Sambhav-2024

दिवस 55

प्रश्न 1. स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ब्रिटिश भारत में हुए कृषक आंदोलनों की विशेषताओं एवं प्रभावों की चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

22 Jan 2024 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | इतिहास

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • प्रश्न के संदर्भ को ध्यान में रखते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
  • ब्रिटिश भारत में कृषक आंदोलनों की विशेषताओं पर चर्चा कीजिये।
  • ब्रिटिश भारत में कृषक आंदोलनों के प्रभाव की व्याख्या कीजिये।
  • यथोचित निष्कर्ष लिखिये।

परिचय:

ब्रिटिश भारत में स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान कई कृषक आंदोलन हुए, जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम की दिशा को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इन आंदोलनों ने उस समय के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य पर स्थायी प्रभाव डाला।

मुख्य भाग:

कृषक आंदोलन की विशेषताएँ:

  • सीमित उद्देश्य: यह संघर्ष विशिष्ट और सीमित उद्देश्यों के साथ विशेष शिकायतों के निवारण हेतु निर्देशित थे।
    • इन आंदोलनों में उपनिवेशवाद को लक्षित नहीं किया गया था।
  • निरंतरता का अभाव: इन आंदोलनों की क्षेत्रीय पहुँच सीमित होने के साथ इनमें संघर्ष की निरंतरता का अभाव देखा गया।
    • ये संघर्ष उग्र होने के बावजूद वैकल्पिक समाज की सकारात्मक अवधारणा के साथ पुरानी सामाजिक व्यवस्था के अनुरूप थे।
  • विविध और स्थानीयकृत: ये एकीकृत न होने के साथ विभिन्न क्षेत्रों से संबंधित थे। इनमें अत्यधिक भूमि लगान, दमनकारी ज़मींदारी प्रणाली एवं अनुचित कराधान जैसी विशिष्ट स्थानीय शिकायतों को हल करने पर बल दिया गया।
  • सहज और प्रतिक्रियाशील: फसल की विफलता, अकाल एवं दमनकारी नीतियों से उत्पन्न तात्कालिक कठिनाइयों ने अक्सर विरोध प्रदर्शन, हड़ताल और हिंसक विद्रोह को जन्म दिया।
  • बहु-वर्ग: यह मुख्य रूप से बटाईदार किसानों एवं भूमिहीन मज़दूरों द्वारा संचालित होते थे लेकिन कभी-कभी उनमें छोटे भूमि मालिक तथा भूमि से निष्कासित होने वाले आदिवासी समुदाय भी शामिल होते थे।
  • सामंतवाद विरोधी: इनमें स्थानीय ज़मींदारों को निशाना बनाने के साथ उनकी शोषणकारी प्रथाओं को चुनौती दी गई तथा भूमि सुधार, उचित भूमि कर एवं बेहतर जीवन स्थितियों की मांग की गई।
  • सीमित राजनीतिक लक्ष्य: स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान देने के बावजूद उनका प्राथमिक उद्देश्य ब्रिटिश शासन के उन्मूलन के बजाय तात्कालिक कृषि संबंधी चिंताओं को हल करना था।

स्वतंत्रता संग्राम पर प्रभाव:

  • राजनीतिक चेतना में वृद्धि:
    • कृषक आंदोलनों ने ग्रामीण लोगों में राजनीतिक जागृति लाने के साथ राजनीतिक चेतना की भावना को बढ़ावा देने में योगदान दिया।
    • कई किसान नेता स्वतंत्रता संघर्ष के प्रमुख व्यक्ति बन गए।
  • अनेकता में एकता:
    • कृषक आंदोलनों में विविध भाषायी, धार्मिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के लोगों के एक साथ आने से एकता की भावना को बढ़ावा मिला।
    • ग्रामीण और शहरी संघर्षों के एकीकरण से समग्र रूप से स्वतंत्रता आंदोलन को मज़बूती मिली।
  • राष्ट्रीय नेतृत्व पर प्रभाव:
    • महात्मा गांधी जैसे नेताओं ने स्वतंत्रता संघर्ष में कृषि संबंधी मुद्दों के समाधान को महत्त्व दिया।
    • कृषक आंदोलनों से भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस के राजनीतिक एजेंडे एवं रणनीतियों पर प्रभाव पड़ा।
  • विधायी सुधार:
    • स्वतंत्रता के बाद के भारत में भूमि सुधारों के कार्यान्वयन में कृषक आंदोलनों का प्रभाव स्पष्ट था।
    • सरकारों ने भूमि पुनर्वितरण और बटाईदारी सुधार जैसे उपायों के माध्यम से किसानों की काफी समय से चली आ रही शिकायतों को दूर करने की कोशिश की।

निष्कर्ष:

स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ब्रिटिश भारत में किसान आंदोलन आर्थिक समस्याओं, सामाजिक अन्याय के समाधान के साथ ही स्वायत्तता की भावना से प्रेरित थे। इन आंदोलनों ने न केवल ग्रामीण लोगों के साथ होने वाले शोषण को उजागर किया बल्कि इन्होंने उस समय के राजनीतिक परिदृश्य को आकार देने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।