Sambhav-2024

दिवस 66

प्रश्न 1. भारत में भूस्खलन की आशंका वाले क्षेत्रों की पहचान कीजिये और संभावित परिणामों की रूपरेखा तैयार करते हुए इसके समाधान हेतु उपाय सुझाइये। (250 शब्द)

03 Feb 2024 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | भूगोल

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • उत्तर की शुरुआत परिचय के साथ कीजिये जो प्रश्न के लिये एक संदर्भ निर्धारित करता है।
  • भारत में भूस्खलन की आशंका वाले क्षेत्रों का वर्णन कीजिये।
  • भूस्खलन के संभावित परिणामों की रूपरेखा लिखिये।
  • तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।

परिचय:

भूस्खलन से तात्पर्य ढालों पर चट्टान, मृदा एवं अपशिष्ट के नीचे की ओर खिसकने से है, जो प्रायः भूवैज्ञानिक, जलवायु या मानव-प्रेरित गतिविधियों जैसे प्राकृतिक कारकों के कारण होता है। ये सामूहिक गतिविधियाँ भिन्न-भिन्न पैमाने पर हो सकती हैं, जिनमें छोटी चट्टानों के गिरने से लेकर बड़ी, विनाशकारी घटनाएँ शामिल हो सकती हैं, जिनमें पर्याप्त मात्रा में भू-सामग्री शामिल हो सकती है।

मुख्य भाग:

विभिन्न क्षेत्रों में भूस्खलन में योगदान देने वाले कारक:

  • भूवैज्ञानिक कारक:
    • कई भूवैज्ञानिक कारक भूस्खलन की संवेदनशीलता में योगदान करते हैं। तीव्र ढाल, सुस्त मृदा और कमज़ोर चट्टानी संरचनाओं वाले क्षेत्र अधिक संवेदनशील होते हैं।
    • हिमालय क्षेत्र, पश्चिमी घाट और पूर्वोत्तर के भाग विशेष रूप से अपनी जटिल भूवैज्ञानिक संरचनाओं के कारण संकट में हैं।
  • वातावरण की परिस्थितियाँ:
    • तीव्र और दीर्घ काल तक वर्षा भूस्खलन का एक प्रमुख कारण है। भारी मानसून का सामना करने वाले केरल तथा उत्तराखंड जैसे राज्यों को अत्यधिक जोखिम का सामना करना पड़ता है।
    • इसके अतिरिक्त जिन क्षेत्रों में शुष्कता के पश्चात् भारी वर्षा का इतिहास रहा है, वहाँ मृदा की संतृप्ति के कारण भूस्खलन का खतरा बना रहता है।
  • मानवीय गतिविधियाँ:
    • वनों की कटाई, शहरीकरण और अनुचित भूमि उपयोग योजना जैसी मानवजनित गतिविधियाँ भूस्खलन की संवेदनशीलता में योगदान करती हैं।
    • पहाड़ियों पर अनियोजित निर्माण और अनुचित अपशिष्ट निपटान जोखिम को बढ़ा देते हैं। शिमला, दार्जिलिंग जैसे शहरी क्षेत्र तथा जम्मू-कश्मीर के कुछ हिस्से इसका प्रमुख उदाहरण हैं।

भूस्खलन के संभावित परिणाम:

  • जान-माल की हानि:
    • भूस्खलन के परिणामस्वरूप मानव जीवन को दुखद हानि हो सकती है और बुनियादी ढाँचे को व्यापक क्षति हो सकती है।
    • सुदूर पहाड़ी गाँव मूलतः असुरक्षित हैं, जिन्हें निकासी और बचाव कार्यों के मामले में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
    • घरों, सड़कों एवं पुलों के नष्ट होने से प्रभाव और बढ़ जाता है।
  • परिवहन नेटवर्क का विघटन:
    • भूस्खलन से परिवहन नेटवर्क बाधित होता है, जिससे आर्थिक गतिविधियाँ बाधित होती हैं।
    • प्रभावित क्षेत्रों तक पहुँच न होने से न केवल स्थानीय अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है, बल्कि व्यापार एवं वाणिज्य पर भी व्यापक प्रभाव पड़ता है।
    • हिमालय पेटी और पश्चिमी घाट में प्रमुख परिवहन मार्ग विशेष रूप से असुरक्षित हैं।
  • पर्यावरणीय प्रभाव:
    • भूस्खलन मृदा अपरदन में योगदान देती है, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र और जैवविविधता प्रभावित होती है।
    • नदियों में अवसादों के प्रवाह से गाद जमा हो सकती है, जिससे जल की गुणवत्ता और जलीय जीवन प्रभावित हो सकता है।
    • वनस्पति के नष्ट होने से पारिस्थितिक संतुलन और अधिक बिगड़ जाता है, जिससे प्रभावित क्षेत्रों में आने वाले समय में भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है।

