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Sambhav-2024

  • 27 Jan 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल

    दिवस 60

    Q1. भारत में मानसूनी जलवायु की प्रमुख विशेषताएँ और प्रभाव क्या हैं? (150 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भारत में मानसूनी जलवायु का संक्षिप्त परिचय लिखिये।
    • भारत में मानसूनी जलवायु की प्रमुख विशेषताओं को लिखिये।
    • भारत में मानसूनी जलवायु के प्रभावों को बताइये।
    • तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    भारत में मानसूनी जलवायु एक प्रमुख मौसम संबंधी घटना है, जो देश के मौसमी पैटर्न को परिभाषित करती है और पर्यावरण, कृषि तथा समाज पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालती है।

    मुख्य भाग:

    भारतीय मानसून की प्रमुख विशेषताएँ:

    • पवनों का मौसमी परिवर्तन:
      • दक्षिण-पश्चिम मानसून: ग्रीष्मकाल के दौरान भारतीय उपमहाद्वीप पर उष्ण पवनें एक न्यून दाब क्षेत्र का निर्माण करती हैं। जो हिंद महासागर से आर्द पवनों को आकर्षित करती है, जिसके परिणामस्वरूप दक्षिण-पश्चिम मानसून होता है जो आमतौर पर जून में शुरू होता है और सितंबर तक रहता है।
        • इससे देश के विभिन्न भागों मूलतः पश्चिमी तट और उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में भारी वर्षा होती है।
      • पूर्वोत्तर मानसून: शीतकाल के महीनों में अक्तूबर से दिसंबर तक भू-भाग पर शीतलता देखी जाती है, जिससे भारतीय उपमहाद्वीप पर एक उच्च दाब क्षेत्र का निर्माण होता है और पवनों का प्रवाह उत्तर-पूर्वी दिशा में हो जाता है। इन पवनों को उत्तर-पूर्वी मानसून या मानसून का निवर्तन के नाम से जाना जाता है।
        • मानसून निवर्तनीय पवनें, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश के कुछ भागों सहित देश के दक्षिण-पूर्वी भागों में वर्षा लाती हैं।

    • विभेदक वर्षा वितरण: संपूर्ण भारत में मानसून एक समान नहीं होता है। पश्चिमी तट, पूर्वोत्तर राज्यों और हिमालय की तलहटी में पर्याप्त वर्षा होती है, जबकि राजस्थान जैसे उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में शुष्क परिस्थितियाँ देखी जाती हैं।
    • शीतलन प्रभाव: मानसून तापमान को नियंत्रित करने में मदद करता है, जिससे चिलचिलाती गर्मी से राहत मिलती है। भारी वर्षा वाले क्षेत्रों में शीतलन प्रभाव विशेष रूप से स्पष्ट होता है।

    भारत में मानसूनी जलवायु का प्रभाव:

    • सकारात्मक प्रभाव:
      • कृषि क्षेत्र में समृद्धि: मानसून के दौरान पर्याप्त और सुवितरित वर्षा कृषि के लिये महत्त्वपूर्ण है। यह मृदा में उचित आर्दता सुनिश्चित करती है, फसलों के विकास को बढ़ावा देती है और कृषि उत्पादकता को बढ़ाती है।
      • जलाशयों का पुनर्भरण: मानसूनी वर्षा जलाशयों, झीलों और नदियों को भरने में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है। यह जल स्तर को बनाए रखने और सिंचाई, घरेलू उपयोग एवं औद्योगिक उद्देश्यों के लिये जलापूर्ति सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक है।
      • जैवविविधता का समर्थन: मानसूनी मौसम पौधों, जानवरों और पारिस्थितिक तंत्र के लिये आवश्यक जल प्रदान करके जैवविविधता का समर्थन करता है। यह आवास विविधता को बनाए रखता है, विभिन्न क्षेत्रों में वनस्पतियों और जीवों की समृद्धि में योगदान देता है।
      • सांस्कृतिक और सामाजिक प्रभाव: मानसून का भारतीय संस्कृति पर गहरा प्रभाव है, जो त्योहारों, परंपराओं और कला को प्रभावित करता है। मानसून के आगमन को प्रायः नवीकरण एवं समृद्धि के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।
    • नकारात्मक प्रभाव :
      • आर्थिक निर्भरता: भारतीय कृषि काफी हद तक मानसून पर निर्भर है। मानसून की विफलता के गंभीर आर्थिक परिणाम हो सकते हैं, जिससे कृषि, मत्स्यपालन और वानिकी जैसे क्षेत्र प्रभावित हो सकते है।
      • मौसमी बाढ़: मानसून के दौरान तीव्र एवं लंबे समय तक बारिश के कारण विशेषतः निचले इलाकों और नदीय मैदानों में प्रायः बाढ़ की स्थिति देखी जाती है। जिसके परिणामस्वरूप गंभीर आर्थिक और मानवीय क्षति हो सकती है।
      • पर्यावरण संबंधी चिंताएँ: अत्यधिक वर्षा से मृदा अपरदन और जलभराव हो सकता है, जिससे मृदा के स्वास्थ्य पर असर पड़ सकता है। इसके अतिरिक्त अपवाह में वृद्धि मृदा में पोषक तत्त्वों को कम करने में योगदान दे सकती है।

    निष्कर्ष:

    भारत में मानसूनी जलवायु के बहुमुखी प्रभावों की सामंजस्यपूर्ण समझ एवं प्रभावी प्रबंधन सतत् विकास, जलवायु परिवर्तनशीलता के प्रति लचीलापन और देश की समग्र समृद्धि सुनिश्चित करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।

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