प्रश्न. भारतीय संवैधानिक आकांक्षाओं के संदर्भ में साइमन कमीशन के निहितार्थों का विश्लेषण करते हुए भारत के राजनीतिक पथ को आकार देने में नेहरू रिपोर्ट के महत्त्व का मूल्यांकन कीजिये। (250 शब्द)
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- प्रश्न के संदर्भ को ध्यान में रखते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- भारतीय संवैधानिक आकांक्षाओं पर साइमन कमीशन के निहितार्थों की चर्चा कीजिये।
- भारत के राजनीतिक पथ को आकार देने में नेहरू रिपोर्ट के महत्त्व का मूल्यांकन कीजिये।
- यथोचित निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
साइमन कमीशन और नेहरू रिपोर्ट भारत के संवैधानिक इतिहास में महत्त्वपूर्ण हैं। साइमन कमीशन का गठन वर्ष 1927 में मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधारों का आकलन करने हेतु किया गया था और वर्ष 1928 की नेहरू रिपोर्ट भारतीय नेताओं (विशेष रूप से जवाहरलाल नेहरू) की प्रतिक्रिया थी। इन दोनों ने भारत की संवैधानिक आकांक्षाओं के प्रक्षेप पथ को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
मुख्य भाग:
साइमन कमीशन और उसके निहितार्थ:
- संरचना और भारतीयों का बहिष्करण:
- साइमन कमीशन (जिसमें सभी ब्रिटिश सदस्य शामिल थे) में भारतीय प्रतिनिधि न होने से इसकी आलोचना की गई थी।
- साम्राज्यवादी मानसिकता से प्रेरित होने के कारण भारतीयों में आक्रोश फैल गया और उन्होंने संविधान को आकार देने में अपनी भूमिका की मांग की थी।
- बहिष्कार एवं विरोध:
- महात्मा गांधी और अन्य लोगों के नेतृत्व में भारतीयों ने इस आयोग का बहिष्कार किया, जिसके कारण बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुआ तथा "साइमन गो बैक" के नारे लगाए गए।
- वर्ष 1928 में लाहौर विरोध प्रदर्शन में संवैधानिक प्रक्रिया के तहत सक्रिय भागीदारी को लोगों के दृढ़ संकल्प के रूप में देखा गया।
- सांप्रदायिक संबंधों पर प्रभाव:
- साइमन कमीशन के कारण सांप्रदायिक तनाव में वृद्धि हुई क्योंकि वह सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व के मुद्दे को हल करने में विफल रहा था।
- भारतीयों की अनुपस्थिति के कारण हिंदुओं एवं मुसलमानों के बीच विभाजन में वृद्धि हुई जिससे सांप्रदायिकता से संबंधित भविष्य की संवैधानिक चुनौतियों के लिये आधार तैयार हुआ।
- स्वराज की मांग:
- स्वशासन की भारतीय आकांक्षाओं को पहचानने में साइमन कमीशन की विफलता के कारण स्वराज (स्वशासन) की मांग में तेज़ी आई।
- इस प्रमुख मांग के चलते भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस और अन्य राजनीतिक समूहों के बीच स्वतंत्रता आंदोलन को बल मिला।
नेहरू रिपोर्ट और इसका महत्त्व:
- पृष्ठभूमि और संदर्भ:
- साइमन कमीशन की प्रतिक्रया में वर्ष 1928 में सर्वदलीय सम्मेलन बुलाया गया, जिसके परिणामस्वरूप नेहरू रिपोर्ट का मसौदा तैयार किया गया।
- मोतीलाल नेहरू द्वारा तैयार इस रिपोर्ट में वयस्क मताधिकार पर आधारित संसदीय प्रणाली के साथ ब्रिटिश राष्ट्रमंडल के तहत भारत के लिये डोमिनियन स्टेटस का प्रस्ताव रखा गया।
- इसमें संघीय ढाँचे, अल्पसंख्यक अधिकारों की सुरक्षा, धर्मनिरपेक्षता एवं मौलिक अधिकारों पर बल दिया गया।
- पृथक निर्वाचन मंडलों की अस्वीकृति:
- इस रिपोर्ट के प्रगतिशील पहलुओं में से एक, पृथक निर्वाचन मंडलों की अस्वीकृति था।
- सांप्रदायिकता से उत्पन्न चुनौतियों के बावजूद, इससे अधिक समावेशी एवं एकजुट भारत के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाया गया।
- सांप्रदायिक प्रतिक्रियाएँ और आलोचना:
- हालाँकि इस रिपोर्ट का लक्ष्य समावेशिता था अल्पसंख्यक लोगों की चिंताओं को पूरी तरह से हल नहीं कर पाने के कारण इसे आलोचना का सामना करना पड़ा।
- सांप्रदायिक प्रतिक्रियाओं (विशेषकर मुस्लिम लीग की ओर से) ने भविष्य के सांप्रदायिक तनाव हेतु मंच का कार्य किया।
निष्कर्ष:
भारत की संवैधानिक यात्रा में साइमन कमीशन और नेहरू रिपोर्ट की प्रमुख भूमिका थी। साइमन कमीशन को लेकर भारतीयों के बहिष्कार और नेहरू रिपोर्ट की प्रतिक्रिया ने स्वशासन की मांग को गति प्रदान की। इन घटनाओं से न केवल भविष्य के संवैधानिक विकास हेतु आधार तैयार हुआ बल्कि वर्ष 1947 में भारत की स्वतंत्रता में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।