Q1. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में असहयोग आंदोलन का क्या महत्त्व है? इस आंदोलन को समाप्त करने के पीछे महात्मा गांधी के तर्क का परीक्षण कीजिये। (250 शब्द)
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- प्रश्न संदर्भ को ध्यान में रखते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- असहयोग आंदोलन के महत्त्व पर चर्चा कीजिये।
- गांधी द्वारा इस आंदोलन को वापस लेने हेतु उत्तरदायी कारकों पर चर्चा कीजिये।
- यथोचित निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ प्रतिरोध के तरीकों में महत्त्वपूर्ण बदलाव के रूप में असहयोग आंदोलन की प्रमुख भूमिका रही। वर्ष 1920 में महात्मा गांधी द्वारा शुरू किये गए इस आंदोलन का उद्देश्य ब्रिटिश नीतियों के खिलाफ होने वाले अहिंसक विरोध में सामाजिक-आर्थिक तथा धार्मिक आधार पर भारतीयों को एकजुट करना था।
मुख्य भाग:
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में असहयोग आंदोलन का महत्त्व:
- जन-आधारित आंदोलन: असहयोग आंदोलन में किसानों, श्रमिकों, छात्रों और बुद्धिजीवियों सहित समाज के विभिन्न वर्गों की भागीदारी देखी गई।
- इसमें अभिजात वर्ग के नेतृत्व वाले विरोध प्रदर्शनों के इतर अधिक समावेशी और जन-आधारित आंदोलन की ओर बदलाव देखा गया।
- आर्थिक बहिष्कार: इस आंदोलन में भारतीयों को ब्रिटिश वस्तुओं और संस्थानों का त्याग करने के लिये प्रोत्साहित किया गया था।
- इससे भारतीयों की आर्थिक शक्ति का पता चला।
- ब्रिटिश संस्थानों का बहिष्कार: इसमें शैक्षणिक संस्थानों, विधान परिषदों और नागरिक सेवाओं का असहयोग शामिल था जिसका उद्देश्य भारत में ब्रिटिश प्रशासनिक एवं आर्थिक संरचनाओं को कमज़ोर करना था।
- एकता का प्रतीक: इस आंदोलन ने हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा दिया तथा ब्रिटिश शासन के खिलाफ हिंदुओं और मुसलमानों को एकजुट करने के लिये मंच प्रदान किया।
- सांस्कृतिक दावा: असहयोग आंदोलन ने भारतीय सांस्कृतिक पहचान एवं आत्मनिर्भरता की पुनः पुष्टि के लिये एक मंच के रूप में भी कार्य किया।
- इस दौरान आत्मनिर्भरता के प्रतीक के रूप में खादी का प्रचार करना एक महत्त्वपूर्ण आयाम था।
आंदोलन को वापस लेने के पीछे गांधी का तर्क:
- चौरी-चौरा घटना: असहयोग आंदोलन को वापस लेने के गांधी के फैसले का एक प्रमुख कारण वर्ष 1922 में हुई चौरी-चौरा की हिंसक घटना (जिसमें प्रदर्शनकारियों और पुलिस में संघर्ष होने से कई पुलिस अधिकारियों की मौत हो गई) थी।
- चौरी-चौरा की घटना के बाद उनका मानना था कि यह आंदोलन अहिंसा के मार्ग से भटक गया है, जिसे वे सफलता हेतु आवश्यक मानते थे।
- मूल सिद्धांत के रूप में अहिंसा: गांधी ने महसूस किया कि लोगों ने न तो अहिंसा को समझा और न ही इसका पालन किया।
- एक हिंसक आंदोलन को औपनिवेशिक शासन द्वारा आसानी से दबाया जा सकता था क्योंकि हिंसा की घटनाओं के चलते राज्य प्रदर्शनकारियों पर शक्ति का प्रयोग कर सकता था।
निष्कर्ष:
वर्ष 1922 में महात्मा गांधी द्वारा असहयोग आंदोलन को वापस लेने से भारत के कई वर्गों में असंतोष और निराशा की भावना उत्पन्न हुई। असहयोग आंदोलन को वापस लेने के कारण उभरे असंतोष के बावजूद यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि चिंतन एवं पुनर्मूल्यांकन की इस अवधि ने अंततः भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के बाद के चरणों में नई रणनीतियों तथा आंदोलनों के उद्भव का मार्ग प्रशस्त किया था।