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Sambhav-2024

  • 01 Jan 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    दिवस 37

    Q2. दिल्ली सल्तनत के दौरान लागू किये गये कृषि एवं प्रशासनिक सुधारों का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये। (150 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • उत्तर की शुरुआत प्रस्तावना के साथ कीजिये जो प्रश्न के लिये एक संदर्भ निर्धारित करती है।
    • दिल्ली सल्तनत के दौरान लागू किये गए कृषि सुधारों का मूल्यांकन कीजिये।
    • दिल्ली सल्तनत के दौरान लागू किये गए प्रशासनिक सुधारों का मूल्यांकन कीजिये।
    • तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।

    प्रस्तावना:

    दिल्ली सल्तनत काल, जो 13वीं सदी की शुरुआत से लेकर 14वीं सदी के अंत तक चला था, में महत्त्वपूर्ण कृषि और प्रशासनिक सुधार हुए, जिन्होंने मध्यकालीन भारत के सामाजिक-आर्थिक तथा राजनीतिक परिदृश्य को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

    निकाय:

    कृषि सुधार:

    • इक्ता प्रथा: इस प्रथा के तहत, सैन्य सेवा के बदले में सैन्य अधिकारियों (इक्तादारों) को भूमि सौंपी जाती थी जिससे एक बड़ी स्थायी सेना बनाए रखने में सहायता मिलती थी।
      • हालाँकि इन सैन्य सुधारों ने राजनीतिक अस्थिरता और गुटबाज़ी में भी योगदान दिया।
    • बाज़ार नियंत्रण: कीमतों को नियंत्रित करने के लिये अलाउद्दीन खिलजी ने दिल्ली में विभिन्न वस्तुओं के लिये तीन अलग-अलग बाज़ार स्थापित किये। ये बाज़ार थे: अनाज बाज़ार (मंडी), वस्त्र बाज़ार (सराय) और घोड़ों, दासों, मवेशियों आदि का बाज़ार।
      • निजी उद्यम को सीमित करने और आर्थिक विकास को अवरुद्ध करने के लिये आर्थिक शक्ति के इस केंद्रीकरण की आलोचना की गई।
    • नहर निर्माण: दिल्ली सल्तनत के दौरान नहरों के निर्माण से खेती योग्य भूमि में वृद्धि हुई, जिससे उच्च कृषि उत्पादकता में बढ़ोतरी हुई।
      • हालाँकि प्रभावशाली क्षेत्रों में नहर सिंचाई के लाभ सीमित थे।

    प्रशासनिक सुधार:

    • सत्ता का केंद्रीकरण: दिल्ली सल्तनत ने शासन की दक्षता बढ़ाने के लिये प्रशासनिक अधिकार को केंद्रीकृत करने की मांग की।
      • हालाँकि सत्ता के केंद्रीकरण के परिणामस्वरूप नौकरशाही में भ्रष्टाचार और जवाबदेही की कमी हुई।
    • ताँबे के सिक्कों की शुरुआत: तुगलकों ने चाँदी के सिक्के (टंका) के स्थान पर ताँबे का सिक्का (जित्तल) चलाया और इसे टंके के बराबर मान्यता प्रदान की।
      • हालाँकि व्यापारियों और आम लोगों के लिये सांकेतिक मुद्रा के विचार को स्वीकार करना कठिन था।
    • फारसी भाषा का परिचय: खिलजी और तुगलक राजवंशों में प्रशासनिक भाषा के रूप में फारसी का उपयोग तथा एक केंद्रीकृत नौकरशाही का कार्यान्वयन शामिल था।
      • हालाँकि इसका उद्देश्य शासन को सुव्यवस्थित करना था, इसने शासक अभिजात वर्ग और स्थानीय आबादी के बीच सांस्कृतिक तथा भाषाई विभाजन उत्पन्न किया।

    निष्कर्ष:

    इन सुधारों के परिणाम समान नहीं थे, जिससे आर्थिक विकास और कृषि असंतोष दोनों उत्पन्न हुए। इन सुधारों ने बाद के शासकों को प्रभावित किया और मध्यकालीन भारतीय इतिहास के पथ को आकार दिया।

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