प्रश्न.1 भारत में केंद्र-राज्य संबंधों के विकास और चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)
25 Nov 2023 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत में केंद्र-राज्य संबंधों की अवधारणा का संक्षेप में परिचय दीजिये।
- केंद्र-राज्य संबंधों के विकास और केंद्र-राज्य संबंधों की चुनौतियों पर चर्चा कीजिये।
- समाधान-आधारित दृष्टिकोण के साथ निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
भारत में केंद्र-राज्य संबंध केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों तथा अधिकारों का एक जटिल अंतर्संबंध है। संघवाद के सिद्धांतों पर आधारित भारतीय संविधान केंद्र व राज्यों के बीच विधायी, कार्यकारी और वित्तीय शक्तियों का विभाजन करता है। हालाँकि संविधान कुछ स्थितियों में राज्यों के मामलों में हस्तक्षेप करने में सक्षम एक मज़बूत केंद्र का भी प्रावधान करता है।
केंद्र-राज्य संबंधों का विकास:
- स्वात्रंत्रोत्तर काल (1950s-1960s):
- स्वतंत्रता पश्चात् शुरुआती वर्षों में हम पाते हैं कि राष्ट्र को मज़बूती प्रदान करने वाले एक मज़बूत केंद्र पर बल दिया गया।
- 7वें संशोधन (1956) द्वारा राज्यों का भाषा के आधार पर पुनर्गठन किया गया और केंद्रशासित प्रदेशों की अवधारणा पेश की गई।
- विकास नीतियों को आकार देने, केंद्रीकरण की प्रवृत्ति को बढ़ावा देने में योजना आयोग की प्रमुख भूमिका रही।
- विभिन्न संशोधनों का काल (1970-1980 के दशक):
- 42वें संशोधन (1976) द्वारा पाँच विषयों को राज्य सूची से समवर्ती सूची में स्थानांतरित कर दिया गया और राष्ट्रीय आपात स्थितियों व आंतरिक समस्याओं के निपटने के लिये केंद्र को अधिक शक्तियाँ प्रदान की गईं।
- 44वें संशोधन (1978) द्वारा बयालीसवें संशोधन द्वारा किये गए कुछ बदलावों को रद्द करते हुए केंद्र और राज्यों के बीच शक्ति का संतुलन स्थापित किया गया।
- अंतर-राज्य परिषद की स्थापना और सरकारिया आयोग की सिफारिशों द्वारा चिह्नित सहकारी संघवाद पर ज़ोर दिया गया।
- विकेंद्रीकरण और सशक्तीकरण (1990-2000 के दशक):
- 1990 के दशक में आर्थिक सुधारों द्वारा राज्यों को आर्थिक विकास में सक्रिय भूमिका निभाने के लिये प्रोत्साहित किया गया।
- संविधान में 73वें और 74वें संशोधन (1992) द्वारा विकेंद्रीकरण, स्थानीय निकायों का सशक्तीकरण और राज्य की स्वायत्तता बढ़ाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाया गया।
- इस दशक में वित्त आयोग राजकोषीय संघवाद का एक प्रमुख उपकरण था।
- वस्तु एवं सेवा कर (GST) काल (वर्ष 2017 से आगे)
- 101वाँ संशोधन (2016) द्वारा वस्तु एवं सेवा कर (GST) की शुरुआत की गई, जिसने केंद्र और राज्यों द्वारा लगाए गए कई अप्रत्यक्ष करों में कई बदलाव किये तथा एक सामान्य कर प्रणाली की स्थापना की।
- अप्रत्यक्ष कराधान से संबंधित मामलों के निपटान हेतु GST परिषद का गठन सहकारी संघवाद का एक प्रमुख उदाहरण है।
केंद्र-राज्य संबंधों में चुनौतियाँ:
- विभिन्न निकायों की अप्रभावी कार्यप्रणाली: योजना आयोग का सुचारु रूप से कार्यरत न होना, पिछले सात वर्षों में अंतर-राज्य परिषद की केवल ही बैठक तथा राष्ट्रीय विकास परिषद की कोई बैठक न होना केंद्र-राज्य संबंधों में प्रमुख चुनौतियाँ उत्पन्न करती है।
- इन घटनाओं के कारण संघ और राज्यों के बीच सहयोगात्मक भावना को बनाए रखना समस्याप्रद रहा है।
- कर व्यवस्था संबंधी मुद्दे: अनुचित तरीके से डिज़ाइन किये गए वस्तु एवं सेवा कर (GST) के कारण राज्यों को प्राप्त अधिकांश स्वायत्तता समाप्त हो गई है तथा देश की अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था प्रकृति में एकात्मक हो चुकी है।
- महामारी के दौरान केंद्र सरकार ने GST व्यवस्था के तहत राज्यों को मुआवज़े की गारंटी का कई बार उल्लंघन किया। राज्यों को उनके बकाया भुगतान किये जाने में देरी के कारण आर्थिक मंदी से गुज़रना पड़ा।
- राज्य के विषयों में राज्यों की स्वायत्तता पर अतिक्रमण: पिछले कुछ वर्षों में कई अहम और राजनीतिक रूप से संवेदनशील निर्णय संबंधित राज्यों को नज़रअंदाज करते हुए तथा बिना परामर्श के लिये गए हैं, जैसे:
- वर्ष 2020 में पेश किये गए तीन कृषि कानून राज्य की शक्ति के उल्लंघन का उदहारण हैं, चूँकि कृषि राज्य सूची के तहत एक विषय है, इस कारण इन कानूनों की काफी आलोचना भी हुई।
- कई आलोचकों ने नई शिक्षा नीति 2020 को राजनीति की संघीय प्रकृति पर अतिक्रमण के रूप में माना है।
निष्कर्ष:
भारत के केंद्र-राज्य संबंध राजनीति, समाज और अर्थव्यवस्था में बदलाव के अनुरूप अनुकूलनीय एवं गतिशील हैं। संघीय व्यवस्था में चुनौतियों के निपटान तथा अवसरों का लाभ उठाने के लिये निरंतर परस्पर संवाद, विश्वास-निर्माण एवं नवाचार आवश्यक है।