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Sambhav-2024

  • 02 Jan 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    दिवस 38

    प्रश्न.अलग-अलग धार्मिक परंपराओं से संबंधित होने के बावजूद, भक्ति एवं सूफी आंदोलनों के उद्देश्य समान थे। टिप्पणी कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • उत्तर की शुरुआत प्रस्तावना के साथ कीजिये, जो प्रश्न के लिये एक संदर्भ निर्धारित करती है।
    • भक्ति और सूफी आंदोलनों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
    • भक्ति और सूफी आंदोलनों के बीच समानताओं को बताइये।
    • भक्ति और सूफी आंदोलनों की विशिष्ट धार्मिक परंपराओं को लिखिये।
    • तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।

    प्रस्तावना:

    हिंदू एवं इस्लामी परंपराओं से उभरे भक्ति और सूफी आंदोलन, अपनी विशिष्ट धार्मिक बुनियादों के बावजूद एक समान उद्देश्य साझा करते हैं। मध्यकालीन भारत में प्रमुखता हासिल करने वाले इन आंदोलनों की विशेषता व्यक्तिगत भक्ति, रहस्यमयी अनुभवों और अनुष्ठानिक औपचारिकता की अस्वीकृति पर ज़ोर देना था।

    निकाय:

    भक्ति आंदोलन:

    • भक्ति आंदोलन, जिसे भारत में 7वीं एवं 17वीं शताब्दी के बीच प्रमुखता मिली, जो मुख्य रूप से हिंदू धर्म की कठोर जाति व्यवस्था, अनुष्ठान प्रथा और औपचारिकता के विरुद्ध प्रतिक्रिया के रूप में उभरा।
    • भक्ति, जो संस्कृत शब्द 'भज' से लिया गया है, का अर्थ है ईश्वर के प्रति समर्पण या प्रेम। इस आंदोलन ने व्यक्तियों को परमात्मा के साथ सीधा और व्यक्तिगत संबंध तलाशने के लिये प्रोत्साहित किया।
    • कबीर, मीराबाई और तुलसीदास जैसे प्रमुख भक्ति संतों ने पारंपरिक धार्मिक सीमाओं को पार किया और एक निराकार, सर्वव्यापी भगवान का समर्थन किया।

    सूफी आंदोलन:

    • इस्लाम में सूफी आंदोलन, जो 8वीं शताब्दी में उभरा, में इस्लाम के कानूनी और अनुष्ठानिक पहलुओं से परे, प्रार्थना, ध्यान तथा तप प्रथाओं के माध्यम से ईश्वर की आंतरिक खोज शामिल है।
    • रूमी, इब्न अरबी और मंसूर अल-हल्लाज जैसे प्रमुख सूफी संतों ने प्रेम, भक्ति एवं परमात्मा के साथ सीधे संवाद के महत्त्व पर ज़ोर दिया।
    • रूमी की कविताएँ, जैसे मथनवी एवं दीवान-ए-शम्स, दिव्य प्रेम के विषय और ईश्वर के साथ मिलन की दिशा में आत्मयात्रा पर ज़ोर देती हैं।

    समानताएँ:

    भक्ति और प्रेम पर ज़ोर:

    • भक्ति एवं सूफी दोनों आंदोलनों ने ईश्वर के प्रति व्यक्तिगत भक्ति और प्रेम के महत्त्व को रेखांकित किया।
    • कबीर, मीराबाई और तुलसीदास जैसे भक्ति कवियों के साथ-साथ रूमी, बुल्ले शाह तथा अमीर खुसरो जैसे सूफी संतों ने कविता एवं संगीत के माध्यम से ईश्वर के प्रति अपने गहन प्रेम को व्यक्त किया।
    • दोनों आंदोलनों का सार कठोर धार्मिक संरचनाओं की सीमाओं को पार करते हुए, परमात्मा के साथ प्रत्यक्ष और व्यक्तिगत संबंध का अनुभव करने में निहित है।

    कर्मकांडीय औपचारिकता (Ritualistic Formalism) की अस्वीकृति:

