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Sambhav-2024

  • 28 Dec 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    दिवस 34

    प्रश्न.2 हर्ष का शासनकाल भारतीय इतिहास में किस प्रकार से प्राचीन काल से मध्यकाल की ओर संक्रमण के चरण को प्रतिबिंबित करता है? (150 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • हर्ष के साम्राज्य का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • विभिन्न क्षेत्रों में हर्ष के साम्राज्य की उपलब्धियों पर चर्चा कीजिये।
    • हर्ष के साम्राज्य के बारे में बताइये जो प्राचीन काल से मध्यकाल की ओर संक्रमण को दर्शाता है।
    • उचित निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    हर्ष का शासनकाल (606 से 647 ई. तक) उत्तरी भारत के एक बड़े हिस्से पर था, भारतीय इतिहास में इसका महत्त्वपूर्ण स्थान है जो प्राचीन से मध्ययुगीन काल की ओर संक्रमण को दर्शाता है। हर्ष के शासन ने राजनीतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक गतिशीलता में महत्त्वपूर्ण बदलाव को प्रदर्शित किया और उनके शासनकाल के विभिन्न पहलू इस परिवर्तन का उदाहरण देते हैं।

    मुख्य भाग:

    • राजनीतिक परिवर्तन:
      • हर्ष के शासनकाल में गुप्त साम्राज्य (जिसका सदियों से उत्तरी भारत पर प्रभुत्व था) का पतन हुआ था। गुप्त साम्राज्य के कमजोर होने के साथ यहाँ कई क्षेत्रीय शक्तियाँ उभरीं, जिससे एक विभाजित राजनीतिक परिदृश्य विकसित हुआ था।
      • शुरू में हर्ष थानेसर में एक क्षेत्रीय शासक था और यह अंततः उत्तरी भारत के एक बड़े हिस्से को अपने शासन के तहत मिलाने में सफल रहा। हालाँकि उसका साम्राज्य अल्पकालिक था और इसमें प्राचीन साम्राज्यों की केंद्रीकृत प्रशासनिक विशेषता का अभाव था।
        • इस विकेंद्रीकरण से शासन की सामंतवादी प्रकृति का आभास हुआ जो मध्ययुगीन काल में काफी प्रचलित हुई थी।
    • सांस्कृतिक समन्वय:
      • हर्ष, कला और संस्कृति का संरक्षक था और उसका दरबार बुद्धिजीवियों, विद्वानों एवं कलाकारों का केंद्र बन गया। इस सांस्कृतिक समन्वय को हिंदू और बौद्ध परंपराओं के मिश्रण के रूप में देखा जाता था।
      • हर्ष ने बौद्ध धर्म को अपना लिया था लेकिन उन्होंने धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा देते हुए दोनों धर्मों को संरक्षण प्रदान किया।
    • आर्थिक परिवर्तन:
      • केंद्रीकृत सत्ता के पतन के कारण आर्थिक संरचनाओं में बदलाव आया। व्यापार और वाणिज्य फला-फूला तथा स्थानीय शासकों ने आर्थिक मामलों में अधिक सक्रिय भूमिका निभाई थी।
      • क्षेत्रीय व्यापार केंद्रों के उद्भव और बड़े पैमाने पर इनके शाही संरक्षण में कमीं आने के कारण अधिक स्थानीयकृत आर्थिक प्रणाली के विकास को बढ़ावा मिला था।
    • सामंतवादी तत्त्व:
      • हालाँकि "सामंतवाद" शब्द आमतौर पर मध्ययुगीन यूरोप से संबंधित है लेकिन हर्ष के शासनकाल में सामंतवादी तत्त्वों के कुछ शुरुआती लक्षण दिखाई देते हैं।
      • इस दौरान एक मज़बूत केंद्रीय सत्ता की अनुपस्थिति के कारण स्थानीय सरदारों और ज़मींदारों का उदय हुआ जिन्होंने अपने-अपने क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण प्रभाव स्थापित किया।
      • मध्य काल में भूमि अनुदान प्रणाली के तहत स्थानीय अभिजात वर्ग की वफादारी हासिल करने के लिये अक्सर भूमि अनुदान दिया जाता था।
    • शहरी केंद्रों का पतन:
      • प्राचीन काल के दौरान शहरी केंद्र प्रशासन, व्यापार और संस्कृति के महत्त्वपूर्ण केंद्र थे।
      • हालाँकि हर्ष के शासनकाल में शहरी केंद्रों के महत्त्व में गिरावट देखी गई और स्थानीय स्तर पर शक्तियों का विकेंद्रीकरण हुआ।
      • विकेंद्रीकरण और शहरी-केंद्रित शासन से दूरी मध्य काल की सामाजिक-राजनीतिक संरचना का संकेत थी।
    • वंशवादी स्थिरता का अभाव:
      • भारतीय इतिहास में मध्यकाल को अक्सर कई राजवंशों के उत्थान और पतन से चिह्नित किया जाता है। 647 ई. में हर्ष की मृत्यु के कारण सत्ता में शून्यता आ गई और स्पष्ट उत्तराधिकार योजना का अभाव हो गया, जिससे इस साम्राज्य के विघटन का मार्ग प्रशस्त हुआ।
      • इसके बाद की राजनीतिक अस्थिरता और क्षेत्रीय राजवंशों के उदय ने विभाजित राजनीतिक परिदृश्य को प्रतिबिंबित किया जो मध्ययुगीन भारत की पहचान बन गया।

    निष्कर्ष:

    हर्ष का शासनकाल भारतीय इतिहास में प्राचीन एवं मध्यकाल के बीच एक सेतु का कार्य करता है। केंद्रीकृत सत्ता के पतन एवं सांस्कृतिक समन्वय आदि उनके शासन की प्रमुख विशेषताएँ थीं, जिससे भारत में मध्यकाल का आधार तैयार हुआ था। हर्ष की विरासत न केवल राजनीतिक एकीकरण के उनके प्रयासों में निहित है, बल्कि उस सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य को आकार देने में भी निहित है जिन्हें हम मध्यकालीन भारत में देख सकते हैं।

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