Sambhav-2024

दिवस 61

Q1. महासागरीय धाराओं की उत्पत्ति एवं प्रतिरूप पर चर्चा कीजिये। समुद्री धाराएँ समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र एवं वैश्विक मौसम प्रणालियों को किस प्रकार प्रभावित करती हैं? (250 शब्द)

29 Jan 2024 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | भूगोल

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • महासागरीय धाराओं का संक्षिप्त परिचय लिखिये।
  • महासागरीय धाराएँ सागरीय पारिस्थितिक तंत्र को कैसे प्रभावित करती हैं, लिखिये।
  • महासागरीय धाराएँ वैश्विक जलवायु प्रणाली को किस प्रकार प्रभावित करती हैं,लिखिये।
  • तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।

परिचय:

महासागरीय धाराएँ पृथ्वी की जलवायु को आकार देने और पारिस्थितिक तंत्र के संतुलन को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। वे सागरीय जल में बड़े पैमाने पर प्रवाहित होती हैं, जो विश्व भर में विचरण करती हैं, जलवायु पैटर्न को प्रभावित करती हैं और ऊष्मा का पुनर्वितरण करती हैं। महासागरीय धाराओं की उत्पत्ति और पैटर्न वायु, तापमान, लवणता एवं पृथ्वी के घूर्णन सहित विभिन्न कारकों का परिणाम हैं।

मुख्य भाग:

  • महासागरीय धाराओं की उत्पत्ति:
    • सौर विकिरण का प्रभाव: सौर तापन के कारण जलीय विस्तार सागरीय गतिशीलता में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भूमध्य रेखा के निकट, सागरीय स्तर मध्य अक्षांशों की तुलना में लगभग 8 सेमी. अधिक होता है, जिससे एक सूक्ष्म ढाल उत्पन्न होती है, जो जल के पूर्व-से-पश्चिम प्रवाह को प्रेरित करती है।
    • पवनों का प्रभाव: पवनें सागरीय सतह की धाराओं को संचालित करती हैं, जो इसके आकार और झुकाव के कारण पृथ्वी की सतह के असमान ताप से प्रभावित होती है। भूमध्य रेखा पर सूर्य की तीव्र विकिरण ऊष्ण धाराओं का निर्माण करती हैं, जबकि ध्रुवों पर कम तीव्र विकिरण शीतल धाराओं का निर्माण करती हैं।
      • जब उष्ण पवनें ऊपर उठती हैं, तो न्यून दाब क्षेत्र बनते हैं, जबकि वायुमंडल में अधिक शीतल पवनें होने से वे नीचे की ओर आती हैं, जिससे उच्च दाब क्षेत्र बनते हैं। इस परस्पर क्रिया से पृथ्वी के वायुमंडल में पवनों का प्रवाह होता है।
      • भूमध्य रेखा की उष्ण, आर्द्र पवनें ध्रुवों की ओर बढ़ती है, ये शीतल होती हैं और लगभग 30 डिग्री उत्तर एवं दक्षिण अक्षांश पर समाहित हो जाती हैं, जिससे उच्च दाब क्षेत्र बनते हैं।
      • जहाँ पवनें समाहित होती हैं, तो वहाँ से कुछ पवनें ध्रुव की ओर प्रवाहित होती है और कुछ पवनें भूमध्य रेखा की ओर प्रवाहित होती हैं। पवनों की यह गति उत्तरी गोलार्द्ध में पश्चिम (पश्चिमी पवन) और उत्तर-पूर्व (व्यापारिक पवन) से प्रवाहित होने वाली तीव्र पवनों का निर्माण करती हैं। ये प्रमुख पवन पैटर्न महासागरीय धाराओं को संचालित करते हैं।
    • गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव: गुरुत्वाकर्षण, जल के जमाव के साथ ही ढाल में भिन्नता लाकर इसे प्रभावित करता है।
    • कोरिओलिस प्रभाव: पृथ्वी के घूर्णन से कोरिओलिस प्रभाव नामक एक बल उत्पन्न होता है, जो उत्तरी गोलार्द्ध में धाराओं को दाईं ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में बाईं ओर विक्षेपित करता है। यह सभी महासागरीय घाटियों में पाई जाने वाली विशिष्ट वृत्ताकार धाराओं, वृहत् गोलाकार धाराओं को उत्पन्न करता है।

