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27 Jan 2024
सामान्य अध्ययन पेपर 1
भूगोल
दिवस 60
Q2. भारत में ग्लोबल वार्मिंग के कारणों एवं प्रभावों का परीक्षण कीजिये। इसके नकारात्मक प्रभावों को कम करने हेतु क्या उपाय किये जा सकते हैं? (250 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- ग्लोबल वार्मिंग का संक्षिप्त परिचय लिखिये।
- भारत पर ग्लोबल वार्मिंग के कारण और परिणाम बताइये।
- भारत में ग्लोबल वार्मिंग को संबोधित करने के लिये उठाए जा सकने वाले उपायों को लिखिये।
- तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
ग्लोबल वार्मिंग से तात्पर्य मानवीय गतिविधियों, विशेषकर वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के कारण पृथ्वी की औसत सतह के तापमान में दीर्घकालिक वृद्धि से है। IPCC रिपोर्ट से पता चलता है कि वर्ष 1850-1900 के बाद से पृथ्वी लगभग 1.1 डिग्री सेल्सियस तक गर्म हो गई है, जिसके अगले 20 वर्षों में 1.5 डिग्री सेल्सियस तक पहुँचने या उससे अधिक की संभावना का अनुमान लगाया गया है।
मुख्य भाग:
भारत में ग्लोबल वार्मिंग के कारण:
- ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन: ग्लोबल वार्मिंग का प्राथमिक कारण वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों (GHG) की बढ़ती सांद्रता के परिणामस्वरूप बढ़ा हुआ ग्रीनहाउस प्रभाव है।
- भारत वैश्विक स्तर पर ग्रीनहाउस गैसों का तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक है।
- कृषि पद्धतियाँ: कृषि पद्धतियों (विशेष रूप से धान की खेती और पशुपालन) से मीथेन उत्सर्जन (एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस) में वृद्धि होती है, जिससे ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ावा मिलता है।
- कुल ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन में कृषि क्षेत्र का योगदान 14% है।
- वनाच्छादन: भारत में कृषि विस्तार, शहरीकरण और औद्योगिक विकास के लिये पर्याप्त वनों की कटाई देखी गई है। पेड़ कार्बन सिंक के रूप में कार्य करते हैं, उसके निष्कासन के परिणामस्वरूप संग्रहीत कार्बन डाइ-ऑक्साइड (CO2) वायुमंडल में जारी होती है, जिससे वार्मिंग प्रभाव में वृद्धि हो जाती है।
- ऊर्जा खपत: ऊर्जा उत्पादन के लिये कोयले पर निर्भरता और उद्योगों की तीव्र वृद्धि कार्बन उत्सर्जन में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है। भारत के उत्सर्जन में विद्युत् क्षेत्र का सबसे बड़ा योगदान है, जो देश के उत्सर्जन का लगभग 29% है।
भारत पर ग्लोबल वार्मिंग के परिणाम:
- तापमान में वृद्धि: विगत कुछ वर्षों में भारत के औसत तापमान में वृद्धि देखी गई है। इस वृद्धि के परिणामस्वरूप अधिक बार और तीव्र लू चलती है, जिससे मानव स्वास्थ्य, कृषि एवं जल संसाधन प्रभावित होते हैं।
- अनियमित वर्षा पैटर्न: ग्लोबल वार्मिंग मानसून पैटर्न को प्रभावित करती है, जिससे अनियमित वर्षा होती है। वर्षा पैटर्न में बदलाव के परिणामस्वरूप शुष्कता, जल की कमी और कृषि में व्यवधान जैसी समस्याएँ हो सकती हैं।
- फसल उत्पादन में कमी: ऊष्मा वृद्धि, जल की कमी और कीटों की परिवर्तित गतिशीलता के संयोजन से फसल की पैदावार में कमी आ सकती है। धान, गेहूँ और मक्का जैसी मुख्य फसलें विशेष रूप से असुरक्षित हो सकती हैं।
- समुद्र के जलस्तर में वृद्धि: पृथ्वी के गर्म होने से ग्लेशियरों और ध्रुवीय बर्फ के पिघलने से समुद्र के जलस्तर में वृद्धि होती है। भारत में तटीय क्षेत्र बाढ़ और अपरदन के प्रति संवेदनशील हैं, जिससे समुदायों एवं पारिस्थितिक तंत्र पर प्रभाव पड़ रहा है।
- चरम मौसमी घटनाएँ: ग्लोबल वार्मिंग से चक्रवात, बाढ़ और तूफान सहित चरम मौसमी घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता बढ़ जाती है। इन घटनाओं का बुनियादी ढाँचे, कृषि और मानव बस्तियों पर विनाशकारी प्रभाव पड़ता है।
भारत में ग्लोबल वार्मिंग के लिये रणनीतियाँ:
- नवीकरणीय ऊर्जा में परिवर्तन: सौर, पवन और जलविद्युत जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में निवेश करने से जीवाश्म ईंधन पर भारत की निर्भरता काफी कम हो सकती है, जिससे कार्बन उत्सर्जन कम हो सकता है।
- भारत यह सुनिश्चित करने का भी वादा कर रहा है कि वर्ष 2030 में स्थापित विद्युत् उत्पादन क्षमता का कम-से-कम 50% गैर-जीवाश्म ईंधन-आधारित स्रोतों पर आधारित होगा।
- ऊर्जा दक्षता के उपाय: उद्योगों, परिवहन और घरों में ऊर्जा-कुशल प्रौद्योगिकियों एवं प्रथाओं को लागू करने से समग्र ऊर्जा खपत कम हो सकती है तथा कार्बन उत्सर्जन कम हो सकता है।
- भारत अब वर्ष 2005 के स्तर से वर्ष 2030 तक सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता (GDP की प्रति इकाई उत्सर्जन) में कम-से-कम 45% की कमी लाने के लिये प्रतिबद्ध है।
- वनीकरण और पुनर्वनीकरण: बड़े पैमाने पर वनीकरण और पुनर्वनीकरण कार्यक्रमों को लागू करना कार्बन सिंक के रूप में कार्य कर सकता है, जो वायुमंडल से CO2 को अवशोषित करता है। इससे वनाच्छादन के प्रभावों को कम करने में सहायता मिलती है।
- सतत् कृषि पद्धतियाँ: जैविक खेती और कुशल जल प्रबंधन जैसी स्थाई कृषि पद्धतियों को प्रोत्साहित करने से इस क्षेत्र से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम किया जा सकता है।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: अंतर्राष्ट्रीय समझौतों और सहयोग के माध्यम से जलवायु परिवर्तन से निपटने के वैश्विक प्रयासों में सक्रिय रूप से भाग लेना मुद्दे की सीमा पार प्रकृति को संबोधित करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
निष्कर्ष:
सतत् प्रथाओं, लचीली नीतियों और वैश्विक सहयोग को लागू करके, भारत जलवायु परिवर्तन देश की दिशा में एक राह बना सकता है, जहाँ पारिस्थितिकी तंत्र फलता-फूलता है, समुदाय विकास करते हैं और आने वाली पीढ़ियों को प्रचुरता एवं संतुलन वाला यह ग्रह विरासत में मिलता है।