Q1. भारत में मार्शल आर्ट के विकास तथा इसके सांस्कृतिक प्रभाव का परीक्षण कीजिये। (250 शब्द)
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- प्रश्न के संदर्भ को ध्यान में रखते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- भारत में मार्शल आर्ट के विकास पर चर्चा कीजिये।
- भारत में मार्शल आर्ट के सांस्कृतिक प्रभावों पर चर्चा कीजिये।
- उचित निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
भारत में मार्शल आर्ट के विकास तथा इसके सांस्कृतिक प्रभाव ने देश की विरासत में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
मुख्य भाग:
भारत में मार्शल आर्ट का विकास:
- वैदिक काल: भारत में मार्शल आर्ट की उत्पत्ति के साक्ष्य "धनुर्वेद" जैसे प्राचीन ग्रंथों में मिलते हैं, जो युद्ध विज्ञान को समर्पित वेदों का एक खंड है। किंवदंतियों के अनुसार ऋषि परशुराम, जिन्होंने मंदिरों का निर्माण किया और मार्शल आर्ट की शुरुआत की, ने कलारीपयट्टू की शुरुआत की थी।
- प्राचीन काल: तीसरी शताब्दी में पतंजलि के योग सूत्र के तत्त्वों के साथ-साथ नृत्य में उँगली की गतिविधियों को युद्ध कला में शामिल किया गया था। दक्षिण भारत में मार्शल आर्ट के लिखित साक्ष्य संगम साहित्य से मिलते हैं।
- शास्त्रीय काल (तीसरी से 10वीं शताब्दी): सुश्रुत संहिता में मानव शरीर के ऐसे 108 महत्त्वपूर्ण बिंदुओं की पहचान की गई, जिनमें से 64 पर मुट्ठी या छड़ी से मारने पर घातक परिणाम हो सकता था।
- पल्लव राजवंश के राजा नरसिंहवर्मन ने दर्जनों ग्रेनाइट मूर्तियाँ बनवाईं, जिनमें निहत्थे लड़ाकों को सशस्त्र विरोधियों का सामना करते हुए दिखाया गया था।
- मध्यकाल: मुगल, भारत की मूल कलाओं के संरक्षक थे। वे न केवल अपनी सेनाओं के लिये अखाड़ा-प्रशिक्षित राजपूत सेनानियों को भर्ती करते थे, बल्कि स्वयं भी इन प्रणालियों का अभ्यास करते थे। औसानसा धनुर्वेद संकलनम् 16वीं शताब्दी के अंत का है, जिसे अकबर के संरक्षण में संकलित किया गया था।
- आधुनिक समय की क्षेत्रीय प्रथाएँ: वर्षों से भारत के विभिन्न क्षेत्रों में मार्शल आर्ट के विशिष्ट रूप विकसित हुए हैं।
- उदाहरण के लिये केरल का कलारीपयट्टू विविध गतिविधियों एवं शारीरिक फिटनेस पर बल देने के लिये प्रसिद्ध है।
- पंजाब क्षेत्र से शुरू होने वाले गतका में तलवार और लाठियों जैसे हथियारों का उपयोग शामिल है, जो सिख समुदाय के ऐतिहासिक मार्शल कौशल को दर्शाता है।
भारत में मार्शल आर्ट का सांस्कृतिक प्रभाव:
- सांस्कृतिक एकता: मार्शल आर्ट न केवल आत्मरक्षा के साधन के रूप में बल्कि कलात्मक अभिव्यक्ति के रूप में भी भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अंग बन गया है। कथकली, ओडिसी और भरतनाट्यम जैसे कई पारंपरिक नृत्य रूपों में मार्शल आर्ट से प्रेरित गतिविधियों को शामिल किया गया है, जो सांस्कृतिक ताने-बाने में युद्ध तकनीकों के सहज एकीकरण को प्रदर्शित करते हैं।
- दार्शनिक पहलू: शारीरिक प्रशिक्षण से परे, मार्शल आर्ट अक्सर दार्शनिक सिद्धांतों का प्रतीक है। अनुशासन, सम्मान और आत्म-नियंत्रण जैसी अवधारणाएँ इन प्रथाओं के अभिन्न अंग हैं, जो व्यक्तियों के समग्र विकास में योगदान करती हैं।
- वैश्विक मान्यता: हाल के दिनों में भारतीय मार्शल आर्ट को वैश्विक स्तर पर मान्यता मिली है। उदाहरण के लिये कलारीपयट्टू में होने वाली संचलन तकनीकों ने ध्यान आकर्षित किया है और यहाँ तक कि संस्कृति को प्रभावित करने के साथ अंतर्राष्ट्रीय फिल्मों एवं प्रदर्शनों में भूमिका निभाई है।
- आधुनिक प्रासंगिकता: आधुनिक भारत में मार्शल आर्ट का अभ्यास पेशेवर क्षेत्रों तक विस्तारित है, जिसमें व्यक्तिगत और खेल संगठन, आत्मरक्षा तथा यहाँ तक कि मनोरंजन में भी इन कौशलों के मूल्यों को महत्त्व दिया जाता है।
निष्कर्ष:
भारत में मार्शल आर्ट का निरंतर अभ्यास सांस्कृतिक परंपराओं के संरक्षण के प्रति लोगों की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। यह प्रतिबद्धता सुनिश्चित करती है कि ये परंपराएँ न केवल जीवंत रहें बल्कि समकालीन समाज में विकसित हों।