Sambhav-2024

दिवस 70

Q1. भारत की व्यावसायिक (Occupational) संरचना का वर्णन करते हुए संलग्न कार्यबल के दृष्टिकोण से कृषि क्षेत्र की प्रमुखता हेतु उत्तरदायी कारणों की व्याख्या कीजिये। इस प्रवृत्ति को कम करने हेतु कौन से उपाय अपनाए जा सकते हैं? (250 शब्द)

08 Feb 2024 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | भूगोल

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • उत्तर की शुरुआत परिचय के साथ कीजिये, जो प्रश्न के लिये एक संदर्भ निर्धारित करती है।
  • भारत की व्यावसायिक संरचना का वर्णन कीजिये।
  • रोज़गार की दृष्टि से कृषि क्षेत्र के प्रभुत्व के पीछे के कारणों को परिभाषित कीजिये।
  • इस प्रवृत्ति को कम करने के उपाय सुझाएँ।
  • तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।

परिचय:

भारत की व्यावसायिक संरचना में विविधता देखी जाती है, जो पारंपरिक और आधुनिक क्षेत्रों के जटिल मिश्रण को दर्शाती है। हालाँकि तीव्र औद्योगीकरण और शहरीकरण के बावजूद कृषि क्षेत्र रोज़गार पर हावी है।

मुख्य भाग:

भारत की व्यावसायिक संरचना:

  • कृषि: कृषि और संबद्ध क्षेत्रों ने वर्ष 2019-20 के दौरान 40% पुरुष श्रमिकों, 60% महिला श्रमिकों एवं 45.6% सभी श्रमिकों को रोज़गार प्रदान किया है।
    • भारत के समग्र किसानों में से लगभग 89.4% छोटे और सीमांत किसान हैं, जो निर्वाह कृषि की व्यापकता को उजागर करते हैं।
  • उद्योग: उद्योग क्षेत्र ने 26% पुरुष श्रमिकों और 16.6% महिला श्रमिकों को रोज़गार प्रदान किया है।
    • शहरीकरण और सरकारी पहलों द्वारा संचालित निर्माणकारी गतिविधियाँ रोज़गार एवं बुनियादी ढाँचे के विकास में अधिक योगदान देती हैं।
  • सेवाएँ: सेवा क्षेत्र ने 33.6% पुरुष और 23.5% महिला श्रमिकों को रोज़गार प्रदान किया है।
    • इसमें IT और सॉफ्टवेयर सेवाएँ, BPO, वित्त, बीमा, दूरसंचार, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा, पर्यटन एवं आतिथ्य जैसे विभिन्न खंड शामिल हैं।
  • अनौपचारिक क्षेत्र: अनौपचारिक क्षेत्र भारत के श्रम शक्ति के एक बड़े हिस्से को रोज़गार प्रदान करता है, जिसका अनुमान 80% से अधिक है।
    • इसमें असंगठित और छोटे पैमाने के उद्यम शामिल हैं, जो स्ट्रीट वेंडिंग, छोटे पैमाने पर विनिर्माण, मरम्मत सेवाओं एवं घरेलू कार्य जैसी गतिविधियों में लगे लाखों लोगों को आजीविका प्रदान करते हैं।
  • श्रम शक्ति भागीदारी दर (WPR): ग्रामीण श्रम शक्ति भागीदारी दर लगभग 46.0% है, जो शहरी दर की तुलना में 54.2% पर उल्लेखनीय रूप से अधिक है, जिसमें एक महत्त्वपूर्ण लैंगिक असमानता है क्योंकि वर्ष 2022-23 में पुरुष श्रम शक्ति भागीदारी दर 73.5% तक पहुँच गई है, जबकि महिला श्रम शक्ति भागीदारी दर 30.0% के आसपास बनी हुई है

रोज़गार में कृषि क्षेत्र के प्रभुत्व के पीछे कारण:

