प्रयागराज शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 29 जुलाई से शुरू
  संपर्क करें
ध्यान दें:

Sambhav-2024

  • 27 Nov 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    दिवस 7

    Q.2 भारत के संवैधानिक ढाँचे में उपराष्ट्रपति की भूमिका और महत्त्व का विश्लेषण कीजिये और कार्यालय की अखंडता और जवाबदेही को बनाए रखने में जाँच और संतुलन की प्रभावशीलता का विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    दृष्टिकोण:

    • प्रमुख संवैधानिक प्रावधानों और कार्यालय से जुड़े प्राथमिक कार्यों पर प्रकाश डालते हुए, भारत में उपराष्ट्रपति की भूमिका का संक्षेप में परिचय दीजिये।
    • भारत के संवैधानिक ढाँचे में उपराष्ट्रपति के महत्त्व की भूमिका और कार्यालय की अखंडता एवं जवाबदेही को बनाए रखने में जाँच व संतुलन की प्रभावशीलता पर चर्चा कीजिये।
    • यथोचित निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    भारत के संवैधानिक ढाँचे में उपराष्ट्रपति की एक महत्त्वपूर्ण और बहुआयामी भूमिका होती है। उपराष्ट्रपति देश में दूसरे सबसे बड़े संवैधानिक पदाधिकारी के रूप में कार्य करता है और यह पद भारत के संविधान के भाग V में उल्लिखित है।

    ढाँचा:

    भारत के संवैधानिक ढाँचे में उपराष्ट्रपति की भूमिका और महत्त्व का विश्लेषण निम्नलिखित दृष्टिकोण से किया जा सकता है:

    • मृत्यु, त्यागपत्र, महाभियोग या किसी अन्य कारण से राष्ट्रपति का पद रिक्त होने की स्थिति में उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति के रूप में कार्य करता है। वह तब भी राष्ट्रपति के कर्त्तव्यों का पालन करता है जब राष्ट्रपति अनुपस्थिति, बीमारी या किसी अन्य कारण से अपने कार्यों का निर्वहन करने में असमर्थ होता है।
    • राज्यसभा के सभापति (पदेन) के रूप में वह उच्च सदन के सत्रों की अध्यक्षता करते हैं और इसकी कार्यवाही को नियंत्रित करते हैं। राज्यसभा में बराबरी की स्थिति में निर्णायक मत देने का अधिकार भी उपराष्ट्रपति के पास होता है।
    • एक संवैधानिक गणमान्य व्यक्ति के रूप में उपराष्ट्रपति विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रमों तथा कार्यों में राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करता है। उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति की ओर से विदेशी गणमान्य व्यक्तियों और राष्ट्राध्यक्षों का भी स्वागत करते हैं।

    कार्यालय की अखंडता और जवाबदेही को बनाए रखने में नियंत्रण एवं संतुलन की प्रभावशीलता का आंकलन निम्नलिखित पहलुओं से किया जा सकता है:

    • राज्यसभा के सभापति के रूप में उपराष्ट्रपति अपने कार्यों और आचरण के लिये संसद के प्रति भी जवाबदेह होता है। उपराष्ट्रपति को पूर्ण बहुमत (अर्थात सदन के सभी उपस्थित सदस्यों के बहुमत) द्वारा पारित राज्यसभा के एक प्रस्ताव द्वारा हटाया जा सकता है और लोकसभा द्वारा साधारण बहुमत से सहमति व्यक्त की जा सकती है।
    • उपराष्ट्रपति भी अपने पद की शपथ या प्रतिज्ञान से संविधान और कानून के संरक्षण, सुरक्षा एवं बचाव करने तथा अपने कार्यालय के कर्त्तव्य का ईमानदारी से निर्वहन करने के लिये बाध्य है।
    • उनके चुनाव से संबंधित किसी भी विवाद या उनके कार्यों से उत्पन्न कानून या तथ्य के किसी भी प्रश्न के मामले में वह भारत के उच्चतम न्यायालय द्वारा न्यायिक समीक्षा के अधीन हैं।

    निष्कर्ष:

    इस प्रकार, भारत के उपराष्ट्रपति देश के संवैधानिक ढाँचे में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और अपनी अखंडता एवं जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिये विभिन्न जाँच व संतुलन के अधीन होते हैं।

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2