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Sambhav-2024

  • 02 Feb 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल

    दिवस 65

    Q1. वन क्षेत्र एवं वनावरण के बीच अंतर बताइये। वनों के संरक्षण हेतु कौन से कदम उठाए गए हैं? (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • प्रश्न के संदर्भ को ध्यान में रखते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • वन क्षेत्र एवं वनावरण के बीच अंतर बताइये।
    • वन संरक्षण से जुड़ी चुनौतियों का परीक्षण कीजिये।
    • वन संरक्षण के लिये किये गए उपायों पर प्रकाश डालिये।
    • तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    वन क्षेत्र और वनावरण शब्दों को अक्सर एक-दूसरे के स्थान पर उपयोग किया जाता है लेकिन इनके अलग-अलग अर्थ हैं। वन क्षेत्र से तात्पर्य वनों के रूप में नामित कुल भूमि से है, भले ही वह पेड़ों से कवर हो या नहीं। दूसरी ओर वनावरण का आशय विशेष रूप से पेड़ों से आच्छादित वास्तविक भूमि से है।

    मुख्य भाग:

    वन क्षेत्र और वनावरण के बीच अंतर: 

    आयाम वन क्षेत्र वनावरण 
    परिभाषा वानिकी के लिये निर्दिष्ट कुल भौगोलिक क्षेत्र, जिसमें आरक्षित, संरक्षित और अवर्गीकृत वन जैसे विभिन्न प्रशासनिक वर्गीकरण शामिल हैं। प्रशासनिक वर्गीकरणों से इतर इसमें वनों से आच्छादित वास्तविक भूमि शामिल होती है।
    दायरा यह व्यापक अवधारणा है जिसमें वानिकी उद्देश्यों के लिये निर्दिष्ट सभी प्रकार की भूमि शामिल होती है। यह अधिक केंद्रीकृत अवधारणा है जिसमें पेड़ों और वनस्पतियों की भौतिक उपस्थिति पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
    मापन इसके तहत वानिकी के लिये निर्दिष्ट भूमि के संपूर्ण क्षेत्रफल को मापा जाता है, जिसमें ऐसे क्षेत्र भी शामिल हैं जहाँ पेड़ नहीं हो सकते हैं। इसके तहत पेड़ों और वनस्पतियों से आच्छादित वास्तविक भूमि को मापा जाता है, जिससे वन क्षेत्रों का अधिक सटीक आँकड़ा मिलता है।
    अनुप्रयोग वन भूमि को वर्गीकृत करने एवं प्रबंधित करने के लिये प्रशासनिक तथा कानूनी संदर्भों का उपयोग किया जाता है। इससे अधिक मूर्त एवं पारिस्थितिकी परिप्रेक्ष्य मिलता है, जो जैवविविधता और पर्यावरणीय आकलन के लिये महत्त्वपूर्ण है।as

    वन संरक्षण से जुड़ी चुनौतियाँ:

    • आर्थिक विकास में बाधाएँ:
      • तथाकथित विकास के इस दौर में जंगलों को लकड़ी या बायोमास ऊर्जा के रूप में अधिक दोहन के साधन के तौर पर देखा जाता है।
      • मवेशियों को चराने, कृषि उत्पादन, खनिज निष्कासन आदि के लिये पेड़ों से कवर भूमि के संदर्भ में कथित दीर्घकालिक मूल्य को अधिक महत्ता दी जाती है।
    • क्रॉस प्रयोजनों पर कार्य करना:
      • कुछ मामलों में वनों से संबंधित कानून क्षेत्रीय स्तर पर अनुकूलित नहीं होते हैं, जिससे नीतिगत पंगुता, असंगति या स्थानीय स्तर पर संघर्ष होता है।
      • वनों का प्रशासन अक्सर विभिन्न स्तरों पर कार्य करने वाली कई एजेंसियों से प्रभावित होता है, जिससे क्षैतिज एवं ऊर्ध्वाधर स्तर पर हितधारकों के हितों, प्राथमिकताओं एवं कार्यों का विखंडन होता है।
    • वित्त पोषण में कठिनाई:
      • वन से प्राप्त कुछ लाभों का मुद्रीकरण न होने से वन संरक्षण और पुनर्स्थापन के वित्तपोषण में कठिनाई होती है।
      • वनों की कटाई को बढ़ावा देने वाली गतिविधियों का समर्थन करने वाले वित्तीय प्रोत्साहन अक्सर वनों के संरक्षण एवं बहाली प्रोत्साहन से अधिक होते हैं।
    • कानूनों का अप्रभावी कार्यान्वयन:
      • प्रणालीगत भ्रष्टाचार और कानून प्रवर्तन के निम्न स्तर से अक्सर इन बाधाओं को बढ़ावा मिलता है।
      • वन संरक्षण और पुनर्स्थापना का समर्थन करने वाले प्रगतिशील कानूनों का पालन बहुत कम होता है।

