Q2. छठी से चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में भारत पर ईरानी और मैसेडोनियाई आक्रमणों के कारणों एवं परिणामों की चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- प्रश्न के संदर्भ को ध्यान में रखते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- भारत पर ईरानी आक्रमण के कारणों और परिणामों पर चर्चा कीजिये।
- भारत पर मैसेडोनियन आक्रमण के कारणों एवं परिणामों की चर्चा कीजिये।
- यथोचित निष्कर्ष लिखिये।
|
परिचय:
भारत पर ईरानी और मैसेडोनियन आक्रमण आर्थिक, भूराजनीतिक और सांस्कृतिक प्रेरणाओं के संयोजन से प्रेरित थे। हालाँकि इन आक्रमणों से राजनीतिक परिवर्तन के साथ सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा मिला, जिससे इस क्षेत्र के इतिहास की दिशा तय हुई, लेकिन इन आक्रमणों के परिणाम जटिल और बहुआयामी थे।
मुख्य भाग:
भारत पर ईरानी आक्रमण (छठी शताब्दी ईसा पूर्व):
- कारण:
- हखामानी साम्राज्य की विस्तारवादी महत्त्वाकांक्षाएँ: डेरियस-I के तहत हखामानी साम्राज्य ने अपने क्षेत्रों का विस्तार करने पर बल दिया। व्यापार मार्गों पर नियंत्रण बढ़ाने तथा भारतीय उपमहाद्वीप की संपत्ति तक पहुँच की इच्छा ने फारसी आक्रमणों को प्रेरित किया।
- उत्तर-पश्चिम भारत में राजनीतिक फूट: इस समय के दौरान उत्तर-पश्चिम भारत में कोई शक्तिशाली राज्य नहीं था और कम्बोज तथा गांधार जैसे छोटे राज्य एक-दूसरे से युद्ध करते रहे। ईरान के हखामानी शासकों ने उत्तर-पश्चिम सीमा में राजनीतिक फूट का फायदा उठाया।
- आर्थिक प्रेरणाएँ: भारतीय उपमहाद्वीप की समृद्धि (जिसमें इसके मसाले, वस्त्र और कीमती धातुएँ शामिल थीं) ने फारसियों को आकर्षित किया था। आर्थिक लाभ के साथ व्यापार मार्गों की खोज ने ईरानी आक्रमणों में योगदान दिया था।
- भू-राजनीतिक विचार: भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों पर नियंत्रण स्थापित करना हखामानी साम्राज्य के लिये रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण था। ये क्षेत्र बफर ज़ोन के रूप में भूमिका निभाने के साथ फारस को भारतीय मैदानों से जोड़ने वाले व्यापार मार्गों तक पहुँच प्रदान करते थे।
- परिणाम:
- हखामानी क्षत्रपों की स्थापना: ईरानी आक्रमणों के कारण भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में हखामानी क्षत्रपों (प्रांतों) का निर्माण हुआ था।
- इन क्षत्रपों ने प्रशासनिक नियंत्रण को सुविधाजनक बनाने के साथ यह सुनिश्चित किया कि संसाधनों का प्रवाह फारसी साम्राज्य की ओर बना रहे।
- सांस्कृतिक आदान-प्रदान: ईरानी लेखक भारत में लेखन का एक ऐसा रूप लेकर आए जिसे खरोष्ठी लिपि के नाम से जाना जाता है।
- अशोक के समय के स्मारक कुछ हद तक ईरानी मॉडलों की देन हैं।
भारत पर मैसेडोनियन आक्रमण (चौथी शताब्दी ईसा पूर्व):
कारण:
- परिणाम:
- सिकंदर की सैन्य महत्त्वाकांक्षाएँ: सैन्य गौरव और विजय की इच्छा से प्रेरित सिकंदर महान ने एक साम्राज्य स्थापित करने की कोशिश की जो यूरोप से एशिया तक फैला हो। भारत की विजय उसकी भव्य दृष्टि का हिस्सा थी।
- सांस्कृतिक और बौद्धिक जिज्ञासा: विविध संस्कृतियों में सिकंदर की रुचि और भारतीय उपमहाद्वीप के दर्शन, विज्ञान तथा समाज का पता लगाने की उसकी इच्छा ने भारत पर आक्रमण करने के निर्णय में योगदान दिया।
- व्यापार मार्गों पर नियंत्रण: व्यापार मार्गों पर नियंत्रण तथा मसालों एवं वस्त्रों सहित भारतीय उपमहाद्वीप की संपत्ति तक पहुँचने की इच्छा ने सिकंदर को आक्रमण करने के लिये प्रेरित किया।
- परिणाम:
- हेलेनिस्टिक प्रभाव की स्थापना: मैसेडोनियन आक्रमण के कारण भारत के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में हेलेनिस्टिक प्रभाव देखा गया।
- हेलेनिस्टिक प्रशासन की शुरुआत: सिकंदर के सेनापति, विशेष रूप से सेल्यूकस निकेटर ने विजित क्षेत्रों में हेलेनिस्टिक प्रशासनिक प्रणाली की स्थापना की थी।
- ज्ञान का आदान-प्रदान: ग्रीक और भारतीय विद्वानों के बीच समन्वय से खगोल विज्ञान, चिकित्सा एवं दर्शन सहित विभिन्न क्षेत्रों में ज्ञान का आदान-प्रदान हुआ।
निष्कर्ष:
ये ऐतिहासिक प्रसंग इस अवधि के दौरान सभ्यताओं की गतिशील परस्पर क्रिया को रेखांकित करते है इससे इंडो-फारसी एवं ग्रीको-भारतीय संबंधों को आकार मिला तथा भारतीय उपमहाद्वीप की सांस्कृतिक विविधता पर इसका प्रभाव पड़ा।