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Sambhav-2024

  • 20 Jan 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    दिवस 54

    प्रश्न 2. भारत में स्थानीय स्वशासन को बढ़ावा देने के क्रम में ब्रिटिश पहल की प्रभावशीलता तथा निहितार्थ का परीक्षण कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • ब्रिटिशों द्वारा स्थानीय स्वशासन हेतु शुरू की गई पहल को बताते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • स्थानीय स्वशासन के लिये कुछ प्रमुख ब्रिटिश पहलों के साथ उनकी प्रभावशीलता एवं निहितार्थों पर चर्चा कीजिये।
    • यथोचित निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    भारत में स्थानीय स्वशासन को बढ़ावा देने के क्रम में ब्रिटिश पहल विकेंद्रीकरण और अप्रत्यक्ष शासन की उनकी औपनिवेशिक नीति का हिस्सा थी। इन पहलों का उद्देश्य स्थानीय अभिजात वर्ग के रूप में एक वफादार वर्ग तैयार करना था जो ब्रिटिश हितों का समर्थन करे, ताकि केंद्र सरकार पर प्रशासनिक एवं वित्तीय बोझ को कम किया जा सके।

    मुख्य भाग:

    भारत में स्थानीय स्वशासन हेतु ब्रिटिशों द्वारा की गई कुछ प्रमुख पहल:

    • बंगाल चौकीदार अधिनियम,1870 द्वारा कानून एवं व्यवस्था बनाए रखने तथा कर एकत्र करने हेतु ग्राम समितियों की स्थापना का प्रावधान किया गया।
    • वर्ष 1882 के रिपन प्रस्ताव को भारत में स्थानीय स्वशासन का मैग्नाकार्टा माना जाता है। इसने कुछ कार्यों और शक्तियों को स्थानीय निकायों जैसे नगर पालिकाओं एवं ज़िला बोर्डों को हस्तांतरित करने तथा उनके कुछ सदस्यों का चुनाव स्थानीय लोगों द्वारा कराए जाने का प्रस्ताव रखा।
    • वर्ष 1919 के मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधारों द्वारा प्रांतों में द्वैध शासन प्रणाली की शुरुआत की गई, जिसके तहत कुछ विषय जैसे- स्थानीय स्वशासन, शिक्षा एवं स्वास्थ्य, निर्वाचित भारतीय मंत्रियों को हस्तांतरित कर दिये गए, जबकि अन्य जैसे- कानून एवं व्यवस्था, वित्त और रक्षा, ब्रिटिश गवर्नरों के पास ही रहे।
    • भारत सरकार अधिनियम,1935 द्वारा द्वैध शासन प्रणाली को केंद्र तक विस्तारित करते हुए प्रांतीय स्वायत्तता एवं संघवाद का प्रावधान किया गया। इसके द्वारा स्थानीय निकायों को अधिक शक्तियाँ और संसाधन दिये गए साथ ही उनमें महिलाओं, अल्पसंख्यकों एवं पिछड़े वर्गों का प्रतिनिधित्व भी बढ़ाया गया।

    इन ब्रिटिश पहलों की प्रभावशीलता और निहितार्थ:

    प्रभावशीलता:

    • सीमित स्थानीय नियंत्रण: ज़िला बोर्डों और नगर पालिकाओं जैसे स्थानीय निकायों की शुरुआत होने से भारतीयों को गाँव एवं शहर के स्तर पर शासन में भाग लेने के लिये मंच मिला। इससे स्थानीय समुदायों में राजनीतिक चेतना के साथ नेतृत्व कौशल का विकास हुआ।
    • स्थानीय सेवाओं में सुधार: हालाँकि इन निकायों पर अक्सर अभिजात्य वर्ग का वर्चस्व बना रहा फिर भी इनके द्वारा स्वच्छता, शिक्षा एवं बुनियादी ढाँचे के विकास जैसी लोक परियोजनाओं में भूमिका निभाने के कारण स्थानीय सुविधाओं में सुधार आया।
    • लोकतांत्रिक प्रणालियों का अनुभव मिलना: स्थानीय चुनाव (हालाँकि सीमित मताधिकार के बावजूद) द्वारा लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के साथ प्रतिनिधि सरकार की भविष्य की धारणाओं को आकार देने में मदद मिली।

    निहितार्थ:

    • असमानता और बहिष्कार: स्थानीय निकायों में प्रतिनिधित्व अक्सर ज़मींदार, कुलीनों और उच्च जातियों का रहा जिससे इसमें निम्न जातियाँ, महिलाएँ और धार्मिक अल्पसंख्यक हाशिये पर बने रहे। इससे सामाजिक असमानताओं को बढ़ावा मिलने के साथ लोकतांत्रिक भागीदारी में बाधा उत्पन्न हुई।
    • विखंडन और अक्षमता: अतिव्यापी क्षेत्राधिकार वाले स्थानीय निकायों की अधिकता से जटिलता एवं प्रशासनिक अक्षमता पैदा हुई, जिससे समन्वित विकास प्रयासों में बाधा उत्पन्न हुई।
    • ग्रामीण क्षेत्रों पर सीमित प्रभाव: ये पहल मुख्य रूप से शहरी क्षेत्रों पर केंद्रित थी और इसमें ग्रामीण क्षेत्रों , (जहाँ पारंपरिक ग्राम परिषदों का प्रभाव जारी था) की उपेक्षा की गई थी। इसके परिणामस्वरूप असमान विकास होने से स्थानीय शासन एवं ग्रामीण समुदायों के बीच अलगाव पैदा हुआ।

    निष्कर्ष:

    भारत में स्थानीय स्वशासन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से की गई ब्रिटिश पहलों का प्रभाव सकारात्मक तथा नकारात्मक रहा। राजनीतिक जागरूकता एवं नेतृत्व विकास में योगदान के रूप में सकारात्मक प्रभाव तथा सत्ता हस्तांतरण और सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व के रूप में जटिल राजनीतिक परिदृश्य की स्थापना जैसी सीमाओं से अंततः वर्ष 1947 की भारत की स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त हुआ।

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