Sambhav-2024

दिवस 33

प्रश्न.2 दक्षिण भारत के इतिहास के संदर्भ में 'महापाषाण कालीन चरण’ से क्या तात्पर्य है? इस चरण के दौरान राज्य के गठन एवं सभ्यता के उदय पर चर्चा कीजिये। (150 शब्द)

27 Dec 2023 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | इतिहास

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • दक्षिण भारत के 'महापाषाण काल' का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  • महापाषाण काल की प्रमुख विशेषताओं पर चर्चा कीजिये, जिन्होंने राजकीय संरचना और सभ्यता के उदय में योगदान दिया था।
  • तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।

परिचय:

दक्षिण भारत के इतिहास में 'महापाषाण कालीन चरण' एक विशिष्ट पुरातात्त्विक और सांस्कृतिक काल (1000 ईसा पूर्व से 100 ईसा पूर्व) को संदर्भित करता है, जिसमें विभिन्न उद्देश्यों जैसे कब्रों और कभी-कभी बस्तियों के मार्कर के रूप में बड़े पत्थरों का उपयोग किया जाना है।

मुख्य भाग:

महापाषाण कालीन चरण की ऐसी प्रमुख विशेषताएँ जिन्होंने राज्य के गठन एवं सभ्यता के उदय में योगदान दिया:

  • महापाषाण कब्र: इस चरण की सबसे प्रमुख विशेषता, शवाधान प्रथा थी। लोगों ने मृतकों की कब्रों को चिह्नित करने के लिये बड़े पत्थरों का उपयोग करके विस्तृत शवाधान संरचनाओं का निर्माण किया था।
    • इन संरचनाओं में अक्सर पत्थर के घेरे, डोलमेंस और कैर्न्स शामिल होते थे।
  • तकनीकी प्रगति: लोहे के औजारों का उपयोग महापाषाण चरण के दौरान एक महत्त्वपूर्ण तकनीकी प्रगति को दर्शाता है।
    • लोहे के उपकरण कांस्य की तुलना में अधिक कुशल थे और संभवतः कृषि उत्पादकता में वृद्धि में योगदान करते थे।
  • स्थायी कृषि: इस दौरान कृषि एक महत्त्वपूर्ण आर्थिक गतिविधि बनी रही। महापाषाणकालीन लोग स्थायी कृषि करते थे और प्राप्त साक्ष्य मिट्टी-ईंट जैसी संरचनाओं वाले गाँवों और बस्तियों के अस्तित्त्व का संकेत देते हैं।
    • इन लोगों ने धान और रागी की कृषि करने के साथ सामाजिक वर्ग स्थापित किये।
  • शासक वर्ग का उद्भव: महापाषाण काल के दौरान शासक समुदाय का उदय होने लगा। सामाजिक पदानुक्रम में ये संगठन में प्रमुख भूमिका निभाते थे।
    • अशोक के शिलालेखों में उल्लिखित चोल, पांड्य और केरलपुत्र संभवतः उत्तरकालीन महापाषाण काल के थे।
    • अशोक की उपाधि 'देवताओं का प्रिय' एक तमिल शासक द्वारा अपनाई गई थी।
  • सांस्कृतिक विकास:
    • महापाषाण चरण में कला, मिट्टी के बर्तन और अलंकरण के संदर्भ में सांस्कृतिक विकास देखा गया। मिट्टी के बर्तनों पर डिज़ाइन और कब्रगाहों में पाए जाने वाले व्यक्तिगत आभूषणों के प्रकार इन प्राचीन समाजों की रचनात्मकता और सांस्कृतिक पहचान को दर्शाते हैं।
      • त्रिशूल, जिन्हें बाद में शिव से जोड़ा गया, मेगालिथ में पाए गए हैं।
  • व्यापार और विनिमय:
    • महापाषाण कालीन लोग स्थानीय स्तर पर और संभवतः दक्षिणी भारत से दूर के क्षेत्रों के साथ व्यापार एवं विनिमय स्थापित करने में लगे हुए थे।
      • दक्षिण की ओर जाने वाले मार्ग को 'दक्षिणापथ' कहा जाता था, जिसे उत्तरी लोगों द्वारा काफी महत्त्व दिया जाता था क्योंकि इससे दक्षिण से सोना, मोती और कीमती पत्थर लाए जाते थे।
      • रोमन साम्राज्य के साथ फलते-फूलते व्यापार से एक ओर दक्षिण भारत के तटीय भागों और दूसरी ओर रोमन साम्राज्य के पूर्वी प्रभुत्व (विशेष रूप से मिस्र के बीच होने वाले निर्यात और आयात) से लाभ प्राप्त हुआ।

निष्कर्ष:

महापाषाण कालीन चरण को अक्सर दक्षिण भारत के इतिहास में आधारभूत काल के रूप में पहचाना जाता है। इस काल के दौरान हुई प्रगति ने इस क्षेत्र में बाद में होने वाले सामाजिक-सांस्कृतिक एवं राजनीतिक परिवर्तनों के लिये आधार तैयार किया।