दिवस 47
Q2. असहयोग आंदोलन के बाद क्रांतिकारी गतिविधियों के प्रति रुझान किस कारण बढ़ा था? (150 शब्द)
12 Jan 2024 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | इतिहास
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- प्रश्न संदर्भ को ध्यान में रखते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- असहयोग आंदोलन के महत्त्व पर चर्चा कीजिये।
- बताइये कि असहयोग आंदोलन के बाद क्रांतिकारी गतिविधियों के प्रति रुझान किस कारण बढ़ा था।
- यथोचित निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
असहयोग आंदोलन को वापस लेने के बाद भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के तहत आत्मनिरीक्षण और रणनीतिक पुनर्मूल्यांकन पर बल दिया गया। जैसे-जैसे राष्ट्रवादी भावनाओं में वृद्धि हुई क्रांतिकारियों ने भारत की स्वतंत्रता के हेतु और भी अधिक मुखर कार्रवाई किये जाने की आवश्यकता महसूस की।
मुख्य भाग:
- असहयोग आंदोलन को अचानक वापस लेना:
- असहयोग को अचानक वापस लेने से कई युवाओं का इस आंदोलन से मोहभंग हो गया।
- उन्होंने राष्ट्रवादी नेतृत्व की मूल रणनीति पर सवाल उठाने के साथ ही अहिंसक तरीकों पर बल देना शुरू कर दिया।
- तत्काल परिणाम की लोकप्रियता:
- अहिंसा और जन भागीदारी पर बल देने वाले असहयोग आंदोलन को कुछ लोगों द्वारा धीमी और क्रमिक प्रक्रिया माना गया था।
- तत्काल और प्रभावशाली परिणाम चाहने वालों ने स्वतंत्रता आंदोलन की गति को तीव्र करने हेतु क्रांतिकारी तरीकों को अपनाने पर बल दिया था।
- जलियाँवाला बाग हत्याकांड का प्रभाव:
- वर्ष 1919 में जलियाँवाला बाग हत्याकांड ने कई भारतीयों को गहराई से प्रभावित किया था।
- अमृतसर में अंग्रेज़ों द्वारा किये गए क्रूर दमन ने उपनिवेशवाद-विरोधी भावनाओं को तीव्र कर दिया, जिससे कुछ कार्यकर्त्ताओं ने प्रतिरोध के अधिक क्रांतिकारी रूपों को अपनाने पर बल दिया था।
- अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं का प्रभाव:
- रूसी क्रांति और विश्व स्तर पर अन्य उपनिवेशवाद-विरोधी आंदोलनों ने भारतीय क्रांतिकारियों को प्रेरित किया।
- विश्व के अन्य हिस्सों में क्रांतिकारी तरीकों की सफलता से भारत में अधिक मुखर एवं क्रांतिकारी दृष्टिकोण को लोकप्रियता मिली।
- श्रमिक वर्ग ट्रेड यूनियनवाद का उभार:
- प्रथम विश्व युद्ध के बाद श्रमिक वर्ग के ट्रेड यूनियनवाद में वृद्धि हुई।
- क्रांतिकारियों ने इस उभरते वर्ग की क्रांतिकारी क्षमता को राष्ट्रवादी क्रांति में समन्वित करने पर बल दिया था।
- क्रांतिकारी नेताओं का उदय:
- औपनिवेशिक सरकार से स्वतंत्रता पाने के क्रम में सशस्त्र क्रांति हेतु रामप्रसाद बिस्मिल, जोगेश चंद्र चटर्जी और सचिन सान्याल द्वारा अक्तूबर 1924 में कानपुर में हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन की स्थापना की गई थी।
- इस अवधि के दौरान भगत सिंह, चन्द्रशेखर आज़ाद और अन्य प्रभावशाली नेताओं को लोकप्रियता मिली।
- साहित्यिक प्रभाव:
- सचिन सान्याल की "बंदी जीवन" और शरतचंद्र चटर्जी की "पाथेर डाबी" जैसी पुस्तकों ने क्रांतिकारियों की सक्रियता पर गहरा प्रभाव डाला है।
- इस बीच भगवती चरण वोहरा द्वारा लिखित "द फिलॉसफी ऑफ द बम" पुस्तक में गांधी के अहिंसक तरीकों को चुनौती दी गई तथा इसके बजाय प्रत्यक्ष एवं मुखर आंदोलनों पर बल दिया गया।
निष्कर्ष:
प्रतरोध एवं बलिदान के मूल्यों से प्रेरित क्रांतिकारी आंदोलन से भारतीयों के बीच राष्ट्रवाद की भावना को बढ़ावा मिला। इससे सामूहिक पहचान के रूप में स्वतंत्रता के प्रति लोगों की एकजुटता में वृद्धि हुई।