    वन संरक्षण हेतु किये गये उपाय:

    • वन संरक्षण अधिनियम, 1980:
      • वनों की सुरक्षा हेतु वन संरक्षण अधिनियम, 1980 को लागू किया गया।
      • भारत सरकार ने 597 संरक्षित क्षेत्र घोषित किये हैं जिनमें से 95 राष्ट्रीय उद्यान एवं 500 वन्य जीवन अभयारण्य हैं।
    • राष्ट्रीय वन नीति:
      • भारत सरकार ने सतत वन प्रबंधन का मार्गदर्शन करने के लिये राष्ट्रीय वन नीति तैयार और क्रियान्वित की है।
      • यह नीति पर्यावरणीय स्थिरता बनाए रखने एवं जैवविविधता के संरक्षण के साथ वन-निर्भर समुदायों के कल्याण पर बल देती है
    • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972:
      • भारत ने वनस्पतियों और जीवों की सुरक्षा के लिये वन्यजीव संरक्षण अधिनियम जैसे मज़बूत वन्यजीव संरक्षण कानून बनाए गए हैं। ये कानून वन्यजीवों के अवैध शिकार एवं अवैध व्यापार पर रोक लगाते हैं।
    • संयुक्त वन प्रबंधन (JFM) कार्यक्रम:
      • संयुक्त वन प्रबंधन कार्यक्रम में वनों के संरक्षण और टिकाऊ प्रबंधन में स्थानीय समुदायों की भागीदारी पर बल दिया जाता है।
      • इससे सामुदायिक भागीदारी को प्रोत्साहन मिलता है, जिससें ये वन संरक्षण एवं प्रबंधन की ज़िम्मेदारी लेने के लिये सशक्त होते हैं।
    • पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र (ESZ):
      • सरकार ने विकासात्मक गतिविधियों को विनियमित करने के लिये संरक्षित क्षेत्रों के आसपास पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान की है जिससे जैवविविधता एवं पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव को रोका जा सकता है।
    • हरित भारत मिशन (GIM):
      • जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना के तहत आने वाला हरित भारत मिशन, स्थायी वनीकरण, पुनर्वनीकरण एवं जैवविविधता संरक्षण पर केंद्रित है।
      • इसका उद्देश्य वन एवं वृक्ष आवरण को बढ़ाना, जैवविविधता को बढ़ावा देना एवं पारिस्थितिकी तंत्र की गुणवत्ता में सुधार करना है।

    निष्कर्ष:

    वन संरक्षण से जुड़ी चुनौतियों के लिये कानूनी ढाँचे, सामुदायिक सहभागिता, तकनीकी हस्तक्षेप एवं अंतर्राष्ट्रीय सहयोग सहित एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। टिकाऊ प्रथाओं को अपनाना एवं स्थानीय समुदायों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करना, भविष्य की पीढ़ियों के लिये विश्व के जंगलों को संरक्षित करने के क्रम में महत्त्वपूर्ण है।

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