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06 Jan 2024
सामान्य अध्ययन पेपर 1
इतिहास
दिवस 42
प्रश्न 1. भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ वर्ष 1857 से पूर्व लोगों के प्रतिरोध में योगदान देने वाले कारकों का आकलन करने के साथ इस समय की प्रमुख घटनाओं को बताते हुए भारतीय समाज पर उनके प्रभाव पर प्रकाश डालिये। (150 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- प्रश्न के संदर्भ को ध्यान में रखते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- ब्रिटिश शासन के विरुद्ध वर्ष 1857 से पहले के लोगों के प्रतिरोध में योगदान देने वाले कारकों पर चर्चा कीजिये।
- वर्ष 1857 के विद्रोह से पहले भारत में हुई प्रमुख घटनाओं और उनके प्रभावों पर चर्चा कीजिये।
- यथोचित निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
भारत में वर्ष 1857 से पहले की अवधि में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध व्यापक प्रतिरोध देखा गया, जो सामाजिक,आर्थिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक आयामों में निहित विभिन्न कारकों से प्रेरित था। इस प्रतिरोध ने स्वतंत्रता के लिये भारत के संघर्ष की शुरुआत को चिह्नित किया और भारतीय इतिहास के पाठ्यक्रम को आकार देने पर गहरा प्रभाव डाला।
मुख्य भाग:
भूमि राजस्व नीतियाँ:
- प्रमुख शिकायतों में से एक ब्रिटिश भू-राजस्व नीतियाँ थीं, जिन्होंने भारतीय किसानों पर उच्च कर आरोपित किया।
- उदाहरण के लिये बंगाल में वर्ष 1793 के स्थायी बंदोबस्त ने भू-राजस्व की उच्च दर तय की, जिससे किसान निर्धन हो गए।
- ऐसी नीतियों का प्रभाव सभी क्षेत्रों में देखा गया, जिससे कृषि क्षेत्र मेंअसंतोष पैदा हुआ।
आर्थिक शोषण:
- ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की शोषणकारी आर्थिक नीतियों, जैसे सहायक गठबंधन और व्यपगत सिद्धांत जैसे तंत्रों के माध्यम से धन की निकासी ने भारतीय आबादी में नाराज़गी पैदा कर दी।
- इन नीतियों ने स्थानीय शासकों को उनके राज्यों से वंचित कर दिया, जिससे आर्थिक शोषण के साथ शक्ति का ह्रास हुआ।
राजनीतिक कारक:
संबंधित नीतियाँ:
- लॉर्ड डलहौज़ी द्वारा लागू किये गए व्यपगत सिद्धांत के कारण विभिन्न रियासतों का विलय हुआ।
- वर्ष 1856 में अवध पर अपना प्रभाव स्थापित करना एक निर्णायक परिवर्तन था, क्योंकि इससे कुलीन वर्ग और आम लोग दोनों नाराज़ थे। इस नीति ने ब्रिटिश विरोधी भावनाओं को बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
नस्लीय भेदभाव:
- नस्लीय भेदभाव की ब्रिटिश नीति जो सामाजिक प्रथाओं एवं प्रशासन में स्पष्ट रूप से देखी जाती थी, ने भारतीय आबादी को अलग-थलग कर दिया।
- ब्रिटिश अधिकारियों के नस्लीय भेदभाव के साथ-साथ यूरोपीय और भारतीयों के लिये अलग-अलग कानूनों का निर्माण, असंतोष का कारण बना।
सांस्कृतिक कारक:
धार्मिक हस्तक्षेप:
- धार्मिक प्रथाओं में हस्तक्षेप विशेष रूप से मुस्लिम बहुल राज्य अवध पर कब्ज़ा, ने मुस्लिम आबादी के बीच चिंताएँ बढ़ा दीं।
- धार्मिक स्थलों के विनाश एवं सांस्कृतिक प्रतीकों के प्रति दिखाए गए अनादर ने सांस्कृतिक असुरक्षा की भावना पैदा की।
सांस्कृतिक असंवेदनशीलता:
- भारतीय रीति-रिवाज़ों एवं परंपराओं के प्रति ब्रिटिश शासकों की असंवेदनशीलता, जैसे जानवरों की चर्बी वाले नए एनफील्ड राइफल कारतूसों की शुरूआत, ने हिंदू और मुस्लिम दोनों की धार्मिक भावनाओं को आहत किया।
- इसके कारण वर्ष 1857 में सिपाही विद्रोह की शुरुआत हुई।
प्रमुख घटनाएँ और उनका प्रभाव:
सिपाही विद्रोह (1857):
- सिपाही विद्रोह, जिसे प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के रूप में भी जाना जाता है, भारतीय इतिहास में एक प्रमुख क्षण था।
- ट्रिगर उपरोक्त कारतूसों का उपयोग था, जिसके कारण भारतीय सैनिकों के बीच व्यापक विद्रोह हुआ।
- विद्रोह पूरे उत्तरी भारत में फैल गया, जिसमें नागरिक एवं भारतीय शासक शामिल थे, जिसने ब्रिटिश सत्ता के लिये एक बड़ी चुनौती पेश की।
भारतीय समाज पर प्रभाव:
- वर्ष 1857 की घटनाओं का भारतीय समाज पर गहरा प्रभाव पड़ा। क्रूर प्रतिशोध और हत्या संबंधी घटनाओं से ब्रिटिश विरोधी भावनाओं को बढ़ावा मिला।
- वर्ष 1858 में ईस्ट इंडिया कंपनी के विघटन के बाद क्राउन का प्रत्यक्ष शासन लागू होने से ब्रिटिश नीति में बदलाव आया।
निष्कर्ष:
वर्ष 1857 से पहले के भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ प्रतिरोध सामाजिक,आर्थिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक कारकों से प्रेरित एक बहुआयामी आंदोलन था। शिकायतों की परिणति से उत्पन्न सिपाही विद्रोह औपनिवेशिक उत्पीड़न के विरुद्ध संघर्ष में एक प्रमुख परिवर्तन था। इस अवधि की घटनाओं एवं भावनाओं ने बाद के स्वतंत्रता आंदोलन के लिये आधार तैयार किया, जिसने भारत की स्वतंत्रता के संघर्ष के पथ को आकार दिया।