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Sambhav-2024

  • 06 Feb 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल

    दिवस 68

    प्रश्न 1. आर्थिक विकास में प्राथमिक और द्वितीयक गतिविधियों के महत्त्व के साथ सतत् विकास में उनकी भूमिका पर उदाहरण सहित चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • प्राथमिक एवं द्वितीयक गतिविधियों का संक्षिप्त परिचय लिखिये।
    • आर्थिक विकास में प्राथमिक एवं द्वितीयक गतिविधियों के महत्त्व का वर्णन कीजिये।
    • सतत् विकास प्राप्त करने में प्राथमिक और द्वितीयक गतिविधियों की भूमिका स्पष्ट कीजिये।
    • तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    प्राथमिक गतिविधियों में प्राकृतिक संसाधनों से सीधे कच्चे माल का निष्कर्षण और उत्पादन शामिल है। द्वितीयक गतिविधियों में प्राथमिक गतिविधियों से प्राप्त कच्चे उत्पाद का तैयार उत्पाद में प्रसंस्करण शामिल है।

    मुख्य भाग:

    प्राथमिक गतिविधियों का महत्त्व:

    • कच्चा माल: वे मौलिक हैं क्योंकि वे अग्रिम आर्थिक गतिविधियों के लिये आवश्यक बुनियादी सामग्री प्रदान करते हैं। प्राथमिक गतिविधियों से निष्कर्षित कच्चा माल द्वितीयक उद्योगों के लिये इनपुट के रूप में कार्य करता है।
      • इन गतिविधियों में कृषि, वानिकी, मछली पकड़ना, खनन और उत्खनन शामिल हैं।
    • रोज़गार सृजन: प्राथमिक गतिविधियाँ प्रायः कार्यबल के एक महत्त्वपूर्ण हिस्से को रोज़गार प्रदान करती हैं, विशेषतः विकासशील देशों में जहाँ कृषि कई लोगों के लिये आजीविका का प्राथमिक स्रोत है।
      • भारत में कृषि 50% से अधिक आबादी को रोज़गार प्रदान करती है।
    • खाद्य सुरक्षा: एक मज़बूत कृषि क्षेत्र स्थिर खाद्य आपूर्ति सुनिश्चित करता है, जो आर्थिक विकास को बनाए रखने और गरीबी को कम करने के लिये आवश्यक है।
    • सकल घरेलू उत्पाद में योगदान: विगत कुछ वर्षों में अन्य क्षेत्रों की वृद्धि के कारण भारत के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि की भागीदारी में गिरावट के बावजूद, यह अभी भी देश की अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण (18% से अधिक) योगदान देता है।
      • कृषि, वानिकी और मछली पकड़ने जैसी प्राथमिक गतिविधियाँ, समग्र सकल घरेलू उत्पाद में योगदान करती हैं तथा देश की आर्थिक वृद्धि में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
    • विदेशी मुद्रा आय: कृषि उत्पादों, खनिजों और अन्य प्राथमिक वस्तुओं के निर्यात से विदेशी मुद्रा आती है, जो आर्थिक विकास तथा व्यापार के अनुकूल संतुलन बनाए रखने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • ग्रामीण विकास: ग्रामीण विकास एवं निर्धनता उन्मूलन के लिये प्राथमिक गतिविधियों का विकास महत्त्वपूर्ण है। कृषि बुनियादी ढाँचे, सिंचाई सुविधाओं और ग्रामीण विद्युतीकरण में निवेश से ग्रामीण समुदायों में उत्पादकता एवं जीवन स्तर में सुधार हो सकता है।

    द्वितीयक गतिविधियों का महत्त्व:

