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Sambhav-2024

  • 10 Feb 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल

    दिवस 72

    Q1. भारत में परमाणु ऊर्जा की आवश्यकता तथा इससे संबंधित चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। परमाणु ऊर्जा के तीव्र प्रसार हेतु रणनीतिक पहल बताइये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • उत्तर की शुरुआत परिचय के साथ कीजिये, जो प्रश्न के लिये एक संदर्भ निर्धारित करता है।
    • भारत की परमाणु ऊर्जा की खोज में आवश्यकता और चुनौतियों को लिखिये।
    • भारत में परमाणु ऊर्जा को तेज़ी से बढ़ाने के लिये रणनीतिक पहल सुझाइये।
    • तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    परमाणु ऊर्जा भारत में विद्युत का पाँचवाँ सबसे बड़ा स्रोत है, जो देश के कुल विद्युत उत्पादन में लगभग 2-3% का योगदान प्रदान करती है। भारत के पास वर्तमान में देश भर में 7 विद्युत संयंत्रों में 22 से अधिक परमाणु रिएक्टर हैं, जो कुल मिलाकर 6,780 मेगावाट की परमाणु ऊर्जा का उत्पादन करते हैं।

    मुख्य भाग:

    भारत में परमाणु ऊर्जा की आवश्यकता:

    • ऊर्जा सुरक्षा: परमाणु ऊर्जा विद्युत का एक विश्वसनीय और सुसंगत स्रोत प्रदान करती है, जो ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद करती है, विशेषतः भारत जैसे तेज़ी से बढ़ती आबादी एवं औद्योगिक क्षेत्र वाले देश में।
      • सौर और पवन ऊर्जा के विपरीत, जो मौसम की स्थिति पर निर्भर हैं। परमाणु ऊर्जा, ऊर्जा का एक विश्वसनीय और उच्च घनत्व वाला निर्बाध स्रोत प्रदान करती है।
    • ऊर्जा स्रोतों का विविधीकरण: परमाणु ऊर्जा भारत के ऊर्जा मिश्रण में विविधता लाती है, जिससे कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस जैसे जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम हो जाती है। विविधीकरण एकल ऊर्जा स्रोत पर अत्यधिक निर्भरता से संबंधित जोखिमों को कम करने में सहायक है और ऊर्जा प्रणाली के लचीलेपन को बढ़ाता है।
      • परमाणु ऊर्जा भारत को होने वाले आयात का सालाना 100 अरब डॉलर तक कम करने में सहायक हो सकती है, जो वर्तमान में पेट्रोलियम तथा कोयले के आयात पर व्यय होता है।
    • ऊर्जा का स्वच्छ रूप: परमाणु ऊर्जा उत्पादन जीवाश्म ईंधन-आधारित विद्युत संयंत्रों की तुलना में न्यूनतम ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन उत्पन्न करता है, जो जलवायु परिवर्तन को कम करने तथा वायु प्रदूषण को कम करने के प्रयासों में योगदान देता है।
      • 90% प्लांट्स जिसमें लोड फैक्टर पर काम करने वाले 1,000 मेगावाट के संयंत्र के लिये एक वर्ष में केवल 25 टन कम समृद्ध यूरेनियम ईंधन की आवश्यकता होती है। इसकी तुलना में एक कोयला संयंत्र (समान क्षमता के) को लगभग पाँच मिलियन टन कोयले की आवश्यकता होगी, क्योंकि कोयला राख उत्पन्न करता है।
    • संचालन में सस्ता: रेडियोधर्मी ईंधन और निपटान के प्रबंधन की लागत के बावजूद, परमाणु ऊर्जा संयंत्रों को संचालित करना कोयला या गैस संयंत्रों की तुलना में सस्ता है।
      • अनुमान बताते हैं कि परमाणु संयंत्रों की लागत कोयला संयंत्र की तुलना में केवल 33-50% और गैस संयुक्त-चक्र संयंत्र की 20-25% होती है।
    • थोरियम भंडार की उपलब्धता: थोरियम की उपलब्धता परमाणु ऊर्जा को भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं के लिये एक आशाजनक समाधान प्रदान करती है। इसे भविष्य का ईंधन माना जाता है क्योंकि भारत थोरियम संसाधनों में अग्रणी देश है। इससे भारत को जीवाश्म ईंधन मुक्त राष्ट्र होने के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायता मिल सकती है।

    परमाणु ऊर्जा की खोज में चुनौतियाँ:

