Sambhav-2024

दिवस 66

प्रश्न 2. भारत के हिमालयी एवं पूर्वोत्तर क्षेत्रों में निरंतर भूकंप आने में कौन-से कारक योगदान देते हैं? (150 शब्द)

03 Feb 2024 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | भूगोल

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • उत्तर की शुरुआत भूकंप के परिचय के साथ कीजिये।
  • हिमालय में भूकंपीय परिघटना में योगदान देने वाले कारकों का वर्णन कीजिये।
  • पूर्वोत्तर क्षेत्रों में निरंतर आ रहे भूकंपों के पीछे के कारण भी बताइये।
  • तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।

परिचय:

भूकंप प्राकृतिक भूवैज्ञानिक परिघटना है, जो भू-पर्पटी में ऊर्जा के आकस्मिक उत्सर्जन के कारण होती है, जिससे भूकंपीय तरंगें उत्पन्न होती हैं। ये तरंगें पृथ्वी के माध्यम से फैलती हैं, जिससे ज़मीन में कंपन होता है जो शून्य से लेकर अत्यधिक विनाशकारी तक हो सकती है।

मुख्य भाग:

भारत के हिमालयी एवं पूर्वोत्तर क्षेत्रों में भूकंप की निरंतर परिघटना में योगदान देने वाले कारक:

  • विवर्तनिकी प्लेट अंतःक्रिया:
    • हिमालय और पूर्वोत्तर क्षेत्रों में भूकंप के पीछे मुख्य कारण विवर्तनिकी प्लेटों का टकराना है।
    • भारतीय प्लेट धीरे-धीरे उत्तर की ओर बढ़ रही है और यूरेशियन प्लेट से टकरा रही है।
    • इस टकराव के परिणामस्वरूप तीव्र विवर्तनिकी गतिविधि होती है, जिससे भू-पर्पटी विकृत हो जाती है और भूकंप के रूप में ऊर्जा उत्सर्जित होती है।
  • सबडक्शन ज़ोन:
    • प्लेटों के टकराव के अलावा, उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में सबडक्शन का अनुभव होता है, जहाँ भारतीय प्लेट बर्मी माइक्रोप्लेट के नीचे सबडक्ट होती है।
    • यह प्रक्रिया इंडो-बर्मी वृत्तांश के साथ होती है, जिससे भूकंप के रूप में संचित तनाव उत्सर्जित हो जाता है।
  • प्रणोद दोष (Thrust Fault) और वलित पर्वत:
    • हिमालय की विशेषता व्यापक थ्रस्ट फॉल्टिंग है, जहाँ संपीड़न बलों के कारण चट्टानें फॉल्ट के साथ विस्थापित हो जाती हैं।
    • अनेक प्रणोद दोषों की उपस्थिति वलित पर्वतों के निर्माण में योगदान करती है।
    • इन दोषों के साथ निरंतर गति तनाव उत्पन्न करती है, जो अंततः भूकंप का कारण बनती है।
  • भूकंपीय अंतराल और तनाव उत्सर्जन:
    • डिफॉल्ट लाइन्स के साथ तनाव के संचय से भूकंपीय अंतराल हो सकते हैं, जो एक डिफॉल्ट के खंड हैं, जिन्होंने काफी समय तक महत्त्वपूर्ण भूकंपों का अनुभव नहीं किया है।
    • जब ये अंतराल विघटित होते हैं, तो वे संग्रहीत तनाव ऊर्जा उत्सर्जित करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप भूकंप आते हैं।
  • भूवैज्ञानिक भेद्यता:
    • हिमालय और पूर्वोत्तर क्षेत्रों की भूवैज्ञानिक संरचना भूकंप के प्रति उनकी संवेदनशीलता में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
    • सक्रिय फॉल्ट लाइनों के साथ-साथ युवा और कमज़ोर चट्टानों की उपस्थिति, भूकंपीय गतिविधि की संभावना को बढ़ाती है।
  • मानवीय गतिविधियाँ और भूमि उपयोग परिवर्तन:
    • मानवीय गतिविधियाँ, जैसे- वनों की कटाई, शहरीकरण और बड़े पैमाने पर बुनियादी ढाँचा परियोजनाएँ, भूकंपीय गतिविधि को प्रभावित कर सकती हैं।
    • भूमि उपयोग में परिवर्तन भू-पर्पटी में तनाव वितरण को परिवर्तित कर सकता है, जिससे संभावित रूप से भूकंप आ सकते हैं।
  • नदियों का अपरदन और अवसादन:
    • गंगा और ब्रह्मपुत्र जैसी प्रमुख नदियों की उपस्थिति, क्षेत्रीय अवसादन में योगदान करती है।
    • अवसादन परतों का भार भू-पर्पटी पर तनाव को बढ़ाता है, जो संभावित रूप से भूकंपीय गतिविधि को प्रभावित करता है।

निष्कर्ष:

भारत के हिमालयी और उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में भूकंपों की निरंतर परिघटना विवर्तनिक शक्तियों, भूवैज्ञानिक विशेषताओं तथा मानवीय गतिविधियों की जटिल परस्पर क्रिया का परिणाम है। विवर्तनिकी प्लेटों का टकराव, सबडक्शन ज़ोन, थ्रस्ट फॉल्ट और भूकंपीय अंतराल सभी क्षेत्रों की भूकंपीयता में योगदान करते हैं।