Q1. भारत में पशुपालन तथा डेयरी उद्योग से संबंधित अवसरों एवं चुनौतियों का परीक्षण कीजिये। देश में पशुपालन क्षेत्रक को मज़बूत करने हेतु प्रभावी रणनीतियाँ बताइये। (250 शब्द)
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- उत्तर की शुरुआत परिचय के साथ कीजिये, जो प्रश्न के लिये एक संदर्भ निर्धारित करता है।
- भारत में पशुपालन और डेयरी उत्पादन की उपलब्धियों एवं चुनौतियों को लिखिये।
- देश में पशुधन क्षेत्र को मज़बूत करने के लिये रणनीतियों को सुझाइये।
- तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
पशुपालन और डेयरी उत्पादन भारत की अर्थव्यवस्था, समाज एवं खाद्य सुरक्षा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पशुपालन और डेयरी उत्पादन लाखों ग्रामीण परिवारों, मूलतः छोटे तथा सीमांत किसानों एवं भूमिहीन कृषकों को आजीविका के अवसर प्रदान करते हैं।
मुख्य भाग:
भारत में पशुपालन और डेयरी उत्पादन में उपलब्धियाँ:
- दुग्ध उत्पादन में वृद्धि:
- डेयरी भारत में सबसे बड़ी कृषि वस्तु है, जो राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में 5% का योगदान देती है और 8 करोड़ से अधिक किसानों को सीधे रोज़गार प्रदान करती है।
- भारत दुग्ध उत्पादन में प्रथम स्थान पर है, जो वैश्विक दुग्ध उत्पादन का लगभग 23% है।
- ऑपरेशन फ्लड (श्वेत क्रांति) और राष्ट्रीय डेयरी योजना जैसी सरकारी पहलें डेयरी कृषि को बढ़ावा देने एवं दुग्ध उत्पादन बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण रही हैं।
- पशुधन उत्पादकता में प्रगति:
- उन्नत प्रजनन तकनीकों और वैज्ञानिक प्रबंधन प्रथाओं को अपनाने से पशुधन उत्पादकता में वृद्धि हुई है।
- कुल कृषि और संबद्ध क्षेत्र सकल मूल्य वर्द्धन (GVA) में पशुधन क्षेत्र का योगदान वर्ष 2014-15 के 24.38% से बढ़कर 2020-21 में 30.87% हो गया है।
- अंडा एवं मांस उत्पादन:
- विश्व स्तर पर भारत अंडा उत्पादन में तीसरे और मांस उत्पादन में 8वें स्थान पर है।
- अंडे का उत्पादन वर्ष 2014-15 के 78.48 बिलियन से बढ़कर 2021-22 में 129.60 बिलियन हो गया है, जो प्रतिवर्ष 7.4% की दर से बढ़ रहा है।
- रोग नियंत्रण और पशु चिकित्सा सेवाएँ:
- खुरपका और मुँहपका रोग (FMD) तथा ब्रुसेलोसिस जैसी बीमारियों को नियंत्रित करने के प्रयासों से मृत्यु दर में कमी आई है, जिससे पशु स्वास्थ्य में सुधार हुआ है।
- पशु चिकित्सा सेवाओं और टीकाकरण कार्यक्रमों के विस्तार से रोग निगरानी एवं प्रबंधन में वृद्धि हुई है।
पशुपालन और डेयरी उत्पादन में चुनौतियाँ:
- पारंपरिक नस्लों की कम उत्पादकता:
- भारत में कई क्षेत्र अभी भी पारंपरिक और कम उपज देने वाली पशुधन नस्लों पर निर्भर हैं, जिससे उत्पादकता एवं लाभप्रदता सीमित है।
- बेहतर नस्लों और प्रजनन प्रौद्योगिकियों तक पहुँच की कमी पशुधन उत्पादकता में सुधार के प्रयासों में बाधा डालती है।
- चारा एवं चारे की कमी:
- गुणवत्तापूर्ण चारे और चारे की अपर्याप्त उपलब्धता, विशेष रूप से शुष्क मौसम के दौरान पशु स्वास्थ्य एवं दुग्ध उत्पादन को प्रभावित करती है।
- चरागाह भूमि के क्षरण और अपर्याप्त चारे की खेती से चारे की कमी की समस्या बढ़ जाती है।
- खंडित डेयरी उद्योग:
