Q.1 भारत के राष्ट्रपति में निहित वित्तीय और न्यायिक शक्तियों पर चर्चा कीजिये। (150 शब्द)
27 Nov 2023 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
दृष्टिकोण:
- भारत में राष्ट्रपति की भूमिका का संक्षेप में परिचय दीजिये।
- राष्ट्रपति की वित्तीय एवं न्यायिक शक्तियों की चर्चा कीजिये।
- यथोचित निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
भारत का राष्ट्रपति देश का संवैधानिक प्रमुख है (अनुच्छेद 52 व 53) और भारतीय संविधान के तहत उसके पास विभिन्न शक्तियाँ एवं कार्य हैं। इनमें वित्तीय और न्यायिक शक्तियाँ राष्ट्रपति की भूमिका के महत्त्वपूर्ण पहलू हैं।
ढाँचा:
वित्तीय शक्तियाँ:
- राष्ट्रपति संसद में धन विधेयक पेश करने की सिफारिश कर सकता है। धन विधेयक एक ऐसा विधेयक है जो कराधान, उधार, व्यय या अन्य वित्तीय मामलों से संबंधित है।
- राष्ट्रपति वार्षिक वित्तीय विवरण या केंद्रीय बजट को संसद के दोनों सदनों के समक्ष रखने के लिये ज़िम्मेदार है।
- राष्ट्रपति किसी भी अप्रत्याशित व्यय को पूरा करने के लिये भारत की आकस्मिकता निधि से अग्रिम राशि को अधिकृत कर सकते हैं।
- संघ और राज्यों के बीच करों के वितरण की सिफारिश करने के लिये राष्ट्रपति हर पाँच वर्ष में एक वित्त आयोग का गठन कर सकता है।
- राष्ट्रपति भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की नियुक्ति कर सकता है, जो संघ और राज्यों के खातों की लेखा परीक्षा करता है।
न्यायिक शक्तियाँ:
- राष्ट्रपति मुख्य न्यायाधीश की सलाह पर उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीश तथा अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है।
- राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों द्वारा दो-तिहाई बहुमत से पारित प्रस्ताव के आधार पर उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को हटा सकते हैं।
- राष्ट्रपति संघ कानून, कोर्ट-मार्शल सज़ा या मौत की सज़ा के खिलाफ किसी भी अपराध के लिये दोषी व्यक्तियों को क्षमा (Pardon), लघुकरण (Commutation), परिहार (Remission), विराम (Respite), व प्रविलंबन (Reprieve) कर सकता है।
- राष्ट्रपति सार्वजनिक महत्त्व के कानून या तथ्य से संबंधित किसी भी प्रश्न पर उच्चतम न्यायालय की सलाहकारी राय ले सकता है।
- राष्ट्रपति उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के सदस्यों एवं कर्मचारियों की सेवा शर्तों के लिये नियम बना सकता है।
निष्कर्ष:
इस प्रकार, भारत के राष्ट्रपति भारत के संविधान के अनुसार महत्त्वपूर्ण वित्तीय और न्यायिक शक्तियों का प्रयोग करते हैं। हालाँकि ये शक्तियाँ पूर्ण या विवेकाधीन नहीं हैं, बल्कि मंत्रिपरिषद, संसद और न्यायपालिका की सलाह के अधीन हैं। राष्ट्रपति एक संवैधानिक प्रमुख के रूप में कार्य करता है जो भारत में लोकतांत्रिक प्रणाली के सुचारू कामकाज को सुनिश्चित करता है।