Sambhav-2024

दिवस 5

प्रश्न.2 भारत में संसदीय शासन प्रणाली के क्या फायदे और नुकसान हैं? (150 शब्द)

24 Nov 2023 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | भूगोल

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • भारत में सरकार की संसदीय प्रणाली के संक्षिप्त परिचय से शुरुआत कीजिये।
  • भारत में संसदीय शासन प्रणाली के लाभों का एक विवरण प्रदान कीजिये।
  • भारत में संसदीय शासन प्रणाली की हानियों के बारे में चर्चा कीजिये।
  • भारत में सरकार की संसदीय प्रणाली के लिये संतुलित दृष्टिकोण प्रदान करते हुए निष्कर्ष लिखिये।

परिचय:

भारत द्वारा अपनाई गई संसदीय शासन प्रणाली के लाभ और हानि दोनों होते हैं। ब्रिटिश मॉडल से ली गई इस प्रणाली की विशेषता कार्यकारी और विधायी शाखाओं का संलयन है।

मुख्य भाग:

  • संसदीय प्रणाली के लाभ:
    • राजनीतिक स्थिरता:
      • संसदीय प्रणाली का एक प्रमुख लाभ इसकी राजनीतिक स्थिरता प्रदान करने की क्षमता है। कार्यकारी शाखा विधायिका में बहुमत दल या गठबंधन से ली जाती है, जो सामंजस्यपूर्ण संबंध सुनिश्चित करती है और बार-बार राजनीतिक गतिरोध की संभावना को कम करती है।
    • जवाबदेही और अनुक्रियता:
      • संसदीय प्रणालियाँ जवाबदेही को बढ़ावा देती हैं क्योंकि कार्यपालिका सीधे विधायिका के प्रति जवाबदेह होती है। भारत में प्रश्नकाल जैसे बार-बार होने वाले प्रश्न-उत्तर सत्र यह सुनिश्चित करते हैं कि कार्यपालिका विधायिका की चिंताओं और प्रश्नों के प्रति उत्तरदायी है।
    • कुशलतापूर्वक निर्णय लेना:
      • कार्यकारी और विधायी शाखाओं का सहयोग त्वरित निर्णय लेने की सुविधा प्रदान करता है। राष्ट्रपति प्रणाली में अक्सर देखी जाने वाली लंबी विधायी प्रक्रियाओं के बिना भी नीतियाँ तेज़ी से बनाई और लागू की जा सकती हैं।
    • नेतृत्व परिवर्तन में अनुकूलता:
      • संसदीय प्रणाली में अलग चुनाव की आवश्यकता के बिना नेतृत्व तेज़ी से परिवर्तित हो सकता है। यदि बहुमत दल सरकार के प्रमुख में विश्वास खो देता है, तो अविश्वास मत से नेतृत्व में बदलाव हो सकता है, जिससे शासन में अनुकूलनशीलता सुनिश्चित होती है।
    • समावेशिता और गठबंधन सरकारें:
      • संसदीय प्रणाली गठबंधन सरकारों को प्रभावी ढंग से समायोजित करती है। भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में, जहाँ कई पार्टियाँ महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, संसदीय प्रणाली विभिन्न हितों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करते हुए गठबंधन सरकारों के गठन की अनुमति देती है।
  • संसदीय प्रणाली की हानियाँ:
    • गठबंधन सरकारों में अस्थिरता:
      • हालाँकि गठबंधन सरकारें समावेशी हो सकती हैं, किंतु उनमें अक्सर अस्थिरता अंतर्निहित होती है। गठबंधन सहयोगियों के बीच एक संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता से बार-बार असहमति और व्यवधान उत्पन्न हो सकता है, जिससे शासन प्रभावित हो सकता है।
    • सत्तावाद की संभावना:
      • बहुसंख्यक पार्टी या गठबंधन के हाथों में सत्ता की एकाग्रता से नियंत्रण और संतुलन की कमी हो सकती है, जो संभावित रूप से सत्तावादी प्रवृत्तियों का मार्ग प्रशस्त कर सकती है। निश्चित कार्यकाल के अभाव के परिणामस्वरूप एक ही पार्टी का लंबे समय तक प्रभुत्व बना रह सकता है।
    • शक्तियों का सीमित पृथक्करण:
      • संसदीय प्रणाली में कार्यकारी और विधायी शाखाओं के बीच शक्तियों के स्पष्ट पृथक्करण का अभाव है। यह संलयन कभी-कभी भूमिकाओं और ज़िम्मेदारियों को धुँधला कर सकता है, जिससे नियंत्रण एवं संतुलन के बारे में प्रश्न उठ सकते हैं।
    • कार्यपालिका के लिये प्रत्यक्ष जनादेश का अभाव:
      • संसदीय प्रणाली में सरकार का प्रमुख सीधे जनता द्वारा नहीं चुना जाता है। जबकि वे विधायिका में बहुमत से उभरे हैं, आलोचकों का तर्क है कि इससे मतदाताओं से सीधे जनादेश की अवधारणा कमज़ोर हो सकती है।
    • हॉर्स-ट्रेडिंग की संभावनाएँ:
      • गठबंधन सरकारों के गठन और अस्तित्व में राजनीतिक हॉर्स-ट्रेडिंग शामिल हो सकती है, जिससे ऐसे समझौते हो सकते हैं जो राष्ट्र के सर्वोत्तम हितों के अनुरूप नहीं होंगे। इससे राजनीतिक प्रक्रिया में जनता का विश्वास कम हो सकता है।

निष्कर्ष:

संसदीय प्रणाली की प्रभावशीलता इस बात में निहित है कि उपर्युक्त चुनौतियों का कितनी अच्छी तरह सामना किया जाता है और प्रणाली की कमियों को दूर करने के लिये सुधारों को कैसे लागू किया जाता है? अंततः किसी भी शासन प्रणाली की सफलता उसके संस्थानों की उस समाज की लगातार बढ़ती ज़रूरतों के प्रति अनुकूलनशीलता और जवाबदेही पर निर्भर करती है जिसकी वह सेवा करती है।