    • सीमित घरेलू यूरेनियम भंडार: भारत के पास घरेलू यूरेनियम भंडार सीमित हैं, जो इसके परमाणु रिएक्टरों के लिये ईंधन आवश्यकताओं को पूरा करने में चुनौतियों का सामना करता है।
    • उच्च पूंजी लागत: परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के निर्माण के लिये आवश्यक प्रारंभिक पूंजी निवेश अधिक है, जिससे परमाणु ऊर्जा परियोजनाएँ, विशेषतः भारत जैसे विकासशील देशों के लिये, वित्तीय रूप से चुनौतीपूर्ण हो जाती हैं।
    • सार्वजनिक विरोध: रिएक्टरों की सुरक्षा और पर्यावरण पर संभावित प्रभाव पर चिंताओं के कारण परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के निर्माण को प्रायः स्थानीय समुदायों के विरोध का सामना करना पड़ता है।
    • तकनीकी चुनौतियाँ: परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के विकास में जटिल तकनीकी चुनौतियाँ शामिल हैं, जिसमें रिएक्टरों की संरचना और निर्माण, परमाणु अपशिष्ट का प्रबंधन तथा परमाणु सुरक्षा मानकों का रखरखाव शामिल है।
    • अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंध: भारत परमाणु अप्रसार संधि (NPT) का सदस्य नहीं है और अपने परमाणु हथियार कार्यक्रम के लिये अतीत में अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों का सामना कर चुका है। इससे अन्य देशों से उन्नत परमाणु प्रौद्योगिकी तथा ईंधन आपूर्ति तक इसकी पहुँच सीमित हो गई है।
    • नियामक बाधाएँ: भारत में परमाणु ऊर्जा के विकास के लिये जटिल नियामक ढाँचा है और इसकी सुस्त नौकरशाही आलोचना का कारण बनी हुई है, जिससे परियोजनाओं के कार्यान्वयन में विलंब होता है।

    भारत में परमाणु ऊर्जा को तेज़ी से बढ़ाने के लिये रणनीतिक पहल:

    • PHWR का विस्तार:
      • बेस लोड विद्युत क्षमता जोड़ने के लिये प्राथमिक स्रोत के रूप में स्वदेशी 700 मेगावाट दबावयुक्त भारी जल रिएक्टर (PHWR) को प्राथमिकता देना।
      • PHWR क्षमता का और अधिक विस्तार करने के लिये फ्लीट मोड में 15 अतिरिक्त इकाइयों का निर्माण जारी रखना।
      • न्यूक्लियर पॉवर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (NPCIL) के अलावा विभिन्न सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSU) की भागीदारी के साथ कई उपक्रमों के लागू करने पर विचार करना।
    • SMR और कोयला संयंत्र प्रतिस्थापन:
      • सुचारु परिवर्तन सुनिश्चित करने के लिये सेवानिवृत्त कोयला संयंत्रों द्वारा रिक्त स्थलों पर स्वदेशी छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR) का निर्माण करना।
      • किफायती विद्युत उत्पादन बनाए रखने के लिये इकाइयों के आयात से बचना।
      • SMR के साथ प्रतिस्थापन की सुविधा के लिये NTPC और अन्य औद्योगिक भागीदारों, विशेष रूप से कोयला संयंत्रों के मालिक, के साथ सहयोग करना।
    • उद्योगों के लिये कैप्टिव इकाइयाँ:
      • धातु, रसायन और उर्वरक जैसे ऊर्जा-गहन उद्योगों के लिये विद्युत एवं हाइड्रोजन उत्पादन के लिये आंशिक स्वामित्व वाली कैप्टिव इकाइयों के रूप में 220 मेगावाट PHWR इकाइयों की पेशकश करना।
      • एक प्रोटोटाइप का प्रदर्शन करने के बाद इस उद्देश्य के लिये उन्नत भारी जल रिएक्टर (AHWR300-LEU) के उपयोग का पता लगाना।
    • हाइड्रोजन उत्पादन के लिये उच्च तापमान रिएक्टर:
      • प्रत्यक्ष हाइड्रोजन उत्पादन के लिये समर्पित एक उच्च तापमान रिएक्टर विकसित करना, जो इलेक्ट्रोलिसिस का विकल्प प्रदान करता है।
      • ऊर्जा प्रणाली में अत्यधिक विद्युतीकरण की आवश्यकता को कम करते हुए, लागत प्रभावी हरित हाइड्रोजन उत्पादन सक्षम करना।
    • थोरियम ऊर्जा का विकास:
      • सतत् ऊर्जा आपूर्ति के लिये दीर्घकालिक योजनाओं के साथ तालमेल बिठाते हुए, थोरियम ऊर्जा क्षमता का दोहन करने हेतु दूसरे और तीसरे चरण के परमाणु-ऊर्जा कार्यक्रम में तेज़ी लाना।
      • प्रभावी कार्यान्वयन के लिये भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र की क्षमताओं का लाभ उठाना।

    निष्कर्ष:

    भारत एक स्वच्छ, अधिक सतत् ऊर्जा भविष्य की दिशा में बढ़ने का प्रयास कर रहा है, परमाणु ऊर्जा देश के ऊर्जा मिश्रण का एक महत्त्वपूर्ण घटक है, जो इसके दीर्घकालिक ऊर्जा सुरक्षा और सतत् विकास लक्ष्यों में योगदान दे रही है।

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