Sambhav-2024

दिवस - 06

प्रश्न.2 भारतीय संविधान के तहत आपातकालीन प्रावधान क्या हैं? इन प्रावधानों के कार्यान्वयन के लिये नियंत्रण और संतुलन ने केंद्र सरकार की जवाबदेही कैसे तय की है? (250 शब्द)

25 Nov 2023 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • आपातकालीन प्रावधानों और उनके महत्त्व पर चर्चा करते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
  • संविधान में उल्लिखित तीन प्रकार के आपातकालीन प्रावधानों एवं आपातकालीन शक्तियों के दुरुपयोग को रोकने के लिये उपलब्ध अवरोध तथा संतुलन पर चर्चा कीजिये।
  • मुख्य बिंदुओं को संक्षेप में प्रस्तुत करते हुए निष्कर्ष लिखिये।

परिचय:

भारतीय संविधान के भाग XVIII में अनुच्छेद 352 से 360 तक आपातकाल से संबंधित उपबंध उल्लिखित हैं। ये प्रावधान केंद्र सरकार को किसी भी असामान्य स्थिति के प्रभावी निपटान तथा देश की सुरक्षा, स्थिरता व शासन व्यवस्था सुनिश्चित करने में सक्षम बनाते हैं। आपातकाल की अवधारणा जर्मनी के वाइमर संविधान से ली गई थी।

संविधान में तीन प्रकार की आपात स्थितियों का उल्लेख किया गया है:

  • अनुच्छेद 352: यदि ‘युद्ध’, ‘बाह्य आक्रमण’ या ‘सशस्त्र विद्रोह’ के कारण संपूर्ण भारत अथवा इसके किसी हिस्से की सुरक्षा खतरे में हो तो राष्ट्रपति राष्ट्रीय आपात की घोषणा कर सकता है। इसके लिये एक महीने के भीतर संसद की मंज़ूरी आवश्यक है और यह छह महीने तक लागू रह सकता है, जिसे आवश्यकतानुरूप बढ़ाया भी जा सकता है।
    • राष्ट्रीय आपातकाल में राज्य की शक्तियाँ केंद्र में स्थानांतरित हो जाती हैं और मौलिक अधिकारों (अनुच्छेद 20 तथा 21 को छोड़कर) को निलंबित कर दिया जाता है। इस अवधि के दौरान राष्ट्रपति के पास केंद्र एवं राज्यों के बीच राजस्व वितरण में बदलाव करने का अधिकार होता है।
  • अनुच्छेद 356: किसी राज्य के संवैधानिक तंत्र की विफलता की स्थिति में राष्ट्रपति उस राज्य में आपातकाल (राष्ट्रपति शासन) की घोषणा कर सकता है। इसके लिये दो महीने के भीतर संसद की मंज़ूरी आवश्यक है और यह छह महीने तक लागू रह सकता है, जिसे आवश्यकतानुरूप अधिकतम प्रत्येक छह महीने पर संसद के अनुमोदन द्वारा अधिकतम तीन वर्ष तक के लिये बढ़ाया भी जा सकता है। इस दौरान राष्ट्रपति राज्य विधानमंडल को भंग, निलंबित अथवा अन्य अधिकार प्रदान कर सकता है तथा संसद राज्य हेतु कानून बना सकती है।
  • अनुच्छेद 360: भारत की वित्तीय स्थायित्व अथवा साख के खतरे में होने की स्थिति में राष्ट्रपति वित्तीय आपातकाल की घोषणा कर सकता है। इसके लिये दो महीने के भीतर संसद की मंज़ूरी आवश्यक है और इसे रद्द किये जाने तक अनिश्चित काल तक जारी रखा जा सकता है। वित्तीय आपातकाल के दौरान राष्ट्रपति के पास कर्मियों को प्रदान किये जाने वाले वेतन में कटौती करने, वित्तीय सिद्धांतों पर राज्यों का मार्गदर्शन करने एवं राजस्व वितरण में संशोधन करने का अधिकार होता है।

भारतीय संविधान आपातकालीन शक्तियों के दुरुपयोग को रोकने के लिये कुछ अवरोध तथा संतुलन लागू करता है और यह सुनिश्चित करता है कि आपातकालीन प्रावधानों का उपयोग संयमित रूप से व केवल असाधारण परिस्थितियों में ही किया जाए। इनमें से कुछ अवरोध तथा संतुलन इस प्रकार हैं:

  • संसदीय अनुमोदन:
    • संसदीय अनुमोदन की आवश्यकता आपातकालीन प्रावधानों पर महत्त्वपूर्ण अवरोधों में से एक है। सभी तीन प्रकार की आपात स्थितियों में राष्ट्रपति द्वारा उठाए जाने वाले कदमों हेतु संसद के दोनों सदनों की मंज़ूरी प्राप्त होना अनिवार्य है।
    • यह कार्यपालिका द्वारा मनमाने ढंग से आपातकालीन शक्तियों के दुरुपयोग पर प्रतिबंध सुनिश्चित करता है और जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों के पास आपातकालीन उपायों को बनाए रखने अथवा वापस लेने के संबंध में अपनी बात रखने का अधिकार है।
  • सीमित अवधि:
    • आपातकालीन प्रावधान आपात की स्थिति को दीर्घ काल तक बनाए रखने के लिये नहीं हैं। उनकी एक सीमित अवधि होती है और उन्हें समय-समय पर संसद द्वारा पुनः अनुमोदित किया जाना आवश्यक है। यह सरकार को आपातकालीन शक्तियों का अनिश्चित काल तक प्रयोग करने से प्रतिबंधित करता है तथा आपातकालीन उपायों की अस्थायी प्रकृति को मज़बूती प्रदान करता है।
  • न्यायिक समीक्षा:
    • आपातकालीन शक्तियों के दुरुपयोग को रोकने में सर्वोच्च न्यायालय महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह राष्ट्रपति की उद्घोषणा और आपात स्थिति के दौरान की गई कार्रवाइयों के संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप होना सुनिश्चित करने हेतु समीक्षा कर सकता है।
    • न्यायपालिका व्यक्तिगत अधिकारों के संरक्षक के रूप में कार्य करती है, यह आपात स्थिति के दौरान भी मौलिक अधिकारों को सरक्षण प्रदान करती है।
  • संघीय संरचना:
    • भारतीय संविधान का संघीय ढाँचा आपातकालीन शक्तियों के दुरुपयोग पर अंकुश लगाने का कार्य करता है। राज्यपाल द्वारा रिपोर्ट प्रस्तुत किये जाने के बाद ही किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है तथा इसमें राज्य सरकार को अपना पक्ष रखने का अवसर प्रदान किया जाता है।
    • यह संघीय संतुलन राज्यों के मामलों में केंद्र के मनमाने हस्तक्षेप को रोकता है।

निष्कर्ष:

भारतीय संविधान के आपातकालीन प्रावधानों में अवरोध तथा संतुलन, आपातकालीन शक्तियों के दुरुपयोग पर प्रतिबंध शामिल हैं। ये उपाय लोकतंत्र की रक्षा करते हैं, कानून के शासन को बनाए रखते हैं और आपातकाल के दौरान व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करते हैं। ये प्रावधान संवैधानिक एवं लोकतांत्रिक ढाँचे के भीतर केंद्र सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित करते हैं।