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Sambhav-2024

  • 29 Dec 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    दिवस 35

    Q2. दक्षिण भारतीय इतिहास के संदर्भ में चोलों के काल का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये। (150 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • चोल राजवंश का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • चोल काल की उल्लेखनीय उपलब्धियों की चर्चा कीजिये।
    • चोल राजवंश की चुनौतियों और आलोचना पर चर्चा कीजिये।
    • तद्नुसार निष्कर्ष कीजिये।

    परिचय:

    चोलों को भारत के दक्षिणी क्षेत्रों में सबसे लंबे समय तक शासन करने वाले राजवंशों (900-1200 ईस्वी) में से एक के रूप में याद किया जाता है। चोल साम्राज्य सांस्कृतिक वैभव, सैन्य कौशल एवं प्रशासनिक प्रतिभा के प्रतीक के रूप में उभरा।

    मुख्य भाग:

    दक्षिण भारत में चोल काल विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय उपलब्धियों का समय था:

    • राजनीतिक उपलब्धियाँ:
      • सैन्य कौशल: चोल अपनी दुर्जेय सैन्य और नौसेना शक्ति के लिये जाने जाते थे। उन्होंने सफल सैन्य अभियानों के माध्यम से अपने क्षेत्रों का विस्तार किया।
        • कलिंग में राजाओं पर विजय के उपलक्ष्य में राजेंद्र प्रथम ने गंगैकोंडचोल (गंगा पर विजय प्राप्त करने वाला चोल) की उपाधि धारण की।
        • चोल नौसेना का बंगाल की खाड़ी क्षेत्र पर प्रभुत्व हो गया और इस खाड़ी को बोलचाल की भाषा में चोल झील (Chola Lake) कहा जाने लगा।
      • केंद्रीकृत प्रशासन: चोलों ने राजस्व संग्रह, कानून प्रवर्तन और शासन के लिये कुशल तंत्र के साथ एक मज़बूत एवं केंद्रीकृत प्रशासनिक प्रणाली की स्थापना की।
        • चोल साम्राज्य मंडलम में विभाजित थे। इस प्रशासन की मूल इकाई नाडु थी।
      • स्थानीय प्रशासन: चोल गाँवों को प्राप्त स्वशासन एक उत्तम व्यवस्था थी।
        • उर गाँव की आम सभा थी, जबकि महासभा गाँवों में वयस्क पुरुषों की सभा थी।
    • आर्थिक समृद्धि:
      • भू-राजस्व: चोल शासकों ने भू-राजस्व में सरकार का हिस्सा तय करने के लिये भूमि का विस्तृत सर्वेक्षण किया।
      • कृषि नवाचार: चोलों ने विस्तृत सिंचाई प्रणालियों के निर्माण जैसी नवीन कृषि पद्धतियों की शुरुआत की।
        • इस उद्देश्य के लिये कावेरी और अन्य नदियों का उपयोग किया गया था।
      • व्यापार और वाणिज्य: दक्षिण भारत ने चोलों के तहत आर्थिक समृद्धि का अनुभव किया, जो एक व्यापार नेटवर्क द्वारा सुगम था।
        • नागपट्टिनम जैसे बंदरगाह दक्षिण पूर्व एशिया के साथ समुद्री व्यापार के लिये प्रमुख केंद्र बन गए।
    • सांस्कृतिक और कलात्मक योगदान:
      • मंदिर वास्तुकला: दक्षिण भारत में मंदिर वास्तुकला ने चोलों के शासनकाल में अपने चरमोत्कर्ष को प्राप्त किया।
        • तंजावुर में बृहदेश्वर मंदिर उनकी वास्तुकला कौशल का प्रमाण है।
      • मूर्तिकला: इस काल में दक्षिण भारत में मूर्तिकला को उच्च मानक प्राप्त हुआ।
        • श्रवण बेलगोला में गोमतेश्वर और नटराज की भव्य मूर्ति को उत्कृष्ट कृतियाँ माना जाता था।
      • साहित्य और शिक्षा: चोल, कला एवं शिक्षा के संरक्षक थे उन्होंने बौद्धिक गतिविधियों के लिये अनुकूल वातावरण को बढ़ावा दिया।
        • माना जाता है कि कंब रामायण (Kamban Ramayana) इसी काल में लिखी गई थी।

    चुनौतियाँ और आलोचनाएँ:

    • सामंती संघर्ष: चोल शासन के बाद के काल में कुलीनों के बीच आंतरिक संघर्ष देखा गया, जिससे केंद्रीय सत्ता कमज़ोर हो गई।
      • पल्लव प्रमुख ने वर्ष 1243 के आसपास स्वतंत्रता की घोषणा की।
    • पतन और उत्तराधिकार के मुद्दे: राजवंश को पतन और उत्तराधिकार विवादों का सामना करना पड़ा, जिससे चोल साम्राज्य की स्थिरता प्रभावित हुई।
      • होयसल विस्तार ने धीरे-धीरे चोल शक्ति पर नियंत्रण कर लिया।

    निष्कर्ष:

    चोल शासन के दौरान प्रशासनिक नवाचारों, आर्थिक समृद्धि एवं कला के संरक्षण ने इस क्षेत्र की पहचान को गहराई से प्रभावित किया है। चोल विरासत दक्षिण भारत की ऐतिहासिक कथा का एक अभिन्न अंग बनी हुई है, जो सदियों से प्रभावी रही है और इस क्षेत्र की जीवंत सांस्कृतिक विरासत में योगदान दे रही है।

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