Sambhav-2024

दिवस 44

प्रश्न 1. वर्ष 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस के गठन से लेकर उसके विकासक्रम पर चर्चा करने के साथ इसके प्रमुख कार्यों एवं इससे संबंधित शुरुआती नेताओं की भूमिका पर प्रकाश डालिये। इसके साथ ही इसके प्रभाव का मूल्यांकन कीजिये। (250 शब्द)

09 Jan 2024 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | भूगोल

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • प्रश्न के संदर्भ को ध्यान में रखते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
  • भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस के विकास के साथ-साथ इसके शुरुआती नेताओं की भूमिका और प्रमुख कार्यों पर प्रकाश डालिये।
  • भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस के प्रभाव पर विस्तार से चर्चा कीजिये।
  • उचित निष्कर्ष लिखिये।

परिचय:

भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस (INC) की स्थापना वर्ष 1885 में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ एक महत्त्वपूर्ण राजनीतिक आंदोलन की शुरुआत के रूप में की गई थी। इसके विकास को अलग-अलग चरणों के माध्यम से देखा जा सकता है, जिनमें से प्रत्येक चरण के कुछ प्रमुख कार्य और प्रभावशाली नेता रहे हैं।

मुख्य भाग:

कॉन्ग्रेस का विकासक्रम, शुरुआती नेता और प्रमुख कार्य:

  • गठन और प्रारंभिक वर्ष (1885-1905):
    • राजनीतिक संवाद एवं प्रतिनिधित्व के एक मंच के रूप में वर्ष 1885 में बॉम्बे में INC की स्थापना की गई थी।
    • ए.ओ. ह्यूम ने इसके गठन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसके शुरुआती नेताओं में दादाभाई नौरोजी, व्योमेश चंद्र बनर्जी और दिनशॉ वाचा शामिल थे।
    • शुरुआत में कॉन्ग्रेस का लक्ष्य ब्रिटिश ढाँचे के तहत संवैधानिक सुधारों की मांग करना था।
  • मध्यम चरण (1885-1905):
    • इस चरण के दौरान प्रमुख नेताओं (जिन्हें नरमपंथी के रूप में जाना जाता है) ने संवैधानिक तरीकों एवं याचिकाओं पर बल दिया।
    • दादाभाई नौरोजी के 'धन बहिर्गमन' सिद्धांत के साथ सिविल सेवाओं में भारतीयों के प्रतिनिधित्व की मांग उल्लेखनीय थी।
    • इस दौरान कॉन्ग्रेस का प्रभाव बढ़ा और उसकी मांगें कॉन्ग्रेस अधिवेशन जैसे मंचों के माध्यम से व्यक्त की गईं।
  • स्वदेशी आंदोलन और उग्रवादी चरण (1905-1919):
    • वर्ष 1905 में बंगाल विभाजन के कारण व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए जो और अधिक कट्टरपंथी दृष्टिकोण की ओर बदलाव का संकेत था।
    • बाल गंगाधर तिलक, बिपिन चंद्र पाल और लाला लाजपत राय प्रत्यक्ष कार्रवाई की वकालत करने वाले नेताओं के रूप में उभरे।
    • स्वदेशी आंदोलन और 'बहिष्कार' को लोकप्रियता मिली। इस चरण में अधिक मुखर एवं प्रत्यक्ष उपनिवेशवाद विरोधी दृष्टिकोण हेतु आधार तैयार हुआ।
  • स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका (1919-1947):
    • वर्ष 1919 में जलियाँवाला बाग नरसंहार के बाद कॉन्ग्रेस ने बड़े पैमाने पर लोगों की भागीदारी पर बल दिया। महात्मा गांधी जैसे नेताओं ने अहिंसक सविनय अवज्ञा को महत्ता दी थी।
    • असहयोग आंदोलन (1920-1922) और सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930-1934) स्वतंत्रता संघर्ष को तीव्र करने में महत्त्वपूर्ण थे।
    • जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल और मौलाना अबुल कलाम आज़ाद प्रभावशाली व्यक्तित्वों में से थे।
  • भारत छोड़ो आंदोलन और स्वतंत्रता (1942-1947):
    • वर्ष 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन एक निर्णायक घटना थी जिसमें गांधी, नेहरू और पटेल जैसे नेताओं ने ब्रिटिश शासन को समाप्त करने की मांग की थी।
    • कॉन्ग्रेस ने स्वतंत्रता हेतु प्रमुख वार्ताओं में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
    • वर्ष 1947 की माउंटबेटन योजना स्वतंत्रता हासिल करने के क्रम में कॉन्ग्रेस के प्रयासों की परिणति थी।

कॉन्ग्रेस के प्रभाव का मूल्यांकन:

  • लोगों को एकजुट करना: कॉन्ग्रेस ने भाषायी, धार्मिक और सामाजिक आधारों से परे व्यापक स्तर पर लोगों को संगठित किया था। इसने औपनिवेशिक शासन के खिलाफ संयुक्त मोर्चा तैयार करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
  • संवैधानिक विकास में योगदान: संवैधानिक सुधारों और शासन में भारतीयों के प्रतिनिधित्व के संबंध में कॉन्ग्रेस की मांग ने संवैधानिक विकास का मार्ग प्रशस्त किया।
  • अहिंसक प्रतिरोध: कॉन्ग्रेस द्वारा अपनाए गए महात्मा गांधी के अहिंसा के दर्शन से न केवल नैतिक शक्ति का प्रदर्शन हुआ, बल्कि नागरिक अधिकारों और स्वतंत्रता के लिये वैश्विक आंदोलनों को भी बल मिला।
  • राष्ट्रीय पहचान पर बल: कॉन्ग्रेस ने भारतीय राष्ट्रीय पहचान को आकार देने, विविधता में एकता पर बल देने तथा अपनेपन की सामूहिक भावना को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
  • सामाजिक-आर्थिक सुधार: कॉन्ग्रेस ने बी.आर. अंबेडकर जैसे नेताओं के माध्यम से सामाजिक मुद्दों को हल किया। स्वतंत्रता के बाद की नीतियों का उद्देश्य आर्थिक विकास के साथ सामाजिक न्याय था।

निष्कर्ष:

भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस ने भारत के इतिहास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो एक राजनीतिक मंच के रूप में स्वतंत्रता और राष्ट्र-निर्माण का प्रमुख माध्यम बन गई। इसके नेताओं और आंदोलनों ने भारत के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य पर स्थायी प्रभाव छोड़ा।