Sambhav-2024

दिवस 44

प्रश्न 2. भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस में नरमपंथियों के चरण के महत्त्व को बताते हुए इस अवधि के दौरान राष्ट्रवादी आंदोलन को आकार देने में अन्य राजनीतिक संगठनों द्वारा निभाई गई भूमिका का परीक्षण कीजिये। (250 शब्द)

09 Jan 2024 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | भूगोल

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • नरमपंथियों के चरण का परिचय देते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
  • भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस में नरमपंथियों के महत्त्व पर चर्चा कीजिये।
  • इस अवधि के दौरान अन्य राजनीतिक संघों द्वारा निभाई गई भूमिका की व्याख्या कीजिये।
  • उचित निष्कर्ष लिखिये।

परिचय:

भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस (INC) के तहत नरमपंथियों के चरण ने 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत के दौरान राष्ट्रवादी आंदोलन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। उदारवादी नेताओं के प्रभुत्व वाले इस चरण में महत्त्वपूर्ण विकास के साथ कुछ अन्य राजनीतिक संघों का उदय हुआ, जिन्होंने स्वशासन की दिशा में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

मुख्य भाग:

नरमपंथियों चरण का महत्त्व:

  • राष्ट्रवादी विचार की नींव:
    • उदारवादी नेता, जिनमें दादाभाई नौरोजी, व्योमेश चंद्र बनर्जी और ए.ओ. ह्यूम शामिल थे, ने बौद्धिक राष्ट्रवादी आंदोलन का आधार तैयार किया था।
    • दादाभाई नौरोजी की "ड्रेन थ्योरी" ने आर्थिक शोषण की ओर ध्यान आकर्षित किया, जिसके कारण ब्रिटिश शासन के तहत भारत की कमज़ोर स्थिति पर चर्चा को बल मिला।
  • संवैधानिक तरीके:
    • दादाभाई नौरोजी, गोपाल कृष्ण गोखले एवं व्योमेश चंद्र बनर्जी जैसे नेताओं सहित अन्य नरमपंथियों ने ब्रिटिश औपनिवेशिक ढाँचे के भीतर सुधारों हेतु संवैधानिक तरीकों पर बल दिया।
    • उनके प्रयासों ने भविष्य के संवैधानिक संघर्षों की नींव रखी।
  • सामूहिक आदर्शों की पहचान:
    • नरमपंथियों का लक्ष्य भाषायी और क्षेत्रीय मतभेदों से परे एक अखंड भारत का निर्माण करना था।
    • राष्ट्रवादी आदर्शों पर उनके बल ने सामूहिक पहचान की भावना को बढ़ावा दिया तथा इससे गांधीवादी चरण का मार्ग प्रशस्त हुआ।
  • शैक्षिक और सामाजिक सुधार:
    • गोखले जैसे नेताओं ने राष्ट्रीय प्रगति हेतु पूर्व शर्त के रूप में शिक्षा एवं सामाजिक सुधारों के महत्त्व पर बल दिया।
    • इस अवधि में शिक्षा तथा सामाजिक उत्थान पर केंद्रित संस्थानों की स्थापना हुई।
  • सरकार और भारतीयों के बीच समन्वय:
    • नरमपंथियों का लक्ष्य विमर्श के माध्यम से ब्रिटिश सरकार और भारतीयों के बीच समन्वय स्थापित करना था।
    • वे औपनिवेशिक अधिकारियों के साथ सहयोग के माध्यम से क्रमिक स्वशासन की प्राप्ति में विश्वास करते थे।

अन्य राजनीतिक संघों द्वारा निभाई गई भूमिका:

  • चरमपंथी और सूरत विभाजन (1907):
    • बाल गंगाधर तिलक, बिपिन चंद्र पाल और लाला लाजपत राय जैसे चरमपंथी नेताओं के उदय से उदारवादी दृष्टिकोण में बदलाव देखा गया।
    • सूरत विभाजन ने वैचारिक मतभेदों को प्रतिबिंबित किया, जिसमें चरमपंथियों ने प्रत्यक्ष कार्रवाई और स्वराज की वकालत की थी।
  • एनी बेसेंट और होमरूल आंदोलन की भूमिका:
    • एनी बेसेंट के होमरूल आंदोलन (1916) ने ब्रिटिश साम्राज्य से स्वशासन की मांग को प्रेरित किया था।
    • इस आंदोलन ने जनमत जुटाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे स्व-शासन की भविष्य की मांगों के लिये आधार तैयार हुआ।
  • गदर पार्टी का गठन:
    • संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा में भारतीय प्रवासियों द्वारा गठित गदर पार्टी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष की वकालत की थी।
    • उनकी गतिविधियाँ हालाँकि काफी हद तक असफल रहीं लेकिन उनके प्रदर्शन ने राष्ट्रवादी आंदोलन को वैश्विक स्तर पर पहुँचा दिया।
  • सामाजिक और धार्मिक संगठन:
    • आर्य समाज और ब्रह्म समाज जैसे सामाजिक तथा धार्मिक संगठनों ने शैक्षिक सुधारों, सामाजिक उत्थान एवं तर्कसंगत दृष्टिकोण को बढ़ावा देकर प्रमुख भूमिकाएँ निभाईं।
    • उन्होंने नरमपंथियों के राजनीतिक प्रयासों के पूरक के रूप में कार्य किया।

निष्कर्ष:

नरमपंथियों के चरण के दौरान मुस्लिम लीग, होम रूल समर्थक और गदर पार्टी सहित विविध राजनीतिक समूह, भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन में नरमपंथियों के साथ सह-अस्तित्व में रहे। नरमपंथियों ने संवैधानिक तरीकों का समर्थन किया था लेकिन इन समूहों ने स्वतंत्रता के लिये भारत के संघर्ष को आकार देते हुए विभिन्न दृष्टिकोण और रणनीतियों हेतु आधार तैयार किया।