मूल्य संवर्द्धन को बढ़ावा देना।
    • ऋण और बीमा: बाज़ार में उतार-चढ़ाव और प्राकृतिक आपदाओं के प्रति उनका लचीलापन बढ़ाने के लिये मछुआरों को ऋण सुविधाओं, बीमा योजनाओं तथा इनपुट लागत के लिये सब्सिडी के माध्यम से वित्तीय सहायता प्रदान करना।
    • क्षमता निर्माण: मछुआरों और जलीय कृषि विशेषज्ञों को तकनीकी सहायता, प्रशिक्षण एवं सलाहकार सहायता प्रदान करने के लिये मत्स्य पालन विभाग, अनुसंधान संस्थानों तथा विस्तार सेवाओं सहित संस्थागत क्षमताओं को मज़बूत करना।
    • नीति समर्थन: मत्स्य पालन क्षेत्र के सतत् विकास के लिये अनुकूल नीतियाँ बनाना और लागू करना, जिसमें संसाधन प्रबंधन हेतु नियामक ढाँचे, नवाचार एवं उद्यमिता के लिये प्रोत्साहन योजनाएँ तथा बाज़ार-उन्मुख सुधार शामिल हैं।
      • प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना का लक्ष्य उचित नीति, विपणन और बुनियादी ढाँचे के समर्थन के माध्यम से भारत को मत्स्य एवं जलीय उत्पादों के लिये हॉटस्पॉट में परिवर्तित करना है।

    निष्कर्ष:

    भारत में मत्स्य पालन क्षेत्र खाद्य सुरक्षा, आर्थिक विकास और पर्यावरणीय स्थिरता के लिये अत्यधिक महत्त्व रखता है। मत्स्य पालन क्षेत्र के भविष्य को आकार देने और वर्तमान एवं भविष्य की पीढ़ियों के लाभ के लिये इसकी संपूर्ण क्षमता का दोहन करने में सतत् प्रथाओं, तकनीकी नवाचार तथा प्रभावी शासन को अपनाना महत्त्वपूर्ण होगा।

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