Sambhav-2024

दिवस 62

Q1. भारत द्वारा अपने विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में विभिन्न मानक समय अपनाने की व्यवहार्यता एवं निहितार्थ पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

30 Jan 2024 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | भूगोल

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • भारत में मानक समय की वर्तमान व्यवस्था का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  • भारत में एकाधिक मानक समय की व्यवहार्यता पर चर्चा कीजिये।
  • भारत में अनेक मानक समयों के निहितार्थों पर चर्चा कीजिये।
  • संभावित समाधानों के साथ निष्कर्ष लिखिये।

परिचय:

भारत और उसके संपूर्ण क्षेत्र में केवल एक मानक समय का उपयोग होता है, जिसे भारतीय मानक समय (IST) कहा जाता है, जो UTC + 05:30 के बराबर है, यानी वैश्विक मानक समय (UTC) से साढ़े पाँच घंटे आगे है।

मुख्य भाग:

एकाधिक मानक-समय की व्यवहार्यता:

  • भौगोलिक विविधता: भारत देशांतर रूप से दो समय क्षेत्रों में विभाजित है। कई मानक समय अपनाए जाने से विभिन्न क्षेत्रों में सूर्य के प्रकाश में कार्य का बेहतर तालमेल बिठाया जा सकता है।
    • उदाहरण के लिये पूर्वोत्तर राज्यों का मानक समय अन्य क्षेत्रों से आगे हो सकता है, जिससे सूर्य के प्रकाश का बेहतर उपयोग हो सकेगा और उत्पादकता में संभावित वृद्धि होगी।
  • आर्थिक विचार: भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग आर्थिक गतिविधियाँ होती हैं और तद्नुसार मानक समय को समायोजित करने से व्यवसाय संचालन को अनुकूलित किया जा सकता है।
    • उदाहरण के लिये कृषि गहनता वाले राज्यों को ऐसे मानक समय से लाभ हो सकता है जो सूर्योदय के साथ बेहतर रूप से संरेखित हो।
  • तकनीकी प्रगति: उन्नत संचार और प्रौद्योगिकी के युग में कई समय मानकों का प्रबंधन पहले से कहीं अधिक संभव है।
    • डिजिटल माध्यम जैसे कंप्यूटर सिस्टम एवं स्मार्टफोन को स्वचालित रूप से स्थानीय समय के अनुसार समायोजित किया जा सकता है, जिससे विभिन्न क्षेत्रों में व्यवधान कम हो सकते हैं।

एकाधिक मानक-समय के निहितार्थ:

  • प्रशासनिक चुनौतियाँ: इससे राज्यों के बीच समन्वय, सार्वजनिक सेवाओं के समन्वयन एवं सुचारु परिवर्तन सुनिश्चित करने के क्रम में महत्त्वपूर्ण सरकारी प्रयासों की आवश्यकता हो सकती है।
  • व्यवसाय संचालन: विभिन्न समय क्षेत्रों में व्यावसायिक प्रथाओं का मानकीकरण एक तार्किक चुनौती बन सकती है।
  • सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव: कई मानक समय अपनाने की वज़ह से दिनचर्या, त्योहारों एवं सामाजिक समारोहों पर इसके सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव देखे जा सकते हैं जिसके लिये नए अस्थायी मानदंडों हेतु सामाजिक समायोजन की आवश्यकता होगी।
  • कानूनी और विधायी संशोधन: कई मानक समय में बदलाव के लिये केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर विधिक एवं विधायी संशोधन की आवश्यकता होगी।

निष्कर्ष:

मौजूद व्यवधानों को कम करने के क्रम में कई मानक समयों के क्रमिक कार्यान्वयन पर विचार किया जा सकता है, जिससे व्यक्तियों, व्यवसायों और सरकारी संस्थाओं के बीच अनुकूलन एवं सहयोग की सुविधा मिलेगी।