Sambhav-2024

दिवस 43

प्रश्न 1. ब्रिटिश भारत में महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने के उद्देश्य से शुरू हुए सामाजिक सुधार आंदोलनों के उदय एवं विकास का परीक्षण कीजिये। (150 शब्द)

08 Jan 2024 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | भूगोल

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • प्रश्न के संदर्भ को ध्यान में रखते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
  • ब्रिटिश भारत में महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने के उद्देश्य से शुरू हुए सामाजिक सुधारों के उदय एवं विकास पर चर्चा कीजिये।
  • यथोचित निष्कर्ष दीजिये।

परिचय:

19वीं सदी में ब्रिटिश भारत में ज्ञान और तर्क की लहर शुरू होने से परिवर्तनकारी युग की शुरुआत हुई, जहाँ समाज सुधारकों ने दमनकारी व्यवस्थाओं को खत्म करने एवं महिलाओं के सशक्तीकरण का मार्ग प्रशस्त करने पर बल दिया था।

मुख्य भाग:

महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने वाले सामाजिक सुधारों के उदय एवं विकास का क्रम:

  • सती प्रथा का उन्मूलन (1829): 19वीं सदी की शुरुआत में सती प्रथा को समाप्त करने के लिये सामाजिक सुधारों की शुरुआत हुई। सती प्रथा में विधवाओं से अपेक्षा की जाती थी कि वे अपने पति की चिता पर आत्मदाह कर लें।
    • राजा राम मोहन राय ने सती प्रथा के उन्मूलन की वकालत करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसके परिणामस्वरूप अंततः वर्ष 1829 में बंगाल सती विनियमन अधिनियम पारित हुआ।
  • कन्या भ्रूण हत्या को रोकना: कन्याओं की उनके जन्म के तुरंत बाद हत्या करने की प्रथा उच्च वर्ग के बंगालियों और राजपूतों (जो महिलाओं को आर्थिक बोझ समझते थे) के बीच एक आम बात थी।
    • वर्ष 1795 और 1804 के बंगाल विनियमों द्वारा भ्रूण हत्या को अवैध तथा हत्या के समान घोषित किया गया।
  • विधवा पुनर्विवाह: प्रचलित सामाजिक मानदंडों को चुनौती देते हुए विधवाओं के पुनर्विवाह को बढ़ावा देने के प्रयास किये गए।
    • पंडित ईश्वर चंद्र विद्यासागर के प्रयासों के क्रम में वर्ष 1856 का हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम पारित किया गया था, इसके द्वारा विधवाओं के विवाह को वैध बना दिया गया।
  • बाल विवाह पर नियंत्रण: पारसी सुधारक बी.एम. मालाबारी के अथक प्रयास से सम्मति आयु अधिनियम,1891 पारित हुआ, जिसके द्वारा 12 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों की शादी पर रोक लगा दी गई।
    • रुखमाबाई के मामले ने इन सुधारकों को सम्मति आयु अधिनियम पारित कराने हेतु प्रेरित किया।
  • महिलाओं की शिक्षा: इस दौरान महिला साक्षरता पर बल देने के साथ इस प्रचलित धारणा को चुनौती दी गई कि शिक्षा का अधिकार केवल पुरुषों तक सीमित है। वर्ष 1849 में कलकत्ता में स्थापित बेथ्यून स्कूल महिला शिक्षा की दिशा में प्रमुख कदम था।
    • पंडित ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने बंगाल में लड़कियों की शिक्षा के लिये 35 स्कूलों की स्थापना की थी।
  • महिला संगठनों का गठन: वर्ष 1910 में सरला देवी चौधुरानी के नेतृत्व में भारत स्त्री महामंडल की उद्घाटन सभा इलाहाबाद में हुई थी।
    • इसके साथ ही रमाबाई रानाडे द्वारा लेडीज़ सोशल कॉन्फ्रेंस की स्थापना की गई थी, जबकि पंडिता रमाबाई सरस्वती ने आर्य महिला समाज की स्थापना की थी। ये दोनों ही संगठन महिलाओं के हित के लिये समर्पित थे।
  • मताधिकार आंदोलन: भारत में मताधिकार आंदोलन की शुरुआत वर्ष 1917 में श्रीमती डोरोथी जिनाराजादास, मार्गरेट कज़िन्स और एनी बेसेंट द्वारा वीमेन इंडिया एसोसिएशन की स्थापना के साथ हुई थी।
    • वर्ष 1927 में स्थापित अखिल भारतीय महिला सम्मेलन (AIWC) ने महिलाओं को प्रभावित करने वाले विभिन्न मुद्दों को हल करने तथा इनकी राजनीतिक भागीदारी पर बल देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

निष्कर्ष:

इन आंदोलनों ने भारत में महिलाओं के अधिकारों को मज़बूत करने के लिये चल रहे प्रयासों का आधार तैयार किया। महिलाओं को सशक्त बनाने के क्रम में वर्ष 1950 में अपनाए गए भारतीय संविधान द्वारा पुरुषों एवं महिलाओं को समान अधिकारों की गारंटी दी गई।