Sambhav-2024

दिवस 61

Q2. जैव-विविधता हानि हेतु उत्तरदायी प्रमुख कारकों की पहचान करते हुए इसे रोकने हेतु आवश्यक उपायों की चर्चा कीजिये। (150 शब्द)

29 Jan 2024 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | भूगोल

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • जैवविविधता के क्षरण (हानि) का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  • जैवविविधता के क्षरण हेतु उत्तरदायी प्रमुख कारकों का उल्लेख कीजिये।
  • जैवविविधता के क्षरण से निपटने के लिये आवश्यक कदमों का उल्लेख कीजिये।
  • एक संक्षिप्त निष्कर्ष लिखिये।

परिचय:

जैवविविधता क्षरण एक गंभीर वैश्विक मुद्दा है जिसके पारिस्थितिकी तंत्र और मानव जीवन पर दूरगामी परिणाम होते हैं। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) की संकटग्रस्त प्रजातियों की लाल सूची के अनुसार, विश्व भर में 41,000 से अधिक जानवरों के विलुप्त होने का खतरा है।

मुख्य भाग:

जैवविविधता क्षरण में योगदान देने वाले प्रमुख कारक:

  • आवास विनाश: जैवविविधता क्षरण के प्राथमिक कारकों में से एक निवास स्थान का विनाश होना है। जैसे-जैसे मानव आबादी का विस्तार होता है, कृषि, शहरीकरण एवं बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये वनों में पेड़ों को काट दिया जाता है। इससे कई प्रजातियों के लिये उपलब्ध आवास में कमी आती है, जिससे इनकी संख्या में गिरावट आने के साथ यह विलुप्त होने के कगार पर पहुँच जाते हैं।
  • प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन: प्रदूषण (वायु, जल, मृदा) ,औद्योगिक गतिविधियों एवं अनुचित अपशिष्ट निपटान के कारण जैवविविधता को नुकसान होता है, जो पारिस्थितिकी तंत्र में असंतुलन के साथ पौधों और जंतुओं को प्रभावित करता है।
    • जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान, वर्षा एवं समुद्र स्तर में असंतुलन से जैवविविधता के क्षरण में तीव्रता आती है, जिससे प्रजातियों को अनुकूलन या प्रवासन हेतु मजबूर होना पड़ता है, जिससे संभावित रूप से इनकी संख्या में गिरावट के साथ इनके वितरण प्रतिरूप में बदलाव आता है।
  • अत्यधिक दोहन: अत्यधिक मत्स्ययन और अवैध वन्यजीव व्यापार से इनकी संख्या में गिरावट आने के साथ इनके विलुप्त होने का खतरा बना रहता है। शिकार एवं अवैध वन्यजीव व्यापार इस समस्या को और बढ़ा देता है।
  • आक्रामक प्रजातियाँ: गैर-स्थानीय प्रजातियों को नए वातावरण में लाने से स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान हो सकता है। आक्रामक प्रजातियाँ मूल प्रजातियों से प्रतिस्पर्द्धा करती हैं, जिससे बीमारियाँ फैलने के साथ पारिस्थितिकी तंत्र के असंतुलित होने की वज़ह से मूल स्थानीय प्रजातियों की संख्या में गिरावट या विलुप्ति का खतरा उत्पन्न होता है।
  • विखंडन: आवास विखंडन से इनके प्रवासन को बढ़ावा मिलता है। इससे प्रजातियों की आनुवंशिक विविधता बनाए रखने की क्षमता में बाधा आने के साथ बाहरी खतरों के प्रति इनकी संवेदनशीलता बढ़ जाती है।
  • संरक्षण उपायों की कमी: संरक्षण प्रयासों, नीतियों एवं फंडिंग के अप्रभावी होने से जैवविविधता को नुकसान होता है। महत्त्वपूर्ण आवासों में सुरक्षा के अभाव के साथ संरक्षण कानूनों को अप्रभावी तरीके से लागू किये जाने से जोखिम युक्त प्रजातियों एवं पारिस्थितिकी प्रणालियों के संरक्षण में बाधा आती है।

जैवविविधता के क्षरण का समाधान करने हेतु आवश्यक उपाय:

  • संरक्षित क्षेत्र और आवास संरक्षण:
    • जैवविविधता के क्षरण को रोकने के लिये संरक्षित क्षेत्रों की स्थापना एवं इनका प्रभावी प्रबंधन महत्त्वपूर्ण है।
    • गलियारों के माध्यम से संरक्षित क्षेत्रों के विस्तार एवं कनेक्टिविटी बढ़ाने से आनुवंशिक विविधता के साथ प्रजातियों की आवाजाही को बढ़ावा मिलता है।
  • सतत् संसाधन प्रबंधन:
    • पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन हेतु पुनर्वनीकरण के साथ आवास विखंडन को रोकना आवश्यक है।
    • समुदाय-आधारित दृष्टिकोण के साथ मत्स्यपालन प्रबंधन से समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित किया जा सकता है।
  • लुप्तप्राय प्रजातियों का संरक्षण:
    • लुप्तप्राय प्रजातियों के लिये लक्षित प्रयास, प्रजनन कार्यक्रम एवं आवास बहाली जैसे उपाय आवश्यक हैं।
  • जलवायु परिवर्तन शमन रणनीति:
    • नवीकरणीय ऊर्जा को अपनाने से कार्बन फुटप्रिंट कम होने के साथ जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने में मदद मिलती है।
    • जलवायु-अनुकूल आवास जैसी अनुकूलन रणनीतियों को लागू करना, पारिस्थितिकी तंत्र के अनुकूलन हेतु महत्त्वपूर्ण है।
  • नीति और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग:
    • जैवविविधता हानि को रोकने के लिये मज़बूत पर्यावरण संरक्षण कानून और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग महत्त्वपूर्ण है।
    • सहयोगात्मक प्रयास से अवैध वन्यजीव व्यापार एवं सीमा पार प्रदूषण जैसी वैश्विक चुनौतियों से निपटा जा सकता है।
  • निगरानी और अनुसंधान:
    • नियमित जैवविविधता मूल्यांकन से जोखिमपूर्ण क्षेत्रों की पहचान होती है और इस दिशा में संरक्षण प्रयास को ट्रैक किया जा सकता है।
    • नवीन संरक्षण प्रौद्योगिकियों में निवेश करने से उभरते खतरों से निपटने की हमारी क्षमता में वृद्धि होती है।

निष्कर्ष:

अतः जैवविविधता के क्षरण को रोकने के लिये एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो आवास संरक्षण, सतत् संसाधन प्रबंधन, प्रजाति-विशिष्ट संरक्षण प्रयासों, जलवायु परिवर्तन शमन, सामुदायिक सहभागिता एवं मज़बूत नीतिगत ढाँचे के समन्वय पर आधारित है। भविष्य की पीढ़ियों के लिये पृथ्वी पर जीवन की समृद्ध विरासत को सुरक्षित रखने के लिये इन उपायों को स्थानीय, राष्ट्रीय एवं वैश्विक स्तर पर सामूहिक रूप से लागू करना आवश्यक है।