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12 Feb 2024
सामान्य अध्ययन पेपर 1
भूगोल
भारत में कदन्न की आवश्यकता के साथ इसकी कृषि एवं उपभोग से संबंधित सीमाओं का परीक्षण कीजिये। इन बाधाओं को दूर करने तथा कदन्न की कृषि और उपभोग को बढ़ावा देने हेतु उपाय बताइये। (250 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- कदन्न की कृषि के बारे में संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- भारत में कदन्न की कृषि और उपभोग की आवश्यकता एवं सीमाओं पर चर्चा कीजिये।
- देश में कदन्न की कृषि एवं उपभोग को बढ़ावा देने के उपाय बताइये।
- यथोचित निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
कदन्न एक सामूहिक शब्द है जो उन छोटे-बीज वाली वार्षिक फसलों (मुख्य रूप से समशीतोष्ण, उपोष्णकटिबंधीय और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में) को संदर्भित करता है जिनकी कृषि अनाज फसलों के रूप में की जाती है। भारत विश्व में कदन्न का सबसे बड़ा उत्पादक है।
मुख्य भाग:
भारत में कदन्न की कृषि और उपभोग की आवश्यकता:
- पोषण संबंधी लाभ: कदन्न अत्यधिक पौष्टिक अनाज है, जो प्रोटीन, फाइबर, विटामिन और खनिजों से भरपूर है। आहार में कदन्न शामिल करने से कुपोषण एवं सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी को दूर करने (खासकर संवेदनशील आबादी के बीच) में मदद मिल सकती है।
- जलवायु अनुकूलन: कदन्न विभिन्न कृषि-जलवायु परिस्थितियों के लिये अच्छी तरह से अनुकूलित है, जिसमें कम वर्षा और मृदा की निम्न उर्वरता वाले शुष्क तथा अर्द्ध-शुष्क क्षेत्र शामिल हैं।
- जल और भूमि उपयोग दक्षता: कदन्न अपेक्षाकृत सूखा-सहिष्णु है और चावल एवं गेहूँ जैसी जल-गहन फसलों की तुलना में इसमें कम जल तथा इनपुट की आवश्यकता होती है।
- आय विविधीकरण: कदन्न की कृषि छोटे किसानों के लिये आय विविधीकरण के अवसर प्रदान करती है, विशेष रूप से वर्षा आधारित और सीमांत क्षेत्रों में जहाँ अन्य फसलें अच्छा उत्पादन नहीं दे सकती हैं।
भारत में कदन्न की कृषि और उपभोग की सीमाएँ:
- कम बाज़ार मांग: अपने पोषण संबंधी लाभों के बावजूद, चावल और गेहूँ जैसी अन्य मुख्य अनाजों की तुलना में कदन्न की सीमित बाज़ार मांग बनी हुई है।
- प्रसंस्करण और मूल्य संवर्धन: कदन्न के संदर्भ में प्रसंस्करण एवं मूल्य संवर्धन प्रौद्योगिकियाँ अविकसित हैं, जिसके परिणामस्वरूप बाज़ार में प्रसंस्कृत कदन्न उत्पादों की सीमित उपलब्धता रहती है।
- धारणा और प्राथमिकता: कदन्न को अक्सर "गरीब आदमी का भोजन" या पारंपरिक एवं हाशिए पर रहने वाले समुदायों का भोजन माना जाता है, जिससे शहरी उपभोक्ताओं के बीच कदन्न को अपने आहार में शामिल करने की प्रेरणा कम रहती है।
- उपज परिवर्तनशीलता: चावल और गेहूँ जैसी अधिक उपज देने वाली अनाज फसलों की तुलना में कदन्न की पैदावार आमतौर पर कम होती है, जो किसानों को बड़े पैमाने पर कदन्न की कृषि अपनाने से हतोत्साहित कर सकती है।
कदन्न की कृषि और उपभोग को बढ़ावा देने के उपाय:
- बाज़ार संवर्धन: विभिन्न उपभोक्ता वर्गों को लक्षित करने वाले कदन्न -आधारित उत्पादों की एक विविध शृंखला विकसित करने एवं विपणन करने के लिये खाद्य उद्योग के हितधारकों के साथ सहयोग करना आवश्यक है।
- बाज़ार पहुँच और सौदेबाज़ी की शक्ति बढ़ाने के लिये बाज़ार संपर्क को सुविधाजनक बनाना तथा उत्पादक सहकारी समितियों एवं किसान-उत्पादक संगठनों (FPOs) की स्थापना करना आवश्यक है।
- मूल्य शृंखला विकास: फसल कटाई के बाद के बुनियादी ढाँचे, प्रसंस्करण सुविधाओं एवं गुणवत्ता आश्वासन तंत्र में निवेश करके कदन्न मूल्य शृंखला को मज़बूत बनाना चाहिये।
- अनुसंधान और नवाचार: अधिक पैदावार के साथ कीट एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता तथा पोषण गुणवत्ता बढ़ाने के लिये कदन्न की किस्मों में सुधार के क्रम में अनुसंधान और विकास पहल में निवेश करना चाहिये।
- नीति समर्थन: कदन्न की कृषि को राष्ट्रीय कृषि विकास कार्यक्रमों में एकीकृत करने के साथ सब्सिडी एवं ऋण सहायता के माध्यम से कदन्न आधारित फसल प्रणालियों को प्रोत्साहित करना चाहिये।
- कदन्न के उत्पादन एवं उपभोग को बढ़ावा देने के लिये वर्ष 2007 में राष्ट्रीय कदन्न मिशन (NMM) शुरू किया गया था।
- क्षमता निर्माण: कदन्न की कृषि के लिये उन्नत कृषि पद्धतियों, बीज चयन एवं फसल प्रबंधन तकनीकों के संदर्भ में किसानों को प्रशिक्षण प्रदान करना चाहिये।
- उपभोक्ता जागरूकता: आधुनिक पसंद और प्राथमिकताओं के अनुरूप कदन्न-आधारित व्यंजनों एवं पाक नवाचारों को प्रदर्शित करने के लिये पोषण विशेषज्ञों, रसोइयों तथा खाद्य ब्लॉगर्स के साथ सहयोग करना चाहिये।
- संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) ने वर्ष 2023 को अंतर्राष्ट्रीय कदन्न वर्ष घोषित किया।
निष्कर्ष:
रणनीतिक हस्तक्षेपों एवं निरंतर प्रयासों के माध्यम से भारत के पास देश में खाद्य सुरक्षा, पोषण एवं पर्यावरणीय स्थिरता प्राप्त करने के क्रम में कदन्न की कृषि एवं उपभोग के लाभों को अधिकतम करने का अवसर है।