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Sambhav-2024

  • 31 Jan 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल

    दिवस 63

    Q2. भारत में नदियों को जोड़ने के लाभ और सीमाओं पर चर्चा कीजिये? (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भारत में नदियों को आपस में जोड़ने का संक्षिप्त परिचय लिखिये।
    • नदियों को जोड़ने के लाभों को लिखिये।
    • नदियों को जोड़ने की सीमाएँ स्पष्ट कीजिये।
    • तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    भारत में नदियों को आपस में जोड़ना एक प्रस्तावित मेगा-इंजीनियरिंग परियोजना है, जिसका उद्देश्य जल की कमी के मुद्दों को संबोधित करने, सिंचाई सुविधा बढ़ाने और जलविद्युत ऊर्जा उत्पन्न करने के लिये अधिशेष जल को नदी घाटियों से इसकी कमी वाले क्षेत्रों में स्थानांतरित करना है। राष्ट्रीय नदी जोड़ो परियोजना में लगभग 3000 जलाशय बाँधों के नेटवर्क के माध्यम से देश भर में 37 नदियों को जोड़ने के लिये 30 लिंक शामिल होंगे।

    मुख्य भाग:

    नदियों को जोड़ने के लाभ:

    • जल की कमी को हल करना: नदियों को आपस में जोड़ने से संभवतः जल की कमी वाले क्षेत्रों में जल की कमी की समस्या को दूर किया जा सकता है क्योंकि नदी बेसिनों से अधिशेष जल को अतिरिक्त जल के साथ उन क्षेत्रों में स्थानांतरित किया जा सकता है जो कमी का सामना कर रहे हैं। इससे जल संसाधनों के अधिक न्यायसंगत वितरण में योगदान मिल सकता है।
      • उदाहरण के लिये केन-बेतवा लिंक परियोजना मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के सूखाग्रस्त एवं पिछड़े बुंदेलखंड क्षेत्र में 6.35 लाख हेक्टेयर सिंचाई तथा 49 MCM पेयजल आपूर्ति प्रदान करती है।
    • उन्नत सिंचाई क्षमता: इस परियोजना का उद्देश्य कृषि विकास को बढ़ावा देकर जल की कमी वाले क्षेत्रों में सिंचाई क्षमता को बढ़ाना है। जल की बेहतर उपलब्धता से फसल का उत्पादन बढ़ सकता है, खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण आजीविका को समर्थन मिल सकता है।
    • जलविद्युत ऊर्जा उत्पादन: नदियों को आपस में जोड़ने में बाँधों और नहरों का निर्माण शामिल है, जो जलविद्युत ऊर्जा उत्पादन का अवसर प्रदान करता है। यह भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं में योगदान दे सकता है और स्वच्छ ऊर्जा विकल्पों को बढ़ावा दे सकता है।
    • बाढ़ नियंत्रण: मानसून के मौसम के दौरान अतिरिक्त जल को जल की कमी वाले क्षेत्रों में मोड़कर, इंटरलिंकिंग परियोजना के माध्यम से अतिरिक्त नदी घाटियों में बाढ़ नियंत्रण में सहायता मिल सकती है।
    • नेविगेशन और परिवहन: इंटरकनेक्टेड नहर नेटवर्क अंतर्देशीय नेविगेशन और परिवहन की सुविधा प्रदान कर सकता है, जल मार्गों के साथ आर्थिक गतिविधियों एवं व्यापार को बढ़ावा दिया जा सकता है।
      • परस्पर संबंधित नहर नेटवर्क लगभग 15,000 किलोमीटर का नौगम्य जलमार्ग प्रदान कर सकता है, जो जलमार्गों के साथ व्यापार और वाणिज्य को बढ़ावा देगा।

    नदियों को जोड़ने को लेकर सीमाएँ:

