प्रश्न. भारत के स्वतंत्रता संग्राम पर सविनय अवज्ञा आंदोलन के प्रभावों का आकलन कीजिये। संवैधानिक चिंताओं का समाधान करने में गोलमेज सम्मेलन के परिणामों एवं सीमाओं का मूल्यांकन कीजिये। (250 शब्द)
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- सविनय अवज्ञा आंदोलन के बारे में बताते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- भारत के स्वतंत्रता संग्राम पर सविनय अवज्ञा आंदोलन के प्रभावों की चर्चा कीजिये।
- गोलमेज़ सम्मेलन के परिणामों एवं सीमाओं का मूल्यांकन कीजिये।
- यथोचित निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
वर्ष 1930 में महात्मा गांधी द्वारा शुरू किया गया सविनय अवज्ञा आंदोलन भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्त्वपूर्ण क्षण था। इसमें ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ प्रतिरोध के तरीकों में बदलाव देखा गया।
मुख्य भाग:
सविनय अवज्ञा आंदोलन का प्रभाव:
- सामूहिक भागीदारी:
- इस आंदोलन में किसानों, श्रमिकों, छात्रों और महिलाओं सहित समाज के विभिन्न वर्गों की व्यापक भागीदारी देखी गई।
- इस जन भागीदारी से ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीयों की एकता एवं सामूहिक शक्ति का प्रदर्शन हुआ था।
- वैश्विक आकर्षण:
- इस आंदोलन से ब्रिटिश शासन के अन्याय की ओर वैश्विक स्तर पर ध्यान जाने से इसके प्रति अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रियाएँ देखी गईं।
- वैश्विक स्तर पर भारत के प्रति सहानुभूति और समर्थन से ब्रिटिश सरकार पर भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस की मांगों को पूरा करने के लिये अतिरिक्त दबाव पड़ा।
- महिलाओं का सशक्तीकरण:
- पारंपरिक लैंगिक सीमाओं से परे महिलाओं ने सविनय अवज्ञा आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभाई।
- विरोध प्रदर्शनों और मार्चों में उनकी सक्रिय भागीदारी से व्यापक सामाजिक परिवर्तन के साथ महिलाओं के सशक्तीकरण को बढ़ावा मिला।
- ब्रिटिश प्रशासन पर प्रभाव:
- सविनय अवज्ञा ने ब्रिटिश प्रशासनिक कार्यप्रणाली को पंगु बना दिया।
- बढ़ते प्रतिरोध के कारण ब्रिटिश अधिकारियों को भारत के प्रति अपनी नीतियों एवं दृष्टिकोण का पुनर्मूल्यांकन करने के लिये मजबूर होना पड़ा।
- नए नेतृत्व का उदय:
- इस आंदोलन में नए नेताओं का उदय हुआ जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- इस दौरान जवाहरलाल नेहरू एवं सरदार पटेल जैसे व्यक्तित्वों को प्रमुखता मिली, जो युवा एवं गतिशील नेतृत्व की ओर बदलाव का संकेत था।
गोलमेज़ सम्मेलन के परिणाम और सीमाएँ:
परिणाम:
- भारत सरकार अधिनियम, 1935:
- गोलमेज़ सम्मेलन के महत्त्वपूर्ण परिणामों में से एक भारत सरकार अधिनियम, 1935 का लाया जाना था।
- इस कानून से ब्रिटिश भारत में संवैधानिक विकास की नींव रखी जाने के साथ प्रांतीय स्वायत्तता को बढ़ावा मिला।
- सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व:
- गोलमेज़ सम्मेलनों के दौरान चर्चाओं में सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व के मुद्दे पर विमर्श किया गया।
- इन विचार-विमर्शों के परिणामस्वरूप, सांप्रदायिक पंचाट द्वारा विभिन्न वर्गों के हितों को समायोजित करने का प्रयास करने के क्रम में विभिन्न धार्मिक समुदायों के लिये पृथक निर्वाचक मंडल का प्रावधान किया गया।
- स्वतंत्रता का आधार:
- गोलमेज़ सम्मेलन द्वारा भारतीयों को अपनी मांगों और चिंताओं को व्यक्त करने का मंच मिला।
- विभिन्न सीमाओं के बावजूद होने वाले विमर्श और चर्चाओं से संवैधानिक ढाँचे के लिये आधार तैयार होने के साथ आगे चलकर स्वतंत्र भारत का मार्ग प्रशस्त हुआ।
सीमाएँ:
- सीमित भारतीय प्रतिनिधित्व:
- इन सम्मेलनों में भारतीयों (विशेष रूप से हाशिये पर रहने वाले समुदायों से संबंधित लोगों) का प्रतिनिधित्व सीमित था।
- इनमें प्रमुख नेताओं और समुदायों की अनुपस्थिति से विचार-विमर्श की समावेशिता एवं प्रभावशीलता में बाधा उत्पन्न हुई।
- सांप्रदायिक तनाव दूर करने में विफलता:
- सांप्रदायिक चिंताओं को दूर करने के प्रयासों के बावजूद सांप्रदायिक पंचाट ने धार्मिक समुदायों के बीच मौजूदा विभाजन को और गहरा कर दिया।
- सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व का फार्मूला सौहार्दपूर्ण राजनीतिक माहौल बनाने में विफल रहा।
- ब्रिटिश हितों को प्राथमिकता:
- ब्रिटिश औपनिवेशिक अधिकारी सम्मेलनों के दौरान अक्सर स्वयं के रणनीतिक हितों को प्राथमिकता देते थे।
- इससे वास्तविक विमर्श की गुंज़ाइश सीमित होने के साथ ही परिणामों की प्रभावशीलता प्रभावित हुई।
- इनमें भूमि सुधार, आर्थिक शोषण और सामाजिक अन्याय संबंधी चिंताओं को पर्याप्त रूप से हल नहीं किया गया।
- द्वितीय विश्व युद्ध के प्रभाव को रोकने में विफलता:
- द्वितीय विश्व युद्ध से गोलमेज़ सम्मेलन का प्रभाव सीमित होने के कारण वैश्विक ध्यान और संसाधन भारत की संवैधानिक चिंताओं से परे हो गए।
- तत्काल परिणाम प्राप्त करने के दृष्टिकोण से ये सम्मेलन प्रभावी साबित नहीं हुए।
निष्कर्ष:
सविनय अवज्ञा आंदोलन और गोलमेज़ सम्मेलन ने स्वतंत्रता हेतु भारत के संघर्ष के पथ को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। जहाँ सविनय अवज्ञा आंदोलन से जन भागीदारी और अहिंसक प्रतिरोध की शक्ति का प्रदर्शन किया गया, वहीं गोलमेज़ सम्मेलन से सीमित सकारात्मक परिणामों के साथ संवैधानिक सुधारों का मार्ग प्रशस्त हुआ था।