  • महासागरीय धाराओं के पैटर्न:
    • सतही धाराएँ:
      • सतही धाराएँ प्रमुख पवन पेटियों का अनुसरण करती हैं, जो आमतौर पर सागर के ऊपर 400 मीटर तक सीमित होती हैं।
      • उदाहरण के लिये उत्तरी विषुवतीय धारा, ब्राज़ील धारा और अगुलहास धारा।
    • गहन महासागरीय धाराएँ:
      • गहन महासागरीय धाराएँ जिन्हें थर्मोहेलिन/तापीय धाराओं के रूप में भी जाना जाता है, सतह से नीचे चलती हैं और जल के घनत्व में अंतर के कारण संचालित होती हैं।
      • अंटार्कटिक सतही जल और उत्तरी अटलांटिक गहन जल, महत्त्वपूर्ण गहन महासागरीय धाराएँ हैं।
    • वैश्विक संवहनीय (Conveyer) पेटी:
      • सतही और गहन महासागरीय धाराओं की परस्पर संबंधित प्रणाली वैश्विक परिसंचरण पेटी का निर्माण करती है, जो पृथ्वी के चारों ओर ऊष्मा के वितरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
  • सागरीय पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव:
    • पोषक तत्त्वों का परिवहन:
      • महासागरीय धाराएँ काफी दूरी तक पोषक तत्त्वों का परिवहन करती हैं, जिससे प्लवक एवं अन्य सागरीय जीवों के वितरण पर असर पड़ता है। उत्प्रवाहित क्षेत्र, गहन पोषक तत्त्वों से समृद्ध जलधाराओं के कारण सतह तक बढ़ जाता है और प्रचुर सागरीय जीवन का समर्थन करने वाले उपजाऊ क्षेत्र का निर्माण करता है।
    • प्रवासन पैटर्न:
      • धाराएँ सागरीय प्रजातियों के प्रवासन पैटर्न को प्रभावित करती हैं। मछलियाँ एवं अन्य जीव प्रायः धाराओं के प्रवाह का अनुसरण करते हैं, जिसका विभिन्न क्षेत्रों में उनके वितरण और बहुतायत पर असर पड़ता है।
    • तापमान विनियमन:
      • धाराएँ सागरीय पारिस्थितिक तंत्र में तापमान को भी नियंत्रित कर सकती हैं। उष्ण धाराएँ सागरीय सतह के तापमान को बढ़ा सकती हैं, जबकि शीतल धाराएँ तापमान में कमी ला सकती हैं। यह तापमान भिन्नता उन प्रजातियों के प्रकारों को प्रभावित करती है, जो विशिष्ट क्षेत्रों में उत्पन्न होती हैं।
  • वैश्विक जलवायु प्रणाली पर प्रभाव:
    • ऊष्मा वितरण:
      • महासागरीय धाराएँ विश्व भर में ऊष्मा के पुनर्वितरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। उष्ण धाराएँ भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर ऊष्मा ले जाती हैं, जबकि शीतल धाराएँ शीतल जल को भूमध्य रेखा की ओर ले जाती हैं। यह पुनर्वितरण क्षेत्रीय और वैश्विक जलवायु पैटर्न को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित करता है।
    • वायुमंडलीय परिसंचरण पर प्रभाव:
      • महासागरीय धाराओं और वायुमंडल के बीच परस्पर क्रिया पृथ्वी की जलवायु प्रणाली का अभिन्न अंग है। जैसे ही उष्ण पवनें उष्ण महासागरीय धाराओं से ऊपर उठती हैं एवं शीतल पवनों का प्रवाह शीतल धाराओं से नीचे की ओर होता है, तो वायुमंडलीय परिसंचरण पैटर्न स्थापित हो जाते हैं। यह बदले में जलवायु प्रणालियों और वर्षा पैटर्न को प्रभावित करता है।
    • चक्रवात निर्माण:
      • उष्ण महासागरीय धाराएँ चक्रवातों के निर्माण और तीव्रता के लिये आवश्यक ऊर्जा एवं आर्द्रता में योगदान करती हैं। उष्ण जल ईंधन स्रोत के रूप में कार्य करता है, जो इन शक्तिशाली चक्रवातों के विकास के लिये आवश्यक परिस्थितियाँ प्रदान करता है।
    • जलवायु परिवर्तन के निहितार्थ:
      • महासागरीय धाराओं में परिवर्तन व्यापक जलवायु परिवर्तन का संकेत हो सकता है। धाराओं में परिवर्तन जलवायु पैटर्न, सागरीय स्तर में वृद्धि और सागरीय प्रजातियों के वितरण को प्रभावित कर सकता है, इन सभी का वैश्विक पारिस्थितिकी तंत्र और मानव समाज पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।

निष्कर्ष:

इस प्रकार महासागरीय धाराएँ गतिशील बलों के रूप में कार्य करती हैं, जिनका सागरीय पारिस्थितिक तंत्र और वैश्विक जलवायु प्रणालियों पर गहरा प्रभाव पड़ता है। इनका प्रभाव सागरीय जीवन के वितरण से लेकर संपूर्ण ग्रह पर जलवायु पैटर्न को आकार देने तक है। पर्यावरणीय चुनौतियों से निपटने और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिये इन जटिल अंतःक्रियाओं को समझना आवश्यक है।