    • मूल्य संवर्धन: द्वितीयक गतिविधियाँ कच्चे उत्पाद को तैयार उत्पाद में परिवर्तित करके उनका मूल्य बढ़ाती हैं, जिससे उनके आर्थिक मूल्य में वृद्धि होती है।
      • उदाहरण के लिये गेहूँ से रोटी बनाना, लौह अयस्क को स्टील में बदलना, कपास से सूत बनाना आदि।
    • आपूर्ति शृंखला एकीकरण: द्वितीयक गतिविधियाँ उत्पादन और वितरण की विभिन्न अवस्थाओं को जोड़कर आपूर्ति शृंखला एकीकरण को बढ़ावा देती हैं।
      • उदाहरण के लिये भारत का ऑटोमोटिव उद्योग उपभोक्ताओं तक ऑटोमोबाइल का उत्पादन और वितरण करने के लिये विभिन्न आपूर्तिकर्त्ताओं, निर्माताओं एवं वितरकों को एकीकृत करता है।
    • बुनियादी ढाँचे का विकास: आर्थिक विकास हेतु आवश्यक भौतिक बुनियादी ढाँचे के निर्माण के लिये द्वितीयक गतिविधियाँ आवश्यक हैं। सड़कों, रेलवे, बंदरगाहों और हवाई अड्डों सहित बुनियादी ढाँचे में निवेश से औद्योगीकरण, व्यापार एवं कनेक्टिविटी को बढ़ावा मिलता है।
      • दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारा (DMIC) जैसी भारत की महत्त्वाकांक्षी बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं का लक्ष्य देश भर में आधुनिक औद्योगिक केंद्र का निर्माण करना और कनेक्टिविटी में सुधार करना है।
    • उच्च आय रोज़गार: द्वितीयक उद्योग प्राथमिक क्षेत्रों की तुलना में रोज़गार के अवसर और उच्च मज़दूरी प्रदान करते हैं, जिससे जीवन स्तर में सुधार होता है।
    • तकनीकी उन्नति: द्वितीयक गतिविधियाँ भारत में तकनीकी उन्नति और नवाचार को बढ़ावा देती हैं। औद्योगिक उत्पादन में दक्षता, गुणवत्ता एवं प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार के लिये नवीन प्रौद्योगिकियों तथा प्रक्रियाओं को अपनाना शामिल है।
    • निर्यात संवर्धन: निर्यात-उन्मुख विनिर्माण उद्योग, जैसे- वस्त्र, फार्मास्युटिकल्स और इंजीनियरिंग सामान, विदेशी मुद्रा अर्जित करने तथा व्यापार का अनुकूल संतुलन बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
      • उदाहरण के लिये भारत का वस्त्र उद्योग दुनिया भर के देशों को परिधान, वस्त्र और धागे का निर्यात करता है, जो निर्यात राजस्व में योगदान देता है।

    सतत् विकास प्राप्त करने में प्राथमिक और द्वितीयक गतिविधियों की भूमिका:

    • सतत् कृषि पद्धतियाँ: जैविक खेती, फसल चक्र और कृषि वानिकी जैसी स्थाई कृषि पद्धतियों को अपनाने से मृदा स्वास्थ्य, जल संरक्षण तथा जैवविविधता संरक्षण को बढ़ावा मिलता है।
      • भारत में सिक्किम ऑर्गेनिक मिशन राज्य भर में जैविक कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देता है।
    • वन-संरक्षण: वनीकरण, पुनर्वनीकरण और समुदाय-आधारित संरक्षण प्रयासों जैसे उपायों के माध्यम से वनों का सतत् प्रबंधन वनों की कटाई को कम करने में मदद करता है तथा दीर्घकालिक पारिस्थितिक संतुलन सुनिश्चित करता है।
    • संसाधन दक्षता: पुनर्चक्रण, अपशिष्ट न्यूनीकरण और ऊर्जा संरक्षण जैसी संसाधन-कुशल विनिर्माण प्रक्रियाओं को अपनाने से पर्यावरणीय प्रभाव कम होता है तथा सतत् औद्योगिक विकास को बढ़ावा मिलता है।
    • हरित भवन प्रथाएँ: ऊर्जा-कुशल डिज़ाइन, नवीकरणीय सामग्रियों का उपयोग एवं अपशिष्ट कटौती उपायों जैसे ग्रीन हाउस सिद्धांतों का समावेश, सतत् निर्माण और बुनियादी ढाँचे के विकास को बढ़ावा देता है।
    • इंडियन ग्रीन बिल्डिंग काउंसिल (IGBC) ग्रीन हाउस प्रथाओं और पुरस्कार प्रमाणपत्रों को बढ़ावा देता है।
    • नवीकरणीय ऊर्जा एकीकरण: सौर, पवन और पनबिजली सहित नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का विस्तार, जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता तथा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करता है एवं सतत् ऊर्जा के विकास को बढ़ावा देता है।
      • राष्ट्रीय सौर मिशन का लक्ष्य भारत में सौर ऊर्जा परिनियोजना को बढ़ावा देना है।

    निष्कर्ष:

    ठोस प्रयासों और नवीन दृष्टिकोणों के माध्यम से भारत समावेशी एवं पर्यावरणीय रूप से सतत् विकास प्राप्त करने के लिये प्राथमिक तथा द्वितीयक गतिविधियों की क्षमता का उपयोग कर सकता है।

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