Q1. उत्तर भारत की नदियाँ, प्रायद्वीपीय नदियों से किस प्रकार भिन्न हैं? (150 शब्द)
31 Jan 2024 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | भूगोल
हल करने का दृष्टिकोण:
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परिचय:
भारत में उत्तर भारतीय नदियाँ और प्रायद्वीपीय नदियाँ देश के भूगोल एवं पारिस्थितिकी के लिये अत्यधिक महत्त्व रखती हैं। ये नदियाँ भारत के सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक परिदृश्य का अभिन्न अंग हैं, जो कृषि, ऊर्जा उत्पादन, परिवहन तथा महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र प्रदान करती हैं।
मुख्य भाग:
उत्तर भारतीय नदियाँ और प्रायद्वीपीय नदियों की विशेषताएँ हैं:
विशेषता | उत्तर भारतीय नदियाँ | प्रायद्वीपीय नदियाँ |
उत्पत्ति | ये नदियाँ मुख्यतः हिमालय पर्वत शृंखला जैसे- गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र और उनकी सहायक नदियों से निकलती हैं। | प्रायद्वीपीय नदियाँ प्रायद्वीपीय पठार से निकलती हैं, जैसे- गोदावरी, कृष्णा, कावेरी और महानदी। |
प्रवाह | पर्वतीय उत्पत्ति के कारण इन नदियों में तीव्र ढाल और तीव्र प्रवाह होता है। | प्रायद्वीपीय नदियों का ढाल अपेक्षाकृत हल्का होता है, जिसके परिणामस्वरूप इनका प्रवाह धीमा होता है। |
स्थलाकृति | मैदानी इलाकों से प्रवाहित होते समय वे प्रायः गहरी घाटियों का निर्माण करती हैं। | वे चौड़ी घाटियों का निर्माण करती हैं और मैदानी इलाकों में घुमावदार पैटर्न प्रदर्शित करती हैं। |
मौसमी प्रवाह | मौसमी परिवर्तन के साथ बारहमासी प्रवाह। | अधिकतर मानसून पर निर्भर है। |
डेल्टा संरचना | सुंदरबन डेल्टा का निर्माण गंगा और ब्रह्मपुत्र द्वारा हुआ है। | पूर्वी तट पर डेल्टा (उदाहरण के लिये, गोदावरी, कृष्णा)। |
जलविद्युत क्षमता | जल का प्रवाह तीव्र होने के कारण काफी संभावना है। | जल के असंगत प्रवाह के कारण न्यूनतम क्षमता। |
अवसादन दाब | पर्वतीय उत्पत्ति के कारण उच्च अवसादन दाब। | कम उत्खात स्थलाकृति के कारण न्यूनतम अवसादन दाब। |
निष्कर्ष:
उत्तर भारतीय नदियों और प्रायद्वीपीय नदियों के बीच अंतर को समझना भारत के विभिन्न क्षेत्रों में प्रभावी जल संसाधन प्रबंधन, सतत् कृषि एवं पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने के लिये महत्त्वपूर्ण है।