    • भक्ति और सूफी संतों ने अपनी-अपनी धार्मिक परंपराओं में प्रचलित औपचारिकतावादी तथा कर्मकांडीय प्रथाओं की आलोचना की।
    • उन्होंने बाहरी अनुष्ठानों पर आंतरिक, आध्यात्मिक अनुभव पर ज़ोर देते हुए, परमात्मा के साथ प्रत्यक्ष और बिना मध्यस्थता वाले संबंधों का समर्थन किया।
    • कठोर कर्मकांड की यह अस्वीकृति एक सामान्य माध्यम थी, जिसने दोनों आंदोलनों को एकजुट किया।

    सार्वभौमिकता और समानता:

    • दोनों आंदोलनों ने सार्वभौमिकता और समानता की भावना का प्रचार किया। भक्ति संतों ने जाति-आधारित भेदभाव को खारिज कर दिया तथा एक सार्वभौमिक व सुलभ ईश्वर के विचार पर ज़ोर दिया।
    • इसी तरह, सूफी संतों ने ईश्वर के समक्ष सभी की समानता के विचार को बढ़ावा देते हुए, जाति, पंथ और सामाजिक स्थिति की बाधाओं को हल करने का प्रयास किया।
    • इस समावेशी लोकाचार ने सामाजिक सद्भाव और एकीकरण में योगदान दिया।

    समन्वयवाद और अंतर-धार्मिक संवाद:

    • भक्ति और सूफी संत विभिन्न धार्मिक पृष्ठभूमि के लोगों के साथ व्यापक संवाद में लगे रहे।
    • उनकी शिक्षाओं की समन्वित प्रकृति ने अंतर-धार्मिक समझ और सद्भाव को बढ़ावा दिया।
    • कई भक्ति और सूफी ग्रंथों में ऐसे तत्त्व शामिल थे, जो धार्मिक सीमाओं से परे सहिष्णुता तथा सह-अस्तित्त्व की भावना को बढ़ावा देते थे।

    अंतर:

    धार्मिक संदर्भ:

    भक्ति आंदोलन की उत्पत्ति हिंदू धर्म के संदर्भ में हुई, जिसके समर्थक विष्णु, शिव या दिव्य माँ जैसे देवताओं के साथ व्यक्तिगत संबंध मानते थे। दूसरी ओर, सूफी आंदोलन इस्लाम में उभरा, जो अल्लाह के साथ एक रहस्यमय और व्यक्तिगत संबंध पर केंद्रित था।

    पूजा विधि:

    दोनों आंदोलनों ने प्रेम और भक्ति के महत्त्व पर ज़ोर दिया, जबकि दोनों धर्मो में पूजा की विधियाँ अलग-अलग थीं। भक्ति संत अक्सर भजन गाने, जप करने और मंदिरों में उपासना जैसी भक्ति प्रथाओं में संलग्न रहते थे। इसके विपरीत, सूफी मनीषियों ने ईश्वर से जुड़ने के साधन के रूप में धिक्कार (ईश्वर का स्मरण), सूफी संगीत (कव्वाली), और आध्यात्मिक नृत्य (समा) पर ज़ोर दिया।

    साहित्यिक अभिव्यक्तियाँ:

    भक्ति साहित्य मुख्य रूप से हिंदी, मराठी, तमिल आदि क्षेत्रीय भाषाओं में है, जिसमें कविता और भक्ति गीतों की समृद्ध परंपरा है। दूसरी ओर, सूफी साहित्य प्रायः फारसी और उर्दू भाषा में होता है, जो इस्लामी दुनिया की सांस्कृतिक एवं भाषाई विविधता को दर्शाता है।

    निष्कर्ष:

    भक्ति और सूफी आंदोलन अलग-अलग धार्मिक परंपराओं से उत्पन्न हुए थे, दोनों आंदोलनों ने प्रेम, भक्ति तथा नैतिक आचरण पर ज़ोर देते हुए कर्मकांड प्रथाओं एवं सामाजिक विभाजनों को कम करने पर बल दिया। भक्ति और सूफी संतों का जीवन तथा शिक्षाएँ धार्मिक सीमाओं से परे व्यक्तियों को प्रेरित करती रहती हैं तथा आध्यात्मिकता एवं मानवता की सार्वभौमिक समझ को बढ़ावा देती हैं।

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