- भारत में डेयरी उद्योग अत्यधिक विखंडित है, जिसमें बड़ी संख्या में छोटे पैमाने के और असंगठित डेयरी फॉर्म हैं।
- विखंडन से दुग्ध संग्रह, प्रसंस्करण और विपणन में अक्षमता की स्थिति उत्पन्न होती है, जिसके परिणामस्वरूप दुग्ध की कीमतों में उतार-चढ़ाव के कारण किसानों के लिये सौदेबाज़ी करना भी मुश्किल होता है।
- जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय क्षरण:
- अनियमित वर्षा पैटर्न और बढ़ते तापमान जैसे जलवायु परिवर्तन के प्रभाव चारा उपलब्धता, जल संसाधन एवं पशु स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं।
- भूमि क्षरण और जल की कमी सहित पर्यावरणीय क्षरण, सतत् पशुधन कृषि के लिये चुनौतियाँ उत्पन्न करता है।
पशुधन क्षेत्र को मज़बूत करने की रणनीतियाँ:
- अधिक उपज देने वाली नस्लों को बढ़ावा देना: चयनात्मक प्रजनन कार्यक्रमों और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पहलों के माध्यम से उच्च उपज देने वाली तथा रोग प्रतिरोधी पशुधन नस्लों को अपनाने के लिये प्रोत्साहित करना।
- किसानों को बेहतर नस्लों और आधुनिक प्रजनन तकनीकों तक पहुँचने के लिये प्रोत्साहन एवं सहायता प्रदान करना।
- उन्नत चारा और चारा प्रबंधन: पशुधन के लिये वर्ष भर पौष्टिक आहार की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिये उन्नत चारा कृषि प्रथाओं, सिलेज बनाने तथा चारा संरक्षण तकनीकों को बढ़ावा देना।
- शुष्कता प्रतिरोधी चारे की किस्मों और नवोन्वेषी चारा अनुपूरकों के अनुसंधान एवं विकास में निवेश करना।
- पशु चिकित्सा सेवाओं और रोग नियंत्रण में निवेश: बीमारियों के प्रसार को नियंत्रित करने और पशु स्वास्थ्य में सुधार के लिये पशु चिकित्सा सेवाओं, रोग निगरानी तथा टीकाकरण कार्यक्रमों को मज़बूत करना।
- रोग-मुक्त क्षेत्र स्थापित करना और रोग के प्रकोप को रोकने के लिये जैव सुरक्षा उपाय लागू करना।
- डेयरी सहकारी समितियों और मूल्य संवर्द्धन की सुविधा: दुग्ध संग्रह, प्रसंस्करण और विपणन को सुव्यवस्थित करने के लिये डेयरी सहकारी समितियों एवं उत्पादक संगठनों की स्थापना तथा विकास का समर्थन करना।
- डेयरी किसानों के लिये बाज़ार पहुँच और लाभप्रदता बढ़ाने के लिये कोल्ड चेन बुनियादी ढाँचे, दुग्ध प्रसंस्करण सुविधाओं एवं मूल्य र्द्धित डेयरी उत्पादों में निवेश करना।
- सतत् पशुधन कृषि प्रथाओं को बढ़ावा देना: जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने और पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ावा देने के लिये कृषि वानिकी, एकीकृत कृषि प्रणाली एवं संरक्षण कृषि जैसी सतत् कृषि प्रथाओं को अपनाने के लिये प्रोत्साहित करना।
- किसानों को स्थायी पशुधन प्रबंधन तकनीकों और संसाधन संरक्षण प्रथाओं पर प्रशिक्षण एवं विस्तार सेवाएँ प्रदान करना।
निष्कर्ष:
भारत में स्थायी पशुधन क्षेत्र को बढ़ावा देना खाद्य सुरक्षा प्राप्त करने, ग्रामीण आजीविका को बढ़ावा देने और पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये अनिवार्य है। स्थायी पशुधन क्षेत्र न केवल किसानों और उपभोक्ताओं को लाभान्वित करेगा बल्कि लंबे समय में भारत के समग्र आर्थिक विकास एवं सामाजिक कल्याण में भी योगदान देगा।