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28 Dec 2023
सामान्य अध्ययन पेपर 1
इतिहास
दिवस 34
प्रश्न.1 कला और साहित्य के क्षेत्र में गुप्त शासकों की उन उपलब्धियों एवं योगदानों पर चर्चा कीजिये जो उस काल की सांस्कृतिक पराकाष्ठा को दर्शाते हैं। (250 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- गुप्त साम्राज्य का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- कला के क्षेत्र में गुप्त शासकों की उपलब्धियों की चर्चा कीजिये।
- साहित्य के क्षेत्र में गुप्त शासकों के योगदान की चर्चा कीजिये।
- उचित निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
गुप्त साम्राज्य (जो प्राचीन भारत में चौथी से छठी शताब्दी ईस्वी तक प्रसारित हुआ) का कला और साहित्य में महत्त्वपूर्ण योगदान के कारण इसे अक्सर "स्वर्ण युग" कहा जाता है। गुप्त शासकों (विशेष रूप से चंद्रगुप्त द्वितीय और समुद्रगुप्त) ने एक समृद्ध सांस्कृतिक वातावरण को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी जो उनके शासनकाल के दौरान अपने चरम पर पहुँच गया।
मुख्य भाग:
संस्कृति:
- मूर्तिकला:
- गुप्त काल में मूर्तिकला के क्षेत्र में उल्लेखनीय विकास देखा गया था जो पूर्ववर्ती काल के अधिक कठोर और प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व से हटकर था।
- गुप्त काल के कलाकारों ने यथार्थवाद की भावना के साथ मानव शरीर रचना का चित्रण करने में उत्कृष्टता हासिल की थी। इसके प्रमुख उदाहरणों में से एक प्रसिद्ध "सारनाथ की बुद्ध प्रतिमा" हैं, जो गुप्त कला की एक उत्कृष्ट कृति होने के साथ उस काल की भव्यता को दर्शाती है।
- गुफा वास्तुकला:
- गुप्त शासक गुफा वास्तुकला के संरक्षक थे और उनके समर्थन से गुफा चित्रों के साथ कुछ प्रतिष्ठित शैलकृत गुफाओं का निर्माण हुआ था।
- विदिशा के पास उदयगिरि और विष्णु गुप्त गुफाएँ इनके अनुकरणीय उदाहरण के रूप में स्थापित हैं। इन गुफाओं में जटिल नक्काशीदार मूर्तियाँ हैं जो जीवन, देवत्व और गुप्त शासकों के विभिन्न पहलुओं को दर्शाती हैं।
- मंदिर वास्तुकला:
- हालाँकि गुप्त-काल के अधिकांश मंदिर समय के साथ नष्ट हो गए हैं लेकिन उस काल की स्थापत्य शैली ने भविष्य के मंदिर निर्माण के लिये आधार तैयार किया।
- देवगढ़ का दशावतार मंदिर इसका एक जीवंत उदाहरण है, जिसमें कलात्मक उत्कृष्टता और धार्मिक प्रतीकवाद का एक विशिष्ट मिश्रण है।
- धातुकर्म:
- गुप्त धातुविदों ने उत्कृष्ट धातु की मूर्तियाँ बनाने में उत्कृष्टता हासिल की। दिल्ली का लौह स्तंभ (जिसका श्रेय चंद्रगुप्त द्वितीय को जाता है) उस समय के उन्नत धातुकर्म कौशल के प्रमाण के रूप में स्थापित है।
- लगभग शुद्ध लोहे से बना यह स्तंभ धातु विज्ञान में गुप्त काल की उत्कृष्टता को दर्शाता है।
साहित्य:
- शास्त्रीय संस्कृत साहित्य:
- गुप्त काल को अक्सर शास्त्रीय संस्कृत साहित्य के संदर्भ में प्रमुख माना जाता है। इस दौरान उल्लेखनीय साहित्यिक रचनाएँ सामने आईं, जिनमें कालिदास की "अभिज्ञान शाकुन्तलम्" और "मेघदूत" शामिल हैं।
- चंद्रगुप्त द्वितीय के दरबारी कवि कालिदास को उनकी काव्य प्रतिभा और संस्कृत भाषा पर महारत के लिये जाना जाता है।
- नाटक और कविता:
- गुप्त काल के दौरान संस्कृत नाटकों का काफी विकास हुआ था।
- कालिदास के नाटक जैसे "अभिज्ञान शाकुंतलम" और "मालविकाग्निमित्रम्" न केवल नाटक की उत्कृष्ट कृतियाँ हैं बल्कि मानवीय भावनाओं और रिश्तों की काव्यात्मक अभिव्यक्ति भी हैं।
- महाकाव्यों का संकलन:
- गुप्त काल में दो महान भारतीय महाकाव्यों (रामायण और महाभारत) का संकलन एवं मानकीकरण हुआ था।
- इस काल की वाल्मिकी रामायण और व्यास की महाभारत का भारतीय साहित्य एवं संस्कृति पर प्रमुख प्रभाव पड़ा है।
- वैज्ञानिक और दार्शनिक ग्रंथ:
- गुप्त काल के विद्वानों ने वैज्ञानिक और दार्शनिक साहित्य में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया था। गुप्त काल के प्रसिद्ध गणितज्ञ और खगोलशास्त्री आर्यभट्ट ने गणित एवं खगोल विज्ञान पर एक मौलिक ग्रंथ "आर्यभटीय" लिखा। यह उस समय की बौद्धिक क्षमता को दर्शाता है।
निष्कर्ष:
गुप्त शासकों ने कला एवं साहित्य में स्थायी योगदान देने के साथ इसकी एक स्थायी विरासत छोड़ी जो प्राचीन भारत की उत्कृष्टता को प्रदर्शित करती है। कला के संरक्षण और विद्वानों तथा बुद्धिजीवियों के प्रति उनके समर्थन ने रचनात्मकता एवं बौद्धिक संस्कृति को बढ़ावा दिया था। इन क्षेत्रों में गुप्त साम्राज्य की उपलब्धियाँ आज भी भारत के सांस्कृतिक परिदृश्य को प्रेरित और प्रभावित करती हैं।