भूस्खलन जोखिमों को कम करने के उपाय:

  • प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली:
    • भूस्खलन के प्रभाव को कम करने के लिये मज़बूत प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली को लागू करना महत्त्वपूर्ण है।
    • वर्षा पैटर्न, भू-संचलन और भूवैज्ञानिक परिस्थितियों की निगरानी से समय पर अलर्ट मिल सकता है।
    • मौसम स्टेशनों का एक नेटवर्क स्थापित करने और उपग्रह इमेजरी जैसी उन्नत तकनीकों को तैनात करने से भविष्यवाणी की सटीकता बढ़ सकती है।
  • सतत् भूमि उपयोग योजना:
    • भूस्खलन जोखिमों को कम करने के लिये स्थायी भूमि उपयोग योजना प्रथाओं को अपनाना आवश्यक है।
    • संवेदनशील ढालों पर निर्माण को रोकने के लिये सख्त नियम लागू होने चाहिये।
    • एकीकृत जलसंभर प्रबंधन और वनीकरण पहल से मृदा की स्थिरता बढ़ सकती है, जिससे भूस्खलन की संभावना कम हो सकती है।
  • बुनियादी ढाँचे का विकास:
    • भूस्खलन के प्रभाव को कम करने के लिये लचीले बुनियादी ढाँचे में निवेश करना अनिवार्य है।
    • इंजीनियरिंग समाधान, जैसे दीवारों को बनाए रखना, ढाल स्थिरीकरण उपाय और नियंत्रित विस्फोट, कमज़ोर क्षेत्रों में नियोजित किये जा सकते हैं।
    • इसके अतिरिक्त, आपात स्थिति के दौरान कनेक्टिविटी सुनिश्चित करने के लिये वैकल्पिक मार्गों और पुलों का निर्माण महत्त्वपूर्ण है।
  • जन जागरूकता और शिक्षा:
    • भूस्खलन की संवेदनशीलता को कम करने के लिये स्थानीय आबादी के बीच जागरूकता उत्पन्न करना महत्त्वपूर्ण है।
    • आपदा तैयारियों, निकासी प्रक्रियाओं और सतत् प्रथाओं के महत्त्व पर शैक्षिक कार्यक्रम समुदायों को प्रभावी ढंग से प्रतिक्रिया करने के लिये सशक्त बना सकते हैं।
    • इसमें प्राथमिक चिकित्सा और आपातकालीन प्रतिक्रिया में स्थानीय अधिकारियों एवं समुदायों का प्रशिक्षण शामिल है।
  • सरकारी नीतियाँ और सहयोग:
    • भूमि उपयोग, निर्माण और पर्यावरण संरक्षण से संबंधित कठोर नीतियाँ विकसित करना तथा लागू करना आवश्यक है।
    • केंद्र और राज्य सरकारों के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के बीच सहयोग, भूस्खलन शमन प्रयासों में संसाधनों तथा विशेषज्ञता को बढ़ा सकता है।

निष्कर्ष:

भारत में भूस्खलन की संवेदनशीलता को संबोधित करने के लिये भूवैज्ञानिक, जलवायु और मानवीय कारकों को शामिल करते हुए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। भूस्खलन के प्रभाव को कम करने और अधिक लचीले राष्ट्र के निर्माण के लिये उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों की पहचान करना, संभावित परिणामों को समझना तथा व्यापक शमन उपायों को लागू करना आवश्यक है।