Sambhav-2024

दिवस 58

Q2. पृथ्वी और वायुमंडल के बीच ताप संतुलन बनाए रखने में सहायक प्रणाली पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

25 Jan 2024 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | भूगोल

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • ग्रहों की स्थिरता और आवासन क्षमता के लिये ताप संतुलन बनाए रखने के महत्त्व को बताते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
  • ताप संतुलन बनाए रखने में शामिल प्रमुख प्रक्रियाओं का वर्णन कीजिये।
  • तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।

परिचय:

पृथ्वी-वायुमंडल प्रणाली विभिन्न तंत्रों की जटिल परस्पर क्रिया के माध्यम से ऊष्मा संतुलन बनाए रखती है, जो मुख्य रूप से सूर्य की ऊर्जा और पृथ्वी के वायुमंडल की विशेषताओं से प्रेरित होती है। यह गतिशील संतुलन हमारे ग्रह पर जीवन को बनाए रखने के लिए महत्त्वपूर्ण है।

निकाय:

ताप संतुलन बनाए रखने में शामिल प्रमुख तंत्र:

  • सौर विकिरण: सूर्य, पृथ्वी-वायुमंडल प्रणाली के लिये ऊर्जा का प्राथमिक स्रोत है। यह दृश्य प्रकाश, पराबैंगनी (UV) और अवरक्त (IR) विकिरण के रूप में सौर विकिरण उत्सर्जित करता है।
    • आगामी सौर विकिरण का लगभग 70% पृथ्वी की सतह द्वारा अवशोषित हो जाता है, जबकि शेष बादलों, वायुमंडलीय कणों और पृथ्वी की सतह द्वारा वापस अंतरिक्ष में परावर्तित हो जाता है।
  • वायुमंडलीय अवशोषण: पृथ्वी का वायुमंडल सतह तक पहुँचने वाले सौर विकिरण की मात्रा को विनियमित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कुछ गैसें, जैसे जल वाष्प, कार्बन डाइऑक्साइड और ओज़ोन, सौर विकिरण की विशिष्ट तरंग दैर्ध्य को अवशोषित करती हैं।
    • इस अवशोषण से वायुमंडल गर्म होता है, जिससे पृथ्वी की सतह को अत्यधिक गर्म होने से रोका जा सकता है।
  • चालन, संवहन और अभिवहन: ऊष्मा को चालन, संवहन और अभिवहन के माध्यम से पृथ्वी-वायुमंडल प्रणाली के भीतर स्थानांतरित किया जाता है।
    • चालन में पदार्थों के माध्यम से ऊष्मा का सीधा हस्तांतरण होता है, जैसे– तापमान पृथ्वी की सतह से मृदा की शीतल परतों तक ऊष्मा का हस्तांतरण।
    • संवहन तब होता है, जब उष्ण वायु ऊपर उठती है और शीतल वायु नीचे गिरती है, जिससे वातावरण में ऊर्ध्वाधर गतिविधियाँ उत्पन्न हो जाती हैं।
      • बादलों के निर्माण में संवहन महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बादल आने वाले सौर विकिरण को प्रतिबिंबित करते हैं और बाहर जाने वाली दीर्घतरंग विकिरण को रोक लेते हैं, जिससे समग्र ताप संतुलन में वृद्धि होती है।
    • संवहन में वायु द्रव्यमान की क्षैतिज गति शामिल होती है, जो विभिन्न क्षेत्रों में ऊष्मा का परिवहन करती है।
  • स्थलीय विकिरण: पृथ्वी की सतह शीतल होने पर अवरक्त विकिरण (स्थलीय विकिरण) उत्सर्जित करती है। यह निवर्तमान विकिरण ताप संतुलन बनाए रखने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • वायुमंडल में मौजूद ग्रीनहाउस गैसें, जैसे कि जलवाष्प, कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और अन्य, इस स्थलीय विकिरण के कुछ हिस्से को अवशोषित तथा पुनः पृथ्वी की सतह की ओर वापस विकीर्ण करती हैं, जिससे एक तापीय प्रभाव उत्पन्न होता है, जिसे ग्रीनहाउस प्रभाव के रूप में जाना जाता है।
  • गुप्त ऊष्मा: जलीय अवस्था परिवर्तन, जैसे– वाष्पीकरण और संघनन, ऊष्मा संतुलन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जब पृथ्वी की सतह से जल वाष्पित हो जाता है, तो यह ऊष्मा को अवशोषित कर लेता है और वातावरण को शीतल कर देता है। इसके विपरीत, जब जलवाष्प संघनित होकर बादलों में परिवर्तित हो जाती है, तो ऊष्मा वायुमंडल में वापस चली जाती है, जिससे आसपास की वायु उष्ण हो जाती है।
  • महासागरीय ताप भंडारण: महासागर अपनी उच्च तापीय क्षमता के कारण विशाल ताप भंडार के रूप में कार्य करते हैं। वे क्षेत्रीय और वैश्विक जलवायु पैटर्न को प्रभावित करते हुए दीर्घ काल तक ऊष्मा को अवशोषित, संग्रहीत और पुनर्वितरित करते हैं।
  • अल्बिडो प्रभाव: सतहों की परावर्तनशीलता, जिसे अल्बिडो के रूप में जाना जाता है, ताप संतुलन को प्रभावित करती है। उच्च अल्बिडो वाली सतहें, जैसे– हिम और बर्फ, अधिक सौर विकिरण को प्रतिबिंबित करती हैं, जो शीतलन में योगदान देती हैं। इसके विपरीत, कम अल्बिडो वाली सतहें, जैसे– घने जंगल या महासागर, अधिक सूर्य के प्रकाश को अवशोषित करते हैं, जिससे ऊष्मा में वृद्धि होती है।

निष्कर्ष:

इन तंत्रों का संयोजन यह सुनिश्चित करता है कि पृथ्वी अपेक्षाकृत स्थिर तापमान बनाए रखती है, जिससे विविध पारिस्थितिक तंत्रों का अस्तित्व और जीवन की स्थिरता बनी रहती है। हालाँकि, मानवीय गतिविधियाँ, जैसे– जीवाश्म ईंधन का दहन और वनों की कटाई, इन प्राकृतिक प्रक्रियाओं को परिवर्तित कर सकती हैं, जो वैश्विक जलवायु परिवर्तन में योगदान कर सकती हैं।