  • सामाजिक-आर्थिक कारक: पारंपरिक कृषि प्रथाएँ पीढ़ियों से चली आ रही हैं, कृषि को कई ग्रामीण समुदायों के लिये जीवन के एक तरीके के रूप में देखा जाता है।
    • गरीबी, ऋण तक पहुँच की कमी और अपर्याप्त सामाजिक सुरक्षा जाल जैसे सामाजिक-आर्थिक कारक कृषि पर निर्भरता में योगदान करते हैं।
  • सीमित अवसर: अन्य क्षेत्रों में सीमित अवसरों के साथ, कृषि रोज़गार के प्राथमिक स्रोत के रूप में कार्य करती है, विशेषतः ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ वैकल्पिक नौकरी की संभावनाएँ दुर्लभ हैं।
    • भारत में अधिकांश छोटे और सीमांत किसान हैं तथा आय के वैकल्पिक स्रोतों तक सीमित पहुँच के कारण ये अपनी आजीविका के लिये कृषि पर बहुत अधिक निर्भर हैं।
  • औद्योगिक और बुनियादी ढाँचे के विकास का अभाव: हाल के दशकों में तीव्र औद्योगीकरण के बावजूद, ग्रामीण भारत के बड़े हिस्से में अभी भी पर्याप्त औद्योगिक और बुनियादी ढाँचे के विकास का अभाव है।
    • शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण और गैर-कृषि रोज़गार के अवसरों तक सीमित पहुँच ग्रामीण अर्थव्यवस्थाओं में कृषि के प्रभुत्व को कायम रखती है।
  • सरकारी नीतियाँ और सब्सिडी: कृषि को समर्थन देने के उद्देश्य से सरकारी नीतियाँ और सब्सिडी, जैसे न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP), सब्सिडी वाले इनपुट तथा कृषि ऋण, किसानों को खेती में निरंतरता रखने के लिये प्रोत्साहित करते हैं।
    • हालाँकि ये नीतियाँ खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण विकास के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, लेकिन ये कृषि रोज़गार प्रभुत्व को कायम रखने में भी योगदान दे सकती हैं।

कृषि पर अत्यधिक निर्भरता को कम करने के लिये कई उपाय सुझाए जा सकते हैं:

  • ग्रामीण बुनियादी ढाँचे में निवेश: सड़कों, सिंचाई सुविधाओं और भंडारण सुविधाओं जैसे ग्रामीण बुनियादी ढाँचे में सुधार से कृषि में उत्पादकता बढ़ सकती है, साथ ही परिवहन एवं कृषि-प्रसंस्करण जैसे संबंधित क्षेत्रों में गैर-कृषि रोज़गार के अवसर भी उत्पन्न हो सकते हैं।
  • कौशल विकास कार्यक्रम: ग्रामीण युवाओं की आवश्यकताओं के अनुरूप कौशल विकास कार्यक्रमों को लागू करने से उन्हें विनिर्माण, सेवाओं और उद्यमिता जैसे विभिन्न क्षेत्रों में रोज़गार के लिये आवश्यक कौशल से युक्त किया जा सकता है।
  • कृषि-आधारित उद्योगों को बढ़ावा देना: खाद्य प्रसंस्करण, वस्त्र और कृषि-व्यवसाय जैसे कृषि-आधारित उद्योगों की स्थापना को प्रोत्साहित करने से कृषि मूल्य शृंखला के साथ मूल्यवर्द्धन के अवसर उत्पन्न हो सकते हैं, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार में वृद्धि हो सकती है।
  • वित्त और प्रौद्योगिकी तक पहुँच: छोटे किसानों के लिये वित्त और प्रौद्योगिकी तक पहुँच की सुविधा उत्पादकता एवं आय के स्तर को बढ़ा सकती है, जिससे आजीविका के एकमात्र स्रोत के रूप में कृषि पर निर्भरता कम हो सकती है।
  • उद्यमिता को बढ़ावा देना: प्रोत्साहन, इन्क्यूबेशन सपोर्ट (incubation support) और बाज़ारों तक पहुँच के माध्यम से उद्यमिता को प्रोत्साहित करना ग्रामीण क्षेत्रों में नवाचार तथा रोज़गार सृजन को बढ़ावा दे सकता है।

निष्कर्ष:

समावेशी उपायों को लागू करके, भारत धीरे-धीरे रोज़गार के लिये कृषि पर अपनी निर्भरता को कम कर सकता है और सतत् आर्थिक वृद्धि एवं विकास के लिये अनुकूल अधिक संतुलित व्यावसायिक संरचना प्राप्त कर सकता है।