    • पर्यावरणीय प्रभाव: नदी पारिस्थितिकी तंत्रों में बड़े पैमाने पर संशोधन, बाँधों का निर्माण और प्राकृतिक नदी मार्गों में परिवर्तन के गंभीर पर्यावरणीय परिणाम हो सकते हैं। इससे निवास स्थानों को नुकसान, जलीय पारिस्थितिकी तंत्र में व्यवधान और मृदा अपरदन हो सकता है।
    • पारिस्थितिकी असंतुलन: नदियों को आपस में जोड़ने से नदियों के प्राकृतिक प्रवाह पैटर्न और पोषक तत्त्व चक्र में गड़बड़ी हो सकती है, जिससे वनस्पति एवं जीव-जंतु प्रभावित हो सकते हैं। इसके परिणामस्वरूप जैवविविधता का नुकसान हो सकता है और संबंधित जल निकायों के पारिस्थितिकी तंत्र में असंतुलन उत्पन्न हो सकता है।
    • तकनीकी और इंजीनियरिंग चुनौतियाँ: इंटरलिंकिंग परियोजना का पैमाना एवं जटिलता महत्त्वपूर्ण तकनीकी और इंजीनियरिंग चुनौतियाँ उत्पन्न करती है। नहरों, जलाशयों और संबंधित बुनियादी ढाँचे के निर्माण की लागत बढ़ने एवं देरी के संभावित जोखिमों के साथ सावधानीपूर्वक योजना तथा कार्यान्वयन की आवश्यकता होती है।
    • सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव: बाँधों के निर्माण और नदी मार्गों में परिवर्तन के कारण समुदायों के विस्थापन के सामाजिक एवं सांस्कृतिक प्रभाव हो सकते हैं। इससे पारंपरिक आजीविका का नुकसान हो सकता है और स्वदेशी समुदायों का विस्थापन हो सकता है।
      • मध्य प्रदेश में प्रस्तावित दौधन बाँध, केन बेतवा इंटरलिंकेज परियोजना का एक प्रमुख घटक है, जो भूमि जलमग्नता और बाँध से संबंधित भूमि अधिग्रहण के कारण छतरपुर ज़िले के 5,000 से अधिक परिवारों को तथा पन्ना ज़िले के 1,400 परिवारों को विस्थापित करेगा।
    • अंतर्राज्यीय जल विवाद: इंटरलिंकिंग परियोजना में साझा नदी घाटियों वाले कई राज्य शामिल हैं। जल-विभाजन की व्यवस्था, अधिकारों और उत्तरदायित्वों को लेकर विवाद उभर सकते हैं, जिससे राज्यों के बीच संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
      • तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच कावेरी जल विवाद जैसे कई नदी जल विवाद पहले से ही चल रहे हैं।
    • अनिश्चित जलवायु परिवर्तन प्रभाव: परियोजना की दीर्घकालिक व्यवहार्यता जलवायु परिवर्तन के कारण प्रभावित हो सकती है, जिसका वर्षा पैटर्न, नदी के प्रवाह और जल की उपलब्धता पर प्रभाव पड़ सकता है। इन परिवर्तनों की भविष्यवाणी करना एवं उन्हें अपनाना अतिरिक्त चुनौतियाँ उत्पन्न करता है।
    • आर्थिक व्यवहार्यता: इंटरलिंकिंग परियोजना की आर्थिक व्यवहार्यता चर्चा का विषय रही है। निर्माण, रखरखाव और संभावित पर्यावरणीय शमन उपायों से संबंधित उच्च लागत दीर्घकाल में मिलने वाले लाभों से अधिक हो सकती है।

    निष्कर्ष:

    भारत में नदियों को आपस में जोड़ने से जल की कमी को दूर करने और विकास को बढ़ावा देने का वादा किया गया है, लेकिन इसके संभावित पर्यावरणीय, सामाजिक और आर्थिक प्रभावों के कारण इसे सावधानी से किया जाना आवश्यक है। इतने बड़े उपक्रम से संबंधित जटिलताओं एवं चुनौतियों से निपटने के लिये संपूर्ण पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन, हितधारक परामर्श तथा अनुकूल प्रबंधन रणनीतियाँ आवश्यक हैं।

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