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01 Jan 2024
सामान्य अध्ययन पेपर 1
इतिहास
दिवस 37
Q1. प्रारंभिक मध्यकाल के दौरान दिल्ली सल्तनत के उदय और राजपूत साम्राज्य के पतन के पीछे के कारकों पर चर्चा कीजिये। भारतीय इतिहास को आकार देने में तराइन के द्वितीय युद्ध के महत्त्व का आकलन कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- उत्तर की शुरुआत प्रस्तावना के साथ कीजिये जो प्रश्न के लिये एक संदर्भ निर्धारित करती है।
- दिल्ली सल्तनत के उत्थान में योगदान देने वाले कारकों को लिखिये।
- उन कारकों को लिखिये, जिनके कारण राजपूत साम्राज्य का पतन हुआ।
- तराइन के द्वितीय युद्ध के महत्त्व बताइये।
- तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।
प्रस्तावना:
भारत में प्रारंभिक मध्य काल के दौरान दिल्ली सल्तनत के उदय और राजपूत साम्राज्यों के पतन को राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं सैन्य कारकों की जटिल परस्पर क्रिया के लिये ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है। वर्ष 1192 में तराइन के द्वितीय युद्ध, जिसमें मुहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को हराया, एक महत्त्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ।
निकाय:
दिल्ली सल्तनत के उत्थान में योगदान देने वाले कारक:
- सैन्य श्रेष्ठता: घुड़सवार धनुर्धारियों के उपयोग और नवीन सैन्य रणनीति को अपनाने से राजपूतों की पारंपरिक सेनाओं में प्रगति देखी गई।
- गाज़ी, युद्ध के मैदान में साहस और बहादुरी के गुणों से सुपरिचित था।
- प्रशासनिक दक्षता: दिल्ली सल्तनत ने इक्ता और खलीसा प्रथाओं की शुरुआत करके एक कुशल प्रशासनिक प्रणाली की स्थापना की।
- सामरिक स्थिति: दिल्ली की सामरिक स्थिति ने व्यापार मार्गों और संचार लाइनों पर नियंत्रण प्रदान किया तथा राजनीतिक शक्ति को मज़बूत करने में योगदान दिया।
वे कारक जिनके कारण राजपूत साम्राज्य का पतन हुआ:
- राजपूत राज्यों का राजनीतिक विखंडन: राजपूत युद्ध को एक खेल मानते थे। भूमि और मवेशियों के लिये संघर्ष के कारण विभिन्न राजपूत राज्यों के बीच निरंतर युद्ध होते रहे।
- राजपूत कुलों के बीच आंतरिक संघर्ष, सत्ता संघर्ष और प्रतिद्वंद्विता ने बाहरी आक्रमण के खिलाफ एकीकृत मोर्चा पेश करने की उनकी क्षमता को कमज़ोर कर दिया।
- सामरिक दृष्टि का अभाव: भारत में राजपूतों ने सीमित सामरिक दृष्टि का प्रदर्शन किया, मुख्य रूप से घरेलू मामलों पर ध्यान केंद्रित किया और बाहरी विकास के साथ-साथ विशेष रूप से मध्य एशिया में कम रुचि दिखाई।
- राजपूत राज्यों की आर्थिक चुनौतियाँ: निरंतर युद्ध और व्यापार मार्गों के विघटन का राजपूत राज्यों की आर्थिक स्थिरता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।
तराइन के द्वितीय युद्ध का महत्त्व:
- दिल्ली सल्तनत की स्थापना: पृथ्वीराज चौहान पर मुहम्मद गोरी की जीत ने सल्तनत शासन की नींव रखी, जिसने सदियों तक राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित किया।
- उत्तरी भारत का इस्लामी सभ्यता में एकीकरण: तराइन की जीत ने उत्तरी भारत को व्यापक इस्लामी सभ्यता में एकीकरण की सुविधा प्रदान की।
- इस एकीकरण का कला, वास्तुकला, भाषा और सामाजिक मानदंडों पर गहरा प्रभाव पड़ा, जिसने मध्ययुगीन भारत की समन्वयवादी संस्कृति में योगदान दिया।
- केंद्रीकृत शक्ति का सुदृढ़ीकरण: सल्तनत की प्रशासनिक दक्षता और प्रमुख व्यापार मार्गों पर नियंत्रण ने मध्यकालीन भारत में प्राधिकरण के सुदृढ़ीकरण की अनुमति दी।
निष्कर्ष:
तराइन के द्वितीय युद्ध के दीर्घकालिक परिणाम थे, जिसने बाद में दिल्ली सल्तनत राजवंशों, खिलजी और तुगलक राजवंशों के साथ-साथ अंततः मुगल साम्राज्य के लिये मंच तैयार किया। इस अवधि के दौरान शुरू हुए राजनीतिक, सैन्य और सांस्कृतिक परिवर्तनों ने आने वाली शताब्दियों के लिये भारतीय इतिहास की दिशा को आकार दिया।