Sambhav-2024

दिवस 40

प्रश्न1. भारत में 18वीं सदी में होने वाले आंग्ल-फ्राँसीसी संघर्ष के अंतर्निहित कारक क्या थे? उन कारणों का परीक्षण कीजिये जिनके कारण अंग्रेज़ों को इस संघर्ष में सफलता मिली थी। (250 शब्द)

04 Jan 2024 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | इतिहास

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • प्रश्न के संदर्भ को ध्यान में रखते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
  • 18वीं सदी में भारत में होने वाले आंग्ल-फ्राँसीसी संघर्ष के अंतर्निहित कारकों पर चर्चा कीजिये।
  • उन कारणों की चर्चा कीजिये जिनके कारण अंग्रेज़ों को इस संघर्ष में सफलता मिली थी।
  • यथोचित निष्कर्ष लिखिये।

परिचय:

आंग्ल-कर्नाटक युद्ध 18वीं शताब्दी के दौरान दक्षिण भारत के कर्नाटक क्षेत्र में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और फ्राँसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच हुआ था। यह संघर्ष आर्थिक, राजनीतिक, सैन्य एवं रणनीतिक कारकों की एक जटिल परस्पर क्रिया का परिणाम था जिससे भारत में औपनिवेशिक परिदृश्य और शक्ति संतुलन की गतिशीलता को आकार मिला।

मुख्य भाग:

आंग्ल-फ्राँसीसी संघर्ष के अंतर्निहित कारक:

  • यूरोपीय प्रतिद्वंद्विता का विस्तार: यूरोपीय राष्ट्र यूरोप में ही संघर्षों में शामिल थे (जैसे ऑस्ट्रियाई उत्तराधिकार का युद्ध और सप्तवर्षीय युद्ध) तथा वर्चस्व के लिये यह संघर्ष भारत सहित उनके उपनिवेशों तक फैल गया।
    • प्रथम कर्नाटक युद्ध (1740-48) यूरोप में आंग्ल-फ्राँसीसी युद्ध का विस्तार था जो ऑस्ट्रियाई उत्तराधिकार के युद्ध के कारण हुआ था।
  • भारत में राजनीतिक अस्थिरता: मुगल साम्राज्य के घटते प्रभाव और उसके बाद सत्ता शून्यता ने यूरोपीय औपनिवेशिक शक्तियों को अपना प्रभुत्व स्थापित करने तथा क्षेत्रीय शक्तियों के बीच प्रभाव हेतु प्रतिस्पर्द्धा करने के लिये एक उपयुक्त वातावरण तैयार किया।
    • फ्राँसीसी गवर्नर डूप्ले ने अंग्रेज़ों को हराने के लिये स्थानीय राजवंशीय विवादों में हस्तक्षेप करके दक्षिणी भारत में अपनी शक्ति एवं फ्राँसीसी राजनीतिक प्रभाव को बढ़ाने की कोशिश की, जिसके कारण अंततः दूसरा कर्नाटक युद्ध (1749-54) हुआ।
  • प्रतिस्पर्द्धी आर्थिक हित:
    • अंग्रेज़ी और फ्राँसीसी ईस्ट इंडिया कंपनियाँ दोनों ही आर्थिक महत्त्वाकांक्षाओं से प्रेरित थीं। क्षेत्रीय विस्तार की इच्छा के साथ-साथ आकर्षक मसाले और कपड़ा व्यापार ने उनकी प्रतिद्वंद्विता को बढ़ावा दिया।
      • काउंट डी लाली के नेतृत्व में फ्राँसीसी सेना ने वर्ष 1758 में सेंट डेविड और विजिनाग्राम के अंग्रेज़ी किलों पर कब्ज़ा कर लिया, जिसके कारण तीसरा कर्नाटक युद्ध (1758-63) हुआ।

अंग्रेज़ी सफलता के कारण:

  • सक्षम नेतृत्व: अंग्रेज़ों के पास सर आयर कूट और रॉबर्ट क्लाइव जैसे प्रभावी नेता थे, जो सैन्य एवं कूटनीतिक दोनों क्षेत्रों में रणनीतिक कौशल दिखाते थे।
    • हालाँकि फ्राँसीसी गवर्नर, डुप्लेक्स कर्मठ व्यक्ति नहीं था जिसने केवल अभियानों की योजना बनाई लेकिन कभी भी युद्ध के मैदान में सेना का नेतृत्व नहीं किया।
  • त्वरित निर्णय लेना: अंग्रेज़ी कंपनी एक निजी उद्यम के रूप में संचालित होती थी, जो सरकारी अनुमोदन की आवश्यकता के बिना त्वरित निर्णय लेने की अनुमति देती थी।
    • इसके विपरीत सरकारी नीतियों और निर्णयन प्रक्रिया में नौकरशाही की विलंबता के कारण फ्राँसीसी कंपनी एक राज्य के समान कार्य करती थी।
  • नौसेना श्रेष्ठता: ब्रिटेन की अंग्रेज़ी नौसेना न केवल सबसे बड़ी थी, बल्कि अपने समय की सबसे उन्नत नौसेना थी।
    • फ्राँसीसी पर अंग्रेज़ी नौसेना की नौसैनिक श्रेष्ठता ने उन्हें भारत और फ्राँस में फ्राँसीसी संपत्ति के बीच महत्त्वपूर्ण समुद्री संपर्क स्थापित करने में मदद की।
  • अधिक आर्थिक संसाधन: अंग्रेज़ी ईस्ट इंडिया कंपनी के पास अधिक आर्थिक संसाधनों तक पहुँच थी, जिससे उन्हें अपनी सैन्य और प्रशासनिक गतिविधियों को फ्राँसीसियों की तुलना में अधिक प्रभावी ढंग से वित्तपोषित करने की अनुमति मिली। इस वित्तीय स्थिरता ने लंबे समय तक उनकी निरंतर सफलता में योगदान दिया।
    • फ्राँसीसियों ने अपने व्यावसायिक हितों को क्षेत्रीय महत्त्वाकांक्षाओं के अधीन कर दिया, जिससे फ्राँसीसी कंपनी को धन की कमी हो गई।

निष्कर्ष:

इन संघर्षों के परिणामस्वरूप ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के पक्ष में एक निर्णायक बदलाव देखा गया, जिसने ब्रिटिशों को अपने क्षेत्रीय नियंत्रण का विस्तार करने की अनुमति दी और इससे भारत के बड़े हिस्से पर ब्रिटिश आधिपत्य की स्थापना हुई।