दिवस 40
प्रश्न2. भारत में मुगल साम्राज्य के पतन की व्याख्या करने के क्रम में नेतृत्व क्षमता, प्रशासनिक नीतियों एवं बाहरी चुनौतियों की भूमिका का विश्लेषण कीजिये। (150 शब्द)
04 Jan 2024 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | इतिहास
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- प्रश्न के संदर्भ को ध्यान में रखते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- उन नेतृत्व कारकों पर चर्चा कीजिये जिनके कारण मुगल साम्राज्य का पतन हुआ।
- उन प्रशासनिक नीतियों की चर्चा कीजिये जिनके कारण मुगल साम्राज्य का पतन हुआ।
- उन बाहरी चुनौतियों पर चर्चा कीजिये जिनके कारण मुगल साम्राज्य का पतन हुआ।
- यथोचित निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
अठारहवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में शक्तिशाली मुगलों का पतन हो गया। मुगल साम्राज्य के पतन का कारण नेतृत्व की विफलता, प्रशासनिक कमियाँ और जटिल बाहरी चुनौतियाँ थीं।
मुख्य भाग:
- नेतृत्व की चुनौतियाँ:
- अक्षम और कमज़ोर शासक: मुगल साम्राज्य में कई अक्षम और कमज़ोर शासकों की शृंखला देखी गई, जिनके पास प्रशासनिक कौशल की कमी थी तथा वे आंतरिक अशांति एवं बाहरी खतरों को प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिये संघर्षरत रहे।
- वर्ष 1719 में फर्रुखसियर की हत्या उसके सरदारों (सैय्यद ब्रदर्स) ने कर दी।
- उत्तराधिकार योजना का अभाव: उत्तराधिकार की स्पष्ट और स्थिर प्रणाली के अभाव के कारण प्राय: आंतरिक अशांति की स्थिति थी, जिससे साम्राज्य की केंद्रीय सत्ता कमज़ोर हो गई तथा बाहरी खतरों पर ध्यान नहीं दिया जाता था।
- लगभग दो वर्ष तक चले उत्तराधिकार के युद्ध के बाद औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद बहादुर शाह प्रथम सम्राट बना।
- प्रशासनिक नीतियाँ:
- ज़मींदारों की बदलती निष्ठा: बाद में मुगल ज़मींदारों की शक्ति पर अंकुश लगाने में विफल रहे और कई स्थानीय ज़मींदारों ने साम्राज्य के भीतर शक्तिशाली वर्गों को अपने लिये स्वतंत्र राज्य बनाने में मदद की।
- जागीरदारी संकट: मज़बूत केंद्रीय नेतृत्व के अभाव में धर्म, मातृभूमि और जनजाति के आधार पर कुलीनों के बीच आपसी प्रतिद्वंद्विता ने बाद में मुगलों की प्रतिष्ठा एवं शक्ति को कम कर दिया।
- क्षेत्रीय आकांक्षाओं का उदय: क्षेत्रीय साम्राज्य अपने स्वयं के राज्य बनाने के प्रयास में मुगल राज्य के अधिकारों की अवहेलना करते थे।
- बाद के मुगल काल में जाटों, सिखों और मराठों जैसे शक्तिशाली क्षेत्रीय समूहों का उदय हुआ।
- स्थिर अर्थव्यवस्था: मुगल शासकों को विशाल साम्राज्य के आर्थिक संसाधनों के प्रबंधन में चुनौतियों का सामना करना पड़ा। उच्च कराधान, विभिन्न प्रशासनिक स्तरों पर भ्रष्टाचार के कारण समाज में आर्थिक अस्थिरता एवं असंतोष पैदा हुआ।
- ऐसी कोई महत्त्वपूर्ण वैज्ञानिक एवं तकनीकी प्रगति नहीं थी जो स्थिर अर्थव्यवस्था को सुधार सके।
- बाहरी चुनौतियाँ:
- आक्रमण और सैन्य चुनौतियाँ: बाहरी आक्रमणों, विशेष रूप से फारसी शासक नादिर शाह और अफगान आक्रमणकारी अहमद शाह दुर्रानी के आक्रमणों ने मुगल साम्राज्य को गंभीर आघात पहुँचाया।
- वर्ष 1739 में नादिर शाह द्वारा दिल्ली को लूटने के परिणामस्वरूप अपार धन की हानि हुई और साम्राज्य की सैन्य शक्ति कमज़ोर हो गई।
- यूरोपीय उपनिवेशवाद: यूरोपीय औपनिवेशिक शक्तियों, मुख्य रूप से ब्रिटिश और फ्राँसीसियों के उद्भव ने एक प्रमुख बाहरी चुनौती पेश की।
- इन औपनिवेशिक शक्तियों द्वारा आर्थिक शोषण एवं राजनीतिक हस्तक्षेप ने मुगल सत्ता को कमज़ोर कर दिया, जैसा कि प्लासी का युद्ध (1757) और उसके बाद ब्रिटिश प्रभुत्व से पता चलता है।
निष्कर्ष:
मुगल साम्राज्य के पतन ने यूरोपीय शक्तियों द्वारा भारत के औपचारिक उपनिवेशीकरण की शुरुआत को चिह्नित किया। ईस्ट इंडिया कंपनी ने सत्ता की शून्यता का लाभ उठाया, धीरे-धीरे विशाल क्षेत्रों पर अपना नियंत्रण बढ़ाया और उपमहाद्वीप की राजनीतिक संरचना को मूल रूप से बदल दिया।