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19 Jan 2024
सामान्य अध्ययन पेपर 1
भूगोल
दिवस 53
प्रश्न 2. वर्ष 1773 से 1935 की अवधि के दौरान भारतीय सिविल सेवाओं, पुलिस प्रणाली, सेना, प्रेस और न्यायपालिका के विकासक्रम का आकलन करते हुए राष्ट्र निर्माण में उनकी भूमिकाओं पर प्रकाश डालिये। ( 250 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- प्रश्न के संदर्भ को ध्यान में रखते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- ब्रिटिश काल के दौरान भारतीय सिविल सेवाओं, पुलिस प्रणाली, सेना, प्रेस एवं न्यायपालिका के विकास तथा राष्ट्र निर्माण में उनकी भूमिकाओं पर चर्चा कीजिये।
- यथोचित निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
औपनिवेशिक भारत में वर्ष 1773 से 1935 तक की अवधि में शासन एवं सामाजिक संरचनाओं में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन देखे गए। भारतीय सिविल सेवाओं के विकास, पुलिस प्रणाली, सेना, प्रेस एवं न्यायपालिका ने राष्ट्र निर्माण प्रक्रिया को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
मुख्य भाग:
औपनिवेशिक काल में शासन तथा प्रशासनिक संस्थानों का विकास:
- भारतीय सिविल सेवाएँ: भारतीयों ने वर्ष 1863 से ही भारतीय सिविल सेवा में प्रवेश करना शुरू कर दिया था, लेकिन सिविल सेवाओं में प्रवेश करना बेहद कठिन था। सिविल सेवा के सदस्य ब्रिटिश साम्राज्यवादी हितों के पूरक थे।
- हालाँकि वर्ष 1918 के बाद के राष्ट्रवादी दबाव से इन सेवाओं के भारतीयकरण को महत्त्व मिला लेकिन महत्त्वपूर्ण एवं वरिष्ठ पदों पर यूरोपीय लोगों का कब्ज़ा बना रहा।
- इन सेवाओं में भारतीयों के सीमित प्रतिनिधित्व से समावेशी राष्ट्र-निर्माण में बाधा उत्पन्न हुई।
- पुलिस व्यवस्था: औपनिवेशिक भारत में पुलिस व्यवस्था संगठित रूप में विकसित हुई। इसका प्राथमिक उद्देश्य कानून एवं व्यवस्था बनाए रखना, शाही हितों की रक्षा करना तथा लोगों के असंतोष को दबाना था।
- पुलिस द्वारा आंतरिक स्थिरता सुनिश्चित करने में भूमिका निभाई गई लेकिन इसके द्वारा अक्सर औपनिवेशिक शासन के खिलाफ होने वाले असंतोष को दबाया गया।
- इसकी पदानुक्रमित संरचना तथा औपनिवेशिक प्रशासन के प्रति निष्ठा से एकीकृत राष्ट्र-निर्माण प्रक्रिया के समक्ष चुनौतियाँ उत्पन्न हुईं।
- सेना: ब्रिटिशों द्वारा भारतीय सैनिकों की भर्ती के साथ भारतीय सेना में बदलाव लाया गया। सेना ने ब्रिटिश हितों की रक्षा करने तथा क्षेत्रीय नियंत्रण एवं विस्तार करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- इससे भारतीयों को सैन्य बल में भाग लेने का अवसर मिला।
- हालाँकि ब्रिटिश क्राउन के प्रति इसकी प्राथमिक निष्ठा तथा शाही संघर्षों में भागीदारी ने एकीकृत राष्ट्रीय पहचान के समक्ष चुनौतियाँ उत्पन्न कीं।
- प्रेस: 19वीं शताब्दी में समाचार पत्रों और प्रेस का उदय हुआ, जो राजनीतिक विमर्श एवं विविध दृष्टिकोणों की अभिव्यक्ति हेतु एक मंच प्रदान करते थे। भारतीय स्वामित्व वाले प्रकाशनों ने औपनिवेशिक आख्यानों को चुनौती देना शुरू किया।
- राष्ट्रीय चेतना की भावना को बढ़ावा देने में प्रेस ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- भारतीय स्वामित्व वाले समाचार पत्र उपनिवेशवाद विरोधी भावनाओं के वाहक बन गए, जिन्होंने बौद्धिक चेतना में योगदान दिया जिससे राष्ट्रवादी आंदोलन को बढ़ावा मिला।
- न्यायपालिका: औपचारिक न्यायपालिका की स्थापना (विशेष रूप से रेगुलेटिंग अधिनियम, 1773 के तहत सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना) से इस दिशा में महत्त्वपूर्ण विकास चिह्नित हुआ। विधिक प्रणाली को शाही हितों की पूर्ति के लिये संरचित किया गया था।
- शुरुआत में न्यायपालिका औपनिवेशिक उद्देश्यों की पूर्ति करते हुए एक ऐसा स्थान बन गई जहाँ अधिकारों एवं प्रतिनिधित्व के लिये कानूनी संघर्ष हुआ।
- INA ट्रायल जैसे ऐतिहासिक मामलों और कानूनी सक्रियता ने भविष्य के संवैधानिक विकास एवं स्वतंत्र भारत में न्याय के मूल्यों का आधार तैयार किया।
निष्कर्ष:
औपनिवेशिक काल में भारतीय सिविल सेवाओं, पुलिस, सेना, प्रेस और न्यायपालिका का विकास औपनिवेशिक प्रशासन तथा राष्ट्र-निर्माण प्रयासों के बीच एक जटिल परस्पर क्रिया को दर्शाता है। हालाँकि इन संस्थानों को शुरू में शाही हितों की पूर्ति के लिये डिज़ाइन किया गया था, लेकिन ये प्रतिरोध और भारतीय पहचान की अभिव्यक्ति के आयाम भी बन गए।