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Sambhav-2024

  • 01 Feb 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल

    दिवस 64

    Q2. भारत में मानसून की शुरुआत की अंतर्निहित विशेषताओं एवं प्रणालियों पर चर्चा कीजिये। अल नीनो और ला नीना की घटनाएँ भारतीय मानसून को किस प्रकार प्रभावित करती हैं? (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • उत्तर की शुरुआत परिचय के साथ कीजिये जो प्रश्न के लिये एक संदर्भ निर्धारित करता है।
    • भारतीय मानसून की विशेषताओं और प्रणालियों को लिखिये।
    • भारतीय मानसून पर अल नीनो और ला नीना के प्रभावों का वर्णन कीजिये।
    • तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    भारत में मानसून का मौसम एक महत्त्वपूर्ण जलवायु परिघटना है, जो देश के कृषि उत्पादन, जल संसाधनों और समग्र सामाजिक-आर्थिक स्थितियों का निर्धारण करती है। मानसून का मौसम सामान्यतः जून में शुरू होता है और सितंबर तक रहता है।

    मुख्य भाग:

    मानसून की शुरुआत और प्रकृति विभिन्न विशेषताओं तथा प्रणालियों से प्रभावित होती है, जिनमें शामिल हैं:

    • पवनों का मौसमी बदलाव: भारतीय मानसून की विशेषता पवनों का मौसमी बदलाव है।
      • दक्षिण-पश्चिम मानसून: ग्रीष्मकाल के दौरान, भारतीय उपमहाद्वीप पर उष्ण पवनें एक न्यून दाब क्षेत्र का निर्माण करती हैं, जो हिंद महासागर से आर्द्र पवनों को आकर्षित करती है, जिसके परिणामस्वरूप दक्षिण-पश्चिम मानसून होता है जो सामान्यतः जून में शुरू होता है और सितंबर तक रहता है।
        • यह देश के विभिन्न भागों, विशेषकर पश्चिमी तट और उत्तरपूर्वी क्षेत्रों में भारी वर्षा करता है।
      • पूर्वोत्तर मानसून: शीतकाल के महीनों में, अक्तूबर से दिसंबर तक, भूभाग शीतल हो जाता है, जिससे भारतीय उपमहाद्वीप पर एक उच्च दाब क्षेत्र का निर्माण हो जाता है, जिससे पवनों का प्रवाह उत्तरपूर्वी हो जाता है। इन पवनों को उत्तर-पूर्वी मानसून के नाम से जाना जाता है।
        • उत्तरपूर्वी मानसूनी पवनें तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश के कुछ हिस्सों सहित देश के दक्षिणपूर्वी हिस्सों में वर्षा करती हैं।
    • ITCZ की गति: इंटरट्रॉपिकल कन्वर्जेंस ज़ोन (ITCZ)/अंतः उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र की उत्तर की ओर गति भारतीय मानसून की शुरुआत से निकटता से जुड़ी हुई है। जैसे ही ITCZ उत्तर की ओर बढ़ता है, यह अपने साथ आर्द्र दक्षिण-पश्चिमी पवनें लाता है, जो भारतीय उपमहाद्वीप में मानसून के मौसम की शुरुआत करता है।
      • मानसून की शुरुआत सामान्यतः जून के आसपास भारत के दक्षिण-पश्चिमी तट पर वर्षा के आगमन से होती है। इसके बाद देश भर में धीरे-धीरे प्रगति होती है, जो बाद के हफ्तों में विभिन्न क्षेत्रों को कवर करती है।
    • उष्णकटिबंधीय जेट स्ट्रीम का प्रवाह: उष्णकटिबंधीय जेट स्ट्रीम संपूर्ण भारत में पूर्व-से-पश्चिम (गंगा के मैदानों से 10-12 किमी. ऊपर) की ओर प्रवाहित होती है और हिंद महासागर के ऊपर कम हो जाती है, जहाँ यह अतिरिक्त ऊर्जा प्रदान करती है और दक्षिण-पश्चिम मानसून को भारत की ओर 'धकेल' देती है।
    • मानसूनी गर्त का निर्माण: मानसूनी गर्त, निम्न दाब क्षेत्र का विस्तार, वर्षा के वितरण को निर्धारित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह विभिन्न क्षेत्रों में मानसून की गति को प्रभावित करता है।
    • पर्वतों की भूमिका:
      • हिमालय पर्वत शृंखला एक अवरोध के रूप में कार्य करती है, जो वर्षा पैटर्न को प्रभावित करती है। पवनों की दिशा में अधिक वर्षा होती है, जिससे पवनों की ओर वर्षा छाया प्रभाव (rain shadow effect) उत्पन्न होता है।
      • पश्चिमी घाट पश्चिमी तट पर वर्षा वृद्धि में भी भूमिका निभाते हैं।

    भारतीय मानसून पर अल नीनो और ला नीना का प्रभाव:

    • अल नीनो:
      • अल नीनो की विशेषता मध्य एवं पूर्वी प्रशांत महासागरों में सागरीय सतह के तापमान की वृद्धि है। यह वार्मिंग वैश्विक स्तर पर वायुमंडलीय परिसंचरण पैटर्न को प्रभावित करती है।
      • भारत में, अल नीनो कमज़ोर मानसून से संबंधित है, जिससे सामान्य से अधिक शुष्क स्थिति उत्पन्न होती है। यह सामान्य वर्षा पैटर्न को बाधित करता है, जिससे कृषि एवं जल संसाधन प्रभावित होते हैं।
    • ला नीना:
      • इसके विपरीत, ला नीना में मध्य एवं पूर्वी प्रशांत महासागर में सागरीय सतह का तापमान औसत से अधिक ठंडा होता है। यह वायुमंडलीय परिसंचरण को प्रभावित करता है, जिससे भारतीय मानसून बेहतर हो सकता है।
      • ला नीना परिघटना भारत के कई हिस्सों में औसत से अधिक वर्षा से संबंधित हैं। इससे कुछ क्षेत्रों में बाढ़ वृद्धि हो सकती है।

    निष्कर्ष:

    इस मौसमी परिघटना के सामाजिक-आर्थिक प्रभावों की आशंका और प्रबंधन के लिये भारतीय मानसून को नियंत्रित करने वाली विशेषताओं तथा प्रणालियों को समझना आवश्यक है। अल नीनो और ला नीना घटनाओं का प्रभाव एक जटिल परत को जोड़ता है, जिसके लिये कृषि, जल संसाधनों और समग्र आजीविका पर संभावित परिणामों को कम करने के लिये सावधानीपूर्वक निगरानी तथा अनुकूलन रणनीतियों की आवश्